उलूक टाइम्स

मंगलवार, 17 सितंबर 2019

बस समय चलता है अब इशारों में एक माहिर के सूईंया छुपाने से

किसलिये
डरता है
उसके
आईना
दिखाने से 

चेहरा
छुपा के
रखता है
वो
अपना
जमाने से 

कुछ
पूछते ही
पूछ लेना
उस से
उसी समय 

तहजीब
कहाँ गयी
तेरी

पूछने
चला है
हुकमरानो से 

ना देखना
घर में लगी
आग को

बुझाना भी नहीं 

दिखाना
आशियाँ
उसका जलता हुआ 

चूकना नहीं
तालियाँ
भी
बजाने से 

हिलती रहें
हवा में
आधी कटी
डालें
पेड़ पर ही 

सीखना
कत्ल करना

मगर बचना

लाशें
ठिकाने लगाने से 

नकाब
सबके
उतार देने का
दावा है
नकाबपोष का

शहर में
बाँटता है
चेहरे

खरीदे हुऐ
नकाबों के
कारखाने से

घड़ी
दीवार पर टंगी है

उसी
तरह से
टिकटिकाती हुयी

बस
समय चलता है
अब
इशारों में ‘उलूक’ 

एक
माहिर के
सूईंया
छुपाने से। 

चित्र साभार: https://www.fotolia.com