उलूक टाइम्स: बन्दर
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रविवार, 31 मार्च 2024

ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर आज वो एक नश्वर हो गया है


सारी किताबें खुली हुई हैं
स्वयं बताएं खुद अपना पन्ने को पन्ने
शक्कर देख रही कहीं दूर से
लड़ते सूखे सारे गन्नों से गन्ने

सच है सारा पसर गया है
झूठ बेचारा यतीम हो गया है
बता गया है बगल गली का
एक लंबा लंबा सा नन्हे

चश्मा लाठी धोती पीटे सर अपना ही
एक चलन हो गया है
बुड्ढा सैंतालिस से पहले का एक
आज बदचलन हो गया है

बन्दर सारे ही सब खोल कर बैठे हैं
अपना सारा ही सब कुछ
आँख नहीं है कान नहीं है
मुंह पर भी अब कपड़ा भींचे सारे बन्ने

आँखे दो दो ही सबकी आँखें
कौआ ना अब वो कबूतर हो गया है
मत लिख मत कह अपनी कुछ
उससे पूछ जो तर बतर हो गया है

ईश्वर है है ईश्वर मंदिर मूरत छोड़ कर
आज वो एक नश्वर हो गया है
नश्वर है ईश्वर ईश्वर है नश्वर ‘उलूक’
कर कोशिश लग ले ईश्वर कुछ जनने


चित्र साभार: https://pngtree.com/


 

शनिवार, 2 सितंबर 2023

समय बताएगा समय ही बताता है आंखे बंद को सब कुछ साफ़ नजर आता है

 

इसी सफ़ेद कागज़ में लिखा हुआ
एक कबूतर
किसी दिन किसी को नजर ही नहीं आता है

किसी दिन यही कबूतर
उसी के लिए वो एक कौआ हो जाता है
किसी दिन
मूड बहुत अच्छा होता है
कोयल की कुहू कुहू भी उसी के साथ लिखा जैसा
उसी से पढ़ लिया जाता है

समय ने
तब भी बताया था समय अब भी बता रहा है
और
समय ही है जो आघे भी बताएगा

सब की समझ में आता है
देखने सुनने और समझने में हमेशा फर्क रहता है
आगे भी रहना चाहिए
सब को अपने अपने हिसाब से
अपना अपने मतलब का समझ में आ ही जाता है
कौन किसे ये बात खुद अपने आप दूसरे को बताता है?

क्या लिखते हैं
कभी भी समझ नहीं पाते हैं लोग
कहते हैं हमेशा कौन शरमाता है?
हम भी समझते हैं कुछ कुछ
कुछ लोगों को अलग बात है
बस बताने में कुछ संकोच सा हो जाता है

फिर भी कोशिश करते हैं लिखते चले जाते हैं
पता होता है
बस यहाँ ही कागजी तलवार चला ले जाना
सब को ही आता है

लिखे पर
लिखा आपका बता जाता है
आप पढ़े लिखे हो समझ में आपके सब कुछ आ जाता है
और यही लिखा लेखक को आपके बारे में
सब कुछ साफ़ साफ़ बता जाता है

लिखे को पढ़कर
उस पर कुछ लिखने वाले की तस्वीर
सामने से आ जाती है
  लिखने वाले के कबूतर को
पढ़ने वाला
कौवा एक देख जब जाता है

समय जरूर बताएगा
समय सबको सब कुछ सही सही बता जाता है

गलतफहमी बनी रहनी भी जरूरी है
भाग्य से ही सही
बन्दर हनुमान जैसा नजर आता है

‘उलूक’ अपनी आँखों से देखना बहुत अच्छा है
बन्दर को हनुमान
बन्दर को बन्दर देखने वाले को
 समय बतायेगा कहना जुलम हो जाता है |

चित्र साभार : https://www.istockphoto.com/

रविवार, 31 मई 2020

मदारी मान लिया हमने तू ही भगवान है बाकी कहानियों के किरदार हैं और हम तेरे बस तेरे ही जमूरे हैं


बहुत से हैं
पूरे हैं

दिख रहे हैं
साफ साफ
कि हैं

फिर
किसलिये
ढूँढ रहा है
जो
अधूरे हैं

क्षय होना
और
सड़ जाने में
धरती आसमान
का अन्तर है

उसे
क्या सोचना

जिसने
जमीन
खोद कर
ढूँढने ही बस

मिट चुकी
हवेलियों के
कँगूरे हैं 

समझ में
आता है
घरेलू
जानवर का
मिट्टी में लोटना
मालिक की रोटी
के लिये

उसके
दिल में भी हैं
कई सारे बुलबुले
बनते फूटते
चाहे आधे अधूरे हैं

 सम्मोहित होना
किसने कह दिया
बुरा होता है

अजब गजब है
नखलिस्तान है
टूट जाने के
बाद भी
सपने

उस्ताद
के लिये
तैयार
मर मिटने के लिये
जमूरे हैं

मर जायेंगे
मिट जायेंगे
हो सकेगा तो
कई कई को
साथ भी
ले कर के जायेंगे

जमीर
अपना
कुछ हो
क्या जरूरी है

जोकर पे
दिलो जाँ
निछावर
करने के बाद

किस ने देखना
और
सोचना है

मुखौटे के पीछे

किस बन्दर
और
किस लंगूर के

लाल काले
चेहरे
कुछ सुनहरे हैं

‘उलूक’
किसलिये
लिखना
लिखने वालों
के बीच
कुछ ऐसा

जब
पहनाने  वाले

उतारने 
वालों से
बहुत ही कम है

सब 

हमाम में हैं
भूल जाते हैं

उनके चेहरे
उनके नकाब
और
उनके
आईने तक

हर किसी के पास हैं

नये हैं
अभी खरीदें हैं

और
जानते हैं

कुछ छोले हैं
और
कुछ भटूरे हैं।

https://steemit.com/

गुरुवार, 8 नवंबर 2018

जरूरी होता है निकालना आक्रोश बाहर खुद को अगर कोई यूँ ही काटने को चला आता है


फेसबुक पर की  गयी किसी की एक टिप्पणी 
“ मन्दिर के स्थान पर अगर कोई अस्पताल की मांग करता है तो वह श्री राम की कृपा से जल्द ही अस्पताल मे भर्ती होकर इसका लाभ ले लेगा”  
पर

कभी कभी

जानवरों के
स्वभाव से भी

बहुत कुछ
सीखा जाता है


अच्छा नहीं होता है

अपनी सीमा से
 बाहर जाकर

जब कोई
भौंक आता है 

आभासी दुनियाँ
 के तीरंदाज

छोड़ते रहते हैं तीर
 अपनी अपनी
माँदों में घुसकर


राम के मन्दिर
बनाने ना बनाने
के नाम पर

हस्पताल में
भर्ती करवा देंगे राम
की गाली
कोई दे जाता है 

समझ में बस
यही नहीं आ पाता है
कि

राम अपना मन्दिर
अपने ही घर में
खुद क्यों नहीं
बनवा पाता है

बन्दर
बहुत पूज्य होते हैं

हनुमान जी के
दूत होते हैं

बन्दर
कह कर
पुकारना
ठीक नहीं

ऐसे
खुराफातियों को 

इस तरह
की गालियाँ

कोई तो
शातिर है
जो इन सड़क छाप
गुण्डों को
 सिखाता है

एक
बच्ची से
माईक पर
गालियाँ
दिलवा रहा था
एक शरीफ कहीं

उसी तरह
की
तालीम पाया

बहस करने
आभासी दुनियाँ में
चला आता है

मन नहीं करता है
भाग लेने का
बहसों में

ऐसे ही
शरीफों
की टोलियों को

शरीफ एक

जगह जगह बैठा कर

कहीं से
उनसे
अपना चिल्लाना

लोगों तक पहुँचाता है

भगवान
पूजने के लिये होता है

हर घर में
बेलाग बेखौफ
पूजा भी जाता है

राजनीति
सब की समझ में आती है

‘उलूक’
हो सकता है
नासमझ हो

लेकिन
इतना भी नहीं
कि

समझ ना पाये

कौन सा कुत्ता
किस गली का

किसके लिये

किसपर
भौंकने
यहाँ
चला आता है ।

चित्र साभार: https://www.graphicsfactory.com



बुधवार, 5 सितंबर 2018

लिखना जरूरी हो जा रहा होता है जब किसी के गुड़ रह जाने और किसी के शक्कर हो जाने का जमाना याद आ रहा होता है

नमन
उन सीढ़ियों को
जिस पर चढ़ कर
बहुत ऊपर तक
कहीं पहुँच लिया
जा रहा होता है

नमन
उन कन्धों को
जिन को
सीढ़ियों को
टिकाने के लिये
प्रयोग किया
जा रहा होता है

नमन
उन बन्दरों को
जिन्हेंं हनुमान
बना कर
एक राम
सिपाही की तरह
मोर्चे पर
लगा रहा होता है

नमन
उस सोच को
जो गाँधी के
तीन बन्दरों
के जैसा

एक में ही
बना ले जा
रहा होता है

नमन
और भी हैं
बहुत सारे हैं
करने हैं

आज ही
के शुभ दिन
हर साल की तरह

जब
अपना अपना सा
लगता दिन
बुला रहा होता है

कैसे करेगा
कितने करेगा
नमन ‘उलूक’

ऊपर
चढ़ गया
चढ़ जाने के बाद
कभी नीचे को
उतरता हुआ
नजर ही नहीं
आ रहा होता है

गुरु
मिस्टर इण्डिया
बन कर ऊपर
कहीं गुड़
खा रहा होता है

चेलों
का रेला

वहीं
सीढ़ियाँ पकड़े
नीचे से

शक्कर
हो जाने के
ख्वाबों के बीच

कहीं
सीटियाँ बजा
रहा होता है।

चित्र साभार: www.123rf.com