उलूक टाइम्स

सोमवार, 15 जनवरी 2024

निमंत्रण देते हैं सबके कांव कांव कर देने के अभिलाषी

 

सारे काले कौवे
सारे कहना ठीक नहीं
बहुत सारे कहें ज्यादा अच्छा है
बहुत सारे भी कहें 
फिर भी प्रश्न उठता है 
कितने सारे
एक झुण्ड ढेर सारे कौवों का
नीले आसमान में 
कांव कांव से गुंजायमान करता 
हर दिशा को
क्या दिशाहीन कहा जाएगा 
नहीं 
झुण्ड का कौआ नाराज नहीं हो जाएगा
हर किसी काले के लिए संगीतमय है 
ये शोर नहीं है 
ये तो समझा करो यही भोर है
एक चमगादड़ उल्टा लटका हुआ 
कोने में अपने खंडहर के किसी 
सोच रहा पता नहीं क्यों 
बस मोर है
मोर कहां झुण्ड में रहते हैं 
मस्त रहते हैं नाचते गाते पंख फैलाते 
गला मिला कर
करते नहीं ज़रा सा भी शोर हैं 
इतने सारे कौवे 
इतनी सारी कांव कांव
कोशिश करने की
उसी तरह की कुछ आवाजें
चमगादड़ का
फिसल जैसा रहा है पाँव पाँव
साहित्यकारों की कारें
सारी की सारी बीच सड़क पर
कदमताल करती
समानांतर कौवों के साथ जैसे उड़ती
सब संगीतमय सब गीतमय
ता धिन धिन ना ता तिरकट
अरे अरे कट कट
चित्र पूरा हुआ
चित्रमय हो चली सारी धरती
‘उलूक’ बकवासी
लेता आधी नींद से उठा जैसा
आधी कुछ बेसब्री सी उबासी
कुछ भीड़ कुछ भेड़ें
कुछ कौवे कुछ कबूतर
हर तरफ अफरा तफरी
किसको खबर कौन बेखबर
दुनियां नई
नई दुल्हन कहीं
कहीं कौवों के झुण्ड
निमंत्रण देते हैं सबके
कांव कांव कर देने के
अभिलाषी |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/