उलूक टाइम्स

शनिवार, 2 मई 2015

सोच बदलेगी वहाँ से यहाँ आकर होती ही हैं ऐसी भी बहुत सारी गलतफहमियाँ

अब क्या
करे कोई
जिसकी कुछ
इस तरह की
ही होती हो
रोज की ही
आराधना
पूजा अर्चना
दिया बाती
फूल बताशे
छोड़ कर
करता हो
जो बस
मन ही मन में
कुछ कुछ
बुद्बुदा कर
कोशिश बनाने
की एक अनकही
कहानी और
करता हो उसी
अनहोनी
अकल्पनीय
कल्पना की
साधना
बिना किसी
हनुमान की
हनुमान चालीसा
के साथ होती हो
कुछ चैन कुछ
बैचेनी की कामना
छपने छपाने की
बात पर कर देता
हो मोहल्ले का
अखबार तक मना
कागज किताबें
डायरियां बिक
गई हों कबाड़ में
कबाड़ी को भी
रहता हो कुछ
ना कुछ कबाड़
मिलने की
आशा हर महीने
देखते ही लिखने
लिखाने वालों को
देता हो दुआ
जब भी होता
हो सामना
'उलूक' दिन में
उड़े आँख बंद कर
और रात में
कुछ खोलकर
नया कुछ ऐसा
या वैसा नहीं है
कहीं भी होना
एक ही बात है
मोहल्ले में हो
शहर में हो शोर
या फिर कुछ
चुपचाप लिख
लेना हो कुछ
कुछ यहाँ
कुछ वहाँ
किस लिये
होना है
अनमना ।


चित्र साभार: www.disneyclips.com