पुरानी से लेकर नई
किताबों के कमरे में
उन के ऊपर जमी
धूल में कुछ फूल
बनाने का मन हुआ
कुछ फूल कुछ पत्तियाँ
कुछ कलियाँ कुछ काँटे
क्या बनाऊँ क्या नहीं
किस से पूछा जाये
कौन बताये कौन छाँटे
कुछ ऐसा ही चल रहा था
खाली दिमाग में कि
धूल उड़ी आँख में घुसी
नाक में घुसी आँख बंद हुई
फिर छींके आना शुरु हुई
छींके बंद होने का
नाम नहीं ले रही थी
किताबें जैसे देख
देख कर यही सब
दबी जुबान से
हँस रही थी
जैसे कह रही हों
बेवकूफ
अभी तक कागज के
मोह में पड़ा हुआ है
लिखा हुआ होने से
क्या होता है
जब से लिखा गया था
तब से अब तक
वैसे का वैसा ही
यहीं एक जगह पर
अड़ा हुआ है
दुनियाँ बदल रही है
किताबों के शीर्षक
सारे के सारे
काम में लाये जा रहे हैं
इधर उधर जहाँ भी
जरूरत पड़ रही है
चिपकाये जा रहे हैं
साहित्य किसी का भी हो
किसी के काम का
नहीं रह गया है
जिसने लिखा है कहा है
उसके नाम को बस
कह देने से ही सब
कुछ हो जा रहा है
जो कहा जा रहा है
आशा की जा रही है
आप की समझ में
अच्छी तरह से
आ जा रहा है
नहीं आ रहा है
कोई बात नहीं
उदाहरण भी यहीं
और अभी का अभी
दिया जा रहा है
जैसे गांंधी पटेल
भगत सिंह
विवेकानंद या
कोई और भी
पुराना आदमी
उसने क्या कहा
कहने की जरूरत
अब नहीं है
उसकी फोटो
दिखा कर
मूर्ति बनाकर
काम शुरु
हो जा रहा है
वही जैसा
हमेशा से
पार्वती पुत्र
गणेश जी
के साथ किया
जा रहा है
सुना है सफाई
कर्मचारियों को
अब कम्प्यूटर
सिखाया
जा रहा है
झाड़ू देने
का काम तो
प्रधानमंत्री से
लेकर अस्पताल
के संत्री को तक
कहीं ना कहीं करना
बहुत जरूरी हो गया है
अखबार से लेकर
टी वी से लेकर
रेडियो सेडियो में
सुबह शाम
के भजनों के
साथ आ रहा है
‘उलूक’
तेरी मति भी
सटक गई है
नहीं होने के
बावजूद भी
पता नहीं
अच्छे खासे
चल रहे देश
के काम में
तू रोज रोज
कुछ ना कुछ
उटपटाँग सा
अपने जैसा
चावल के
कीड़ों की तरह
बीन ला रहा है
किताबों को
रद्दी में बेच
क्यों नहीं देता
सोना नहीं है
जो सोच रहा है
पुरानी होने पर कोई
करोड़पति होने इन्ही
सब से जा रहा है
अब जो जहाँ हो रहा है
होता रहेगा
पुरानी किताबों की जगह
कुछ नई तरह की बातों
का जमाना आ रहा है
कुछ दिन चुपचाप
रहने वाले के और
कुछ दिन शोर
मचाने वाले के
बारी बारी से अब
आया करेंगे
एक झाडू बेचने वाला
सबको बहुत प्यार से
बता रहा है
आज ऐसा
क्यों लिखा तूने
यहाँ पर पूछना
नहीं है मुझसे
क्योंकि मेरी
समझ में भी
कुछ नहीं आ रहा है
और ये भी पता है
इस सब को समझने
को कोई भी नासमझ
यहाँ नहीं आ रहा है ।
चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/
किताबों के कमरे में
उन के ऊपर जमी
धूल में कुछ फूल
बनाने का मन हुआ
कुछ फूल कुछ पत्तियाँ
कुछ कलियाँ कुछ काँटे
क्या बनाऊँ क्या नहीं
किस से पूछा जाये
कौन बताये कौन छाँटे
कुछ ऐसा ही चल रहा था
खाली दिमाग में कि
धूल उड़ी आँख में घुसी
नाक में घुसी आँख बंद हुई
फिर छींके आना शुरु हुई
छींके बंद होने का
नाम नहीं ले रही थी
किताबें जैसे देख
देख कर यही सब
दबी जुबान से
हँस रही थी
जैसे कह रही हों
बेवकूफ
अभी तक कागज के
मोह में पड़ा हुआ है
लिखा हुआ होने से
क्या होता है
जब से लिखा गया था
तब से अब तक
वैसे का वैसा ही
यहीं एक जगह पर
अड़ा हुआ है
दुनियाँ बदल रही है
किताबों के शीर्षक
सारे के सारे
काम में लाये जा रहे हैं
इधर उधर जहाँ भी
जरूरत पड़ रही है
चिपकाये जा रहे हैं
साहित्य किसी का भी हो
किसी के काम का
नहीं रह गया है
जिसने लिखा है कहा है
उसके नाम को बस
कह देने से ही सब
कुछ हो जा रहा है
जो कहा जा रहा है
आशा की जा रही है
आप की समझ में
अच्छी तरह से
आ जा रहा है
नहीं आ रहा है
कोई बात नहीं
उदाहरण भी यहीं
और अभी का अभी
दिया जा रहा है
जैसे गांंधी पटेल
भगत सिंह
विवेकानंद या
कोई और भी
पुराना आदमी
उसने क्या कहा
कहने की जरूरत
अब नहीं है
उसकी फोटो
दिखा कर
मूर्ति बनाकर
काम शुरु
हो जा रहा है
वही जैसा
हमेशा से
पार्वती पुत्र
गणेश जी
के साथ किया
जा रहा है
सुना है सफाई
कर्मचारियों को
अब कम्प्यूटर
सिखाया
जा रहा है
झाड़ू देने
का काम तो
प्रधानमंत्री से
लेकर अस्पताल
के संत्री को तक
कहीं ना कहीं करना
बहुत जरूरी हो गया है
अखबार से लेकर
टी वी से लेकर
रेडियो सेडियो में
सुबह शाम
के भजनों के
साथ आ रहा है
‘उलूक’
तेरी मति भी
सटक गई है
नहीं होने के
बावजूद भी
पता नहीं
अच्छे खासे
चल रहे देश
के काम में
तू रोज रोज
कुछ ना कुछ
उटपटाँग सा
अपने जैसा
चावल के
कीड़ों की तरह
बीन ला रहा है
किताबों को
रद्दी में बेच
क्यों नहीं देता
सोना नहीं है
जो सोच रहा है
पुरानी होने पर कोई
करोड़पति होने इन्ही
सब से जा रहा है
अब जो जहाँ हो रहा है
होता रहेगा
पुरानी किताबों की जगह
कुछ नई तरह की बातों
का जमाना आ रहा है
कुछ दिन चुपचाप
रहने वाले के और
कुछ दिन शोर
मचाने वाले के
बारी बारी से अब
आया करेंगे
एक झाडू बेचने वाला
सबको बहुत प्यार से
बता रहा है
आज ऐसा
क्यों लिखा तूने
यहाँ पर पूछना
नहीं है मुझसे
क्योंकि मेरी
समझ में भी
कुछ नहीं आ रहा है
और ये भी पता है
इस सब को समझने
को कोई भी नासमझ
यहाँ नहीं आ रहा है ।
चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/