उलूक टाइम्स

सोमवार, 8 दिसंबर 2014

किसी के दिल को कैसे टटोला जाता है कहीं भी तो नहीं बताया जाता है


बहुत कोशिश 
और
बहुत मेहनत 
करनी पड़ती है 
सामने वाले के दिल को 
टटोलने के लिये 

पहले तो
दिल 
कहाँ पर है 
यही अँदाज नहीं हो पाता है 

दूसरा 
अपना 
नहीं किसी और का 
दिल टटोलना होता है 
इसलिये 
उससे पूछा भी नहीं जाता है 

डाक्टर दिल का 
साथ लेकर 
खोजना शुरु करने का भी 
एक रास्ता नजर आता है 

लेकिन
डाक्टर 
तो उस दिल की 
बात समझ ही नहीं पाता है 
जिसे पान के पत्ते की शक्लों में 
ज्यादातर फिल्मों के पोस्टरों में 

या फिर
किसी 
स्कूल के पास 
के पेड़ो की छालों में 

ज्यादातर 
कीलों से खोद कर उकेरा जाता है 

इस सब के बीच में 
कई कई जमाने गुजर जाते हैं 
और बेचारा अपना खुद का दिल 
खुद से ही भूला जाता है 

अच्छा नहीं होता है 
बहुत ज्यादा उधेड़बुन में उलझ कर रहना 

और फिर
क्यों 
टटोलना किसी और का दिल 
होते हुऐ अपने खुद के पास भी 

अच्छा होता है 
अपने ही दिल से पूछ लेना 
अपने ही दिल का हाल भी 
कभी कभी 

वो बात अलग है 
खाली दिल को टटोलने में 
मजा उतना नहीं आता है 

ना ही कुछ 
मिलता है 
खुद के दिल को टटोलने के बाद 

वैसे भी
खाली 
जगहों को आखिर 
कितनी बार किसी से खाली खाली में 
बस एक खालीपन को ढूँढने के लिये 
टटोला जाता है । 

चित्र साभार: www.freelargeimages.com