उलूक टाइम्स

मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014

ये सब चंद्रमा सुना है कराता है एक ही चीज को दिखा कर एक को कवि एक को पागल बनाता है




आदरणीय देवेंद्र पाण्डेय जी ने कहा,

“आप के लेखन की निरंतरता प्रभावित करती है” 

और
ठीक उसी समय 
कहीं लिखा देखा 

आदरणीय ज्योतिष सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी जी कह रहे हैं :-

“एक होता है साहित्‍यकार और एक होती है साहित्‍य की दुकान। अब चूंकि मैं ज्‍योतिषी हूं तो ज्‍योतिष की बात भी कर लेते हैं। साहित्‍यकारों में एक होते हैं कवि, मैंने आमतौर पर कवियों का चंद्रमा खराब ही देखा है। बारहवें भाव में चंद्रमा हो तो जातक एक कॉपी छिपाकर रखता है, जिसमें कविताएं भी लिखता है”। 

मुझे भी महसूस हुआ 
कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है ? 
आप का चंद्रमा कहाँ है 
आपने कभी देखा है ? 
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कोशिश
बहुत होती है 
हाथ रोकने की 
कि
ना लिखा जाये 

इस तरह 
रोज का रोज 

सब कुछ 
और
कुछ भी 
पर

चंद्रमा का 
मुझको कुछ 
पता नहीं था 

किसी ने
समझाया 
भी
नहीं था कभी 

ना ही मेरे 
चंद्रमा को ही 

वो तो अच्छा रहा 
जब देख बैठा 
मैं भी
भाव उसका 
बारहवें भाव पर 
तो नहीं था 

ना ही नजर थी 
उसकी उस भाव पर 
जहाँ होने से ही 
कोई कवि हो 
बैठता था 

वैसे
होता भी कैसे 
मेरे खानदान 
में तक जब कोई 
कवि कभी भी 
पैदा नहीं हुआ था 

छिपा कर रखी हो 
कहीं कोई कापी 
किसी ने कभी भी 
ऐसा भी नहीं था 

हाँ दुकान एक 
जरूर
पता नहीं 
कब और कैसे 
किस जुनून में 
खोल बैठा था 

वैसे
किसी ने 
बेचने के लिये भी 
कभी कुछ 
नहीं कहा था 

बेच भी नहीं पाया 
कुछ भी किसी को 

ग्राहक
कोई भी 
कहीं भी कभी भी 
मिला ही नहीं था 

अच्छा हुआ 
चंद्रमा बाराहवाँ 
जो नहीं था 

उसे भी पता था 
मुझे कभी भी 
कवि होना नहीं था 

पागल
होने ना होने 
का पता नहीं था 

ज्योतिष ने 
सब कुछ
भी तो 
कह देना नहीं था । 

चित्र साभार: http://www.picturesof.net