उलूक टाइम्स: लिखने लिखाने की बीमारी है कौन सा हस्पताल में बिस्तर बदलना है

मंगलवार, 31 दिसंबर 2024

लिखने लिखाने की बीमारी है कौन सा हस्पताल में बिस्तर बदलना है

 

मालूम है कि कुछ भी कहीं भी बदला नहीं है सालभर में
ना ही आगे बदलना है
किसलिए तोलना है मिट्टी को हवा को पानी को
रहने दे उन्हें अभी संभलना है

सच सच है सच को रहने देना है सच कहना नहीं है
रेत पर नंगे पाँव टहलना है
निशान अपने आप ही  मिट जाएंगे समय के साथ
थोड़ा झूठ को बस संभलना है

कौन निराश है किसने कहा है बुरी बात है सब ठीक तो है
बिना डर रात में निकलना है
मौत सबको आती है एक दिन रोज का डरना अच्छा नहीं है
समय को बस फिसलना है

इसकी कुछ लिख कर उसकी कुछ लिख देने के बाद ही
घर से बाहर निकलना है
शहर में होती हैं अफवाहें ध्यान नहीं देना है
मुसकुराते हुए गली गली टहलना है

अपनी लिखने कि हिम्मत होती तो कितने होते अर्जुन उठाते गांडीव
सब बहलना है
‘उलूक’ साल को जाना ही होता है एक दिन
तुम्हें भी निकलना है
उसे भी निकलना है

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/



6 टिप्‍पणियां:

  1. नव-वर्ष शुभ हो
    चलिए देखें
    कौन कहां जा रहा है
    सादर वंदन

    जवाब देंहटाएं
  2. समय कहाँ रुकता हैं बस आज कल में परिवर्तित होता रहता है । गहन अभिव्यक्ति ।नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ सर ! सादर नमस्कार!

    जवाब देंहटाएं
  3. कुछ बदले न बदले समय की धार में बहते चलें तट के किनारे जरूर बदलेंगे।
    जीवन की यात्रा में कुछ नये मिलेंगे,कुछ पुराने छूटेंगे, संगी जरूर बदलेंगे।
    नववर्ष मंगलमय हो सर।
    सादर प्रणाम सर।
    आपका आशीष मिलता रहे।

    जवाब देंहटाएं
  4. नव वर्ष की हार्द‍िक शुभकामनायें जोशी जी

    जवाब देंहटाएं
  5. अपनी लिखने कि हिम्मत होती तो कितने होते अर्जुन उठाते गांडीव
    सब बहलना है

    समय बहलाता ही रहता है
    शुभकामनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  6. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 05 जनवरी 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं