बेमौसम
बरसात
ठीक भी
नहीं होती
होली में
पठाके की
बात ही
नहीं होती
रंग
बना रहा है
कई
साल से
खुद के चेहरे में
अपने
घर के
आईने से
उसकी
कभी बात
नहीं होती
फिर से
निकला है
ले कर
पिचकारी
भरी हुयी
अपनी
राधा
उसके ही
खयालात
में नहीं होती
बुरा
ना मानो
होली है
कहता
नहीं है
कभी किसी से
सालों साल
हर दिन
गुलाल
खेलने वाले की
खुद की
काली
रात नहीं होती
समझ में
आते हैं सारे रंग
कुछ
रंगीलों के ही
किसने कह दिया
रंग
सोचने में
लग रहे
जोर की
रंगहीन
हो चुके
मौसम में
कहीं बात
नहीं होती
‘उलूक’
रात के अंधेरे
और
सुबह के
उजाले में फर्क हो
सबके लिये
जरूरी नहीं
दूरबीन से
देखकर
समझाने वालों
की होली कभी
खुद के
घर के
आसपास
नहीं होती।
चित्र साभार: http://priyasingh0602.blogspot.com/2014/09/the-festival-of-colors-holi-is-oneof.html
बरसात
ठीक भी
नहीं होती
होली में
पठाके की
बात ही
नहीं होती
रंग
बना रहा है
कई
साल से
खुद के चेहरे में
अपने
घर के
आईने से
उसकी
कभी बात
नहीं होती
फिर से
निकला है
ले कर
पिचकारी
भरी हुयी
अपनी
राधा
उसके ही
खयालात
में नहीं होती
बुरा
ना मानो
होली है
कहता
नहीं है
कभी किसी से
सालों साल
हर दिन
गुलाल
खेलने वाले की
खुद की
काली
रात नहीं होती
समझ में
आते हैं सारे रंग
कुछ
रंगीलों के ही
किसने कह दिया
रंग
सोचने में
लग रहे
जोर की
रंगहीन
हो चुके
मौसम में
कहीं बात
नहीं होती
‘उलूक’
रात के अंधेरे
और
सुबह के
उजाले में फर्क हो
सबके लिये
जरूरी नहीं
दूरबीन से
देखकर
समझाने वालों
की होली कभी
खुद के
घर के
आसपास
नहीं होती।
चित्र साभार: http://priyasingh0602.blogspot.com/2014/09/the-festival-of-colors-holi-is-oneof.html