उलूक टाइम्स

रविवार, 14 अप्रैल 2024

इस बार करनी है आत्महत्या या रुक लें पांच और साल या देखना है अभी भी कोई पागल पागल खेलता हुआ पागल हो गया होगा

 

नाकारा होगा तू खुद तुझे पता नहीं होगा
नक्कारखाना कहता है जिसे तू
वहां तूती बजाना तेरे लिए ही आसान होगा

अब तक तो निगल लेनी चाहिये थी
तुझे भी गले में फंसी हड्डियां
तुझ सा बेवकूफ यहाँ नहीं होगा तो कहां होगा

सोच ले सपने में भी हर कोई जहां
किसी बीन की आवाज के बिना भी
कदम ताल कर रहा होगा

शर्म तुझे आनी चाहिए वहां
किसलिए अपने आसपास के लेनदेन को
रोज खुली आँखों से तू क्यों देखता होगा

पढ़ने वाले तेरे लिखे को पढ़े लिखे ही होते होंगे  
उन्हें भी सारा सब कुछ सही समय पर
मालूम होता ही होगा

रेंकता रह गधा बन कर
दिखाने के लिए गधे चारों और के अपने
गधा भी इस सब के लिए कुछ तो कर रहा होगा

और 

खुदा भी जब जमीं पर आसमां से देखता होगा
इस गधे को इतना गधा किसने बनाया सोचता होगा

इक गधा इतनी आसानी से
इक इशारे के साथ घोड़ों को घसीटता
 शेर्रों को कुत्ता बना कर लपेटता होगा

‘उलूक’ लिखता होगा पागलों की किताबें
पागलों के जंगल में बैठ कर
पाठ्यक्रम 
अम्बेडकर ने भी तो सोच कर ही दिया होगा

इस बार करनी है आत्महत्या 
या रुक लें पांच और साल
या देखना है अभी भी
कि कोई पागल पागल खेलता हुआ
पागल हो गया होगा | 

चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/

गुरुवार, 11 अप्रैल 2024

इंतज़ार है है मर्यादा पुरुषोत्तम दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी

 

कुछ बिल्लियाँ बिल्ले की खरीदी 
कुछ बिल्लियाँ खिसियानी
कुछ करेंगी दीवाली 
कुछ नोचेंगी खम्बे याद करेंगी फिर नानी

शातिर बिल्ला लगा हुआ है 
बाँट रहा है जगह जगह चूहेदानी
सभा कर रहा चूहों की 
जा जा कर बिलों में उनके अभिमानी

अब तो लिख दे लिखने वाले कविता उसपर 
ओ उसकी दीवानी
हम भी लिखेंगे कुछ ना कुछ 
कलम पकड़ कर क्यों है छुपानी

जग जाहिर है बिल्ला नहीं पकड़ रहा है चूहे 
चूहे करते हैं बेइमानी
लगी हुई है खरीदी बिल्लियों की फ़ौज 
कर रही है अपनी मनमानी

शब्द कई हैं बिल्ले पर कहने 
एक नहीं सारे हैं गालियों में नहीं गिनानी
खड़े हो जायेंगे सारे सफेदपोश फर्जी 
समझायेंगे कोर्ट कचहरी दीवानी

‘उलूक’ लिख आईना-ए-लेखक 
देख सकें लिखने वाले सच की कहानी
इंतज़ार है 
है मर्यादा पुरुषोत्तम 
दिखेगा राम नाम सत्य ज़ुबानी ज़ुबानी |

चित्र साभार: https://www.yourquote.in/

सोमवार, 8 अप्रैल 2024

‘उलूक’ थे और वो थे बस कुछ बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे

 

किताबें तो एक सी थी लिखा भी एक सा था
शायद पढ़ाने वाले ही कुछ और थे
लिखे हुए पन्नो पर हस्ताक्षर थे एक समय के ही थे
घड़ी पहने लोग कोई और थे

सिहासन नहीं था कहीं भी ना ही था राजा कहीं
समझाने वाले थे मगर कहीं और थे
समझ अपनी थी अपनी उनकी समझ उनकी ही थी
और थे कुछ चोर मगर चोर थे

हम भी देखते थे चोर थे वो भी देखते थे चोर थे
चोर ही थे मगर जो सच में चोर थे
चोर कहाँ चोर होते थे जहां सब तरफ सुने थे बस मोर थे
मोर थे हर तरफ बस मोर थे

चोर थे ही जरूरत बन चुकी थी इस तरफ थे बेकार थे
उस तरफ आये इक शोर थे
चोर होना ही जरूरी था जो नहीं हो पा रहे थे
सच में बेचारे थे बहुत ही कमजोर थे

चोर होना था यही सन्देश होना था मशहूर होना था
नहीं कहना था बस मजबूर थे
‘उलूक’ की किताबें थीं बंद थीं दिमाग था मगर बस था
वो कुछ  बेवकूफों में गिने जाते थे मगर मशहूर थे |

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