उलूक टाइम्स

रविवार, 21 सितंबर 2014

बीमार सोच हो जाये तो एक मजबूत शब्द भी बीमार हो जाता है

शब्दों का
भी सूखता
है खून
कम हो
जाता है
हीमोग्लोबिन

शब्द भी
हमेशा
नहीं रह
पाते हैं
ताकतवर

झुकना शुरु
हो जाते हैं
कभी
लड़खड़ाते हैं
कई बार
गिर भी
जाते हैं

बात इस
तरह की
कुछ पचती
नहीं है
अजीब सी
ही नहीं
बहुत ही
अजीब सी
लगती है

पर क्या
किया जाये
कई बार
सामने वाले
के मुँह से
निकलते
मजबूत
शब्द भी
मजबूर
कर देते हैं
विवश
कर देते हैं
सोचने के लिये
कि
बोलने वाला
बहुत ही
खूबसूरत
होता है
सभ्य भी
दिखता है
उम्र पक
गई होती है
और
सलीका
इतना कि
जूते की
सतह में
सामने
वाले का
अक्स
दिखता है

फिर भी
बोलना
शुरु करता
है तो
गिरना
शुरु हो
जाते हैं
वो शब्द भी
जो बहुत
मजबूत
शब्द माने
जाते हैं

इतिहास
गवाह
होता है
किसी एक
खाली धोती
पहनने वाले
शख्स के
द्वारा
मजबूती से
पूरी देश
की जनता
से बोले
जाते हैं

सुनने वाले
को देते
हैं उर्जा
बीमार
से बीमार
को खड़े
होने की
ताकत
दे जाते हैं
और
 वही शब्द
निकलते
ही किसी
के मुँह से
खुद ही
बीमार
हो जाते हैं
लड़खड़ाने
लगते हैं
और
कभी कभी
गिरना
भी शुरु
हो जाते हैं

एक
शब्द ही
जैसे खुद
अपनी ऊर्जा
को पचा
जाता है
अर्थी के
साथ चल
रहे लोगों के
मुँह से
निकलता
 ‘राम नाम सत्य है’
जैसा हो
जाता है ।

चित्र साभार: http://expresslyspeaking.wordpress.com/