उलूक टाइम्स

शुक्रवार, 20 नवंबर 2015

झूठ सारे सोने से मढ़ कर सच की किताबों पर लिख दिये जायें

रोज का
ना लिखना
जैसा
लिखना छोड़
कभी
कुछ लिखना
जैसा
लिख दिया जाये

कतरा कतरा
खून
अँधेरे का
अँधेरे में
ही बहने
दिया जाये

पहना कर
कंकाल
की हड्डियों
को माँस
किसी के
बदन से
नोचा
उतारा हुआ
शनील के
कपड़े से
ढक ढका
कर जिंदा
होने की
मुनादी
की जाये

देखने वालों
के आँखों
के बहुत
नजदीक से
फुलझड़ियाँ
झूठ की
जला जला
कर कई
आधा अंधा
कर दिया जाये

जमाने से
सड़ गल गये
बदबू मारते
कुछ
कूड़े कबाड़
पर अपने
इत्र
विदेशी महंगी
खरीद कर
छिड़की जाये

मैय्यत निकलनी
चाहिये थी
जिसकी जमाने
पहले कभी
इस जमाने
में ढक कर
पाँच सितारों
से सजा
शाबाशी दी जाये

बहुत हो गया
जलते सुलगते
धुआँ देते दिल
‘उलूक’ के
तुझे झेलते हुऐ
अब थोड़ी सी
राख डाल
कर बुझा
लेने की
कोशिश भी
कर ली जाये ।

चित्र साभार: www.theemotionalinvestor.org