उलूक टाइम्स

बुधवार, 20 मार्च 2019

चुनावी होली और होली चुनावी दो अलग सी बातें कभी एक साथ नहीं होती

बेमौसम
बरसात

ठीक भी
नहीं होती

होली में
पठाके की

बात ही
नहीं होती


रंग
बना रहा है

कई
साल से
खुद के चेहरे में

अपने
घर के
आईने से

उसकी
कभी बात
नहीं होती

फिर से
निकला है

ले कर
पिचकारी
भरी हुयी

अपनी
राधा
उसके ही
खयालात
में नहीं होती


बुरा
ना मानो
होली है

कहता
नहीं है

कभी किसी से

सालों साल

हर दिन
गुलाल
खेलने वाले की

खुद की
काली
रात नहीं होती

समझ में
आते हैं सारे रंग

कुछ
रंगीलों के ही

किसने कह दिया

रंग
सोचने में
लग रहे
जोर की

रंगहीन
हो चुके
मौसम में
कहीं बात
नहीं होती


‘उलूक’
रात के अंधेरे

और
सुबह के
उजाले में फर्क हो

सबके लिये
जरूरी नहीं

दूरबीन से
देखकर
समझाने वालों
की होली कभी

खुद के
घर के
आसपास
नहीं होती।



 चित्र साभार: http://priyasingh0602.blogspot.com/2014/09/the-festival-of-colors-holi-is-oneof.html