समझ में बस
यही नहीं आ पाता है
कि
राम अपना मन्दिर
अपने ही घर में
खुद क्यों नहीं
बनवा पाता है
बन्दर
बहुत पूज्य होते हैं
हनुमान जी के
दूत होते हैं
बन्दर
कह कर
पुकारना
ठीक नहीं
ऐसे
खुराफातियों को
इस तरह
की गालियाँ
कोई तो
शातिर है
जो इन सड़क छाप
गुण्डों को
सिखाता है
एक
बच्ची से
माईक पर
गालियाँ
दिलवा रहा था
एक शरीफ कहीं
उसी तरह
की
तालीम पाया
बहस करने
आभासी दुनियाँ में
चला आता है
मन नहीं करता है
भाग लेने का
बहसों में
ऐसे ही
शरीफों
की टोलियों को
शरीफ एक
जगह जगह बैठा कर
कहीं से
उनसे
अपना चिल्लाना
लोगों तक पहुँचाता है
भगवान
पूजने के लिये होता है
हर घर में
बेलाग बेखौफ
पूजा भी जाता है
राजनीति
सब की समझ में आती है
‘उलूक’
हो सकता है
नासमझ हो
लेकिन
इतना भी नहीं
कि
समझ ना पाये
कौन सा कुत्ता
किस गली का
किसके लिये
किसपर
भौंकने
यहाँ
चला आता है ।
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