उलूक टाइम्स

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

फेसबुक में पोस्ट की गयी तस्वीर और स्टेटमेंट ही देशभक्ति होती है सारे देशभक्त समझ रहे होते हैं

जरूरत
नहीं है
आज के
अर्जुनों को
गाँडीव की
ना ही शंख
पाँचजन्य की
ना ही
जरूरत है
कृष्ण और
उसके
अर्जुन से किये
संवादों की
या किसी
गीता की
आज के
सारे अर्जुन
धृतराष्ट्र होने
में गर्व
महसूस
करते हैं
आँखे होती हैं
फिर भी
गाँधारी की
तरह नहीं
करते हैं
खुली आँख से
अपने सामने
हो रहे
कुछ भी को
देखना पसंद
नहीं करते हैं
जमाने के साथ
चलने
उठने बैठने
के शौकीन
होते हैं
अपने खुद के
दिमाग से
कुछ भी
सोचना अपनी
तौहीन
समझते हैं
दूर अंधेरे में
बैठे किसी
चमकीले
चमगादड़ की
चमक से
प्रभावित हो
कहीं भी
उल्टा लटक
किसी और
की उल्टी
बात पर
उल्टी कर
लेना पसन्द
करते हैं
अपने
आस पास
हो रही
लूट पर
चुप रहते हैं
कुछ नहीं
 कहते हैं
बेवकूफ
समझते हैं
दुनियाँ को
भौँकते हैं
अपनी
गलियों से
दूर कहीं
जा कर
वीडियो
फेसबुक में
अपलोड
किये होते हैं
‘उलूक’
जानता है
अपने मोहल्ले
अपनी गली
अपने शहर
के सियारों
को
नोच लेता है
अपने सिर के
बाल दो चार बस
जब सारे
शहर के सियार
देश के वफादार
कुत्ते होने का
दम भर कर
फेसबुक में
भौंक रहे होते हैं ।

 चित्र साभार: www.canstockphoto.com

सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

कर कुछ उतारने की कोशिश तू भी कभी 'उलूक'

कोशिश
कर तो सही
उतारने की
सब कुछ कभी

फिर दौड़ने
की भी
उसके बाद
दिन की
रोशनी में ही
बिना झिझक

जो सब
कर रहे हैं
क्यों नहीं हो
पा रहा है तुझसे

सोचने का
विषय है तेरे लिये

उनके लिये नहीं
जिन्होने उतार
दिया है सब कुछ
कभी का
सब कुछ के लिये

हर उतारा हुआ
उतारे हुए के साथ
ही खड़ा होता है
तू बस देखता
ही रहता है

दोष
किसका है
उतार कर तो देख
बस एक बार
शीशे के सामने ही सही

अकेले में
समझ सकेगा
पहने हुऐ
होने के नुकसान

जाति उतारने
की बात नहीं है

क्षेत्र उतारने
की बात नहीं है

धर्म उतारने
की बात नहीं है

कपड़े उतारने
की बात भी नहीं है

बात उतरे हुए
को सामने से
देख कर ही
समझ में आती है

निरन्तरता
बनाये रखने
के लिये वैसे भी
बहुत जरूरी है
कुछ ना कुछ
करते चले जाना

समय के साथ
चलने के लिये
समय की तरह
समय पहने तो
पहन लेना

समय उतारे तो
उतार लेना अच्छा है

सब को सब की
सारी बातें समझ में
आसानी से नहीं आती हैं

वरना आदमी
के बनाये आदमी
के लिये नियमों
के अन्दर किसी को
आदमी कह देने
के जुर्म में कभी भी
अन्दर हो सकता है
कोई भी आदमी

आमने सामने
ही पीठ करके
एक दूसरे से
निपटने में
लगे हुऐ
सारे आदमी

अच्छी तरह
जानते हैं
उतारना पहनना
पहनना उतारना

तू भी लगा रह
समेटने में अपने
झड़ते हुए परों को
फिर से चिपकाने की
सोच लिये ‘उलूक’

जिसके पास
उतारने के लिये
कुछ ना हो
उसे पहले कुछ
पहनना ही पड़ता है

पंख ही सही
समय की मार
खा कर गिरे हुए ।

चित्र साभार:
www.clipartpanda.com

मंगलवार, 27 सितंबर 2016

रोज की बकबक से हटकर कुछ शब्द फेसबुक मित्र के आग्रह पर


                           सुमित जी की पुत्री अदिति के जन्मदिन पर 


https://www.facebook.com/photo.php?fbid=672690342904828&set=a.110634102443791.17445.100004916046065&type=3&theater 


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आओ 
बिटिया 
आज 
मनायें 
हम सब 
मिलकर 
तुम्हारा 
जन्मदिन 
थोड़ा थोड़ा 
सब मुस्कुराएं 
बाँटे खुशियाँ 
वर्ष के एक दिन 
कुछ बन जायें 
सुन्दर से फूल 
कुछ मधु 
मक्खियाँ 
और कुछ 
रंगबिरंगी 
तितलियाँ 
आओ बिटिया
आज सब 
मिलजुल कर 
इतना फैलायें 
रंग और खुश्बू 
इतना खिलायें 
और बाँटें 
प्यार से मधु 
आज के शुभ 
दिन के 
लिये ही नहीं 
आने वाले वर्ष 
के लिये ही नहीं 
हमेशा के लिये 
इतना इतना 
हो जाये 
जो सब की 
पहुँच तक 
पहुँचता 
चला जाये 
थोड़ा थोड़ा 

आओ बिटिया 
आज तुम्हारे 
जन्मदिन 
की इस 
दावत को 
यादगार 
एक बनायें 

बेटियों के प्यार 
बेटियों के व्यवहार 
बेटियों के उदगार 

आओ 
आज के दिन 
सब को बतायें 
बेटियों के सर्वश्रेष्ठ 
होने की बात को 
 गर्व से फैलायें 

आओ बिटिया 
आज तुम्हारे 
जन्मदिन 
के साथ सारी 
बिटियाओं 
का जन्मदिन 
मनायें 
बिटिया के 
जन्मदिन 
को इतना 
यादगार 
बनायें 

आओ 
बिटिया 
हम सब 
और तुम 
मिलकर 
फूलों 
तितलियों 
भवरों 
पेड़ पौंधौं 
नदी पहाड़ 
बादल 
समुद्र 
के साथ 
तुम्हारा 
जन्मदिन 
मनायें 
कुछ इस 
तरह से 
जैसे 
सब कुछ 
मिलकर 
इंद्रधनुष 
बन जाये
प्रकृति में 
प्रकृति का 
समावेश 
हो जाये 
याद करें 
सारी 
बेटियों को 
प्रार्थना करें 
सब के लिये 
सारी की 
सारी दुआयें 
तुम्हारे लिये 
एकत्रित 
कर लायें 
आओ 
बिटिया
आज 
मनायें 
हम सब 
मिलकर 
तुम्हारा 
जन्मदिन। 

 चित्र साभार: www.ahsbt.co

शनिवार, 24 सितंबर 2016

तू भी कुछ फोड़ना सीख ‘उलूक’ धमाके करने लगा है कुछ भी फोड़ कर हर मुँगेरीलाल महान देश का

कुछ फोड़
कुछ मतलब
कुछ भी
फोड़ने में
कुछ लगता
भी नहीं है
नफे नुकसान
का कुछ
फोड़ लेने
के बाद
किसी ने
कुछ सोचना
भी नहीं है
फोड़ना कहीं
जोड़ा और
घटाया हुआ
दिखता भी
नहीं है
बेहिसाब
फूट रहा
हो जहाँ
कुछ भी
कहीं भी
कैसे भी
और
फोड़ रहा
हो हर कोई
अपनी औकात
के आभास से
धमाका बनाया
जा रहा हो
खरीदने बेचने
के हिसाब से
आज जब
इतना
आजाद है
आजादी
और
कुछ ना कुछ
फोड़ने की
हर किसी
में है बहुत
ज्यादा बेताबी
तू भी नाप
तू भी तौल
अपनी औकात
और
निकल बाहर
परवरिश
में खुद के
अन्दर पनपे
फालतू मूल्यों
के बन्धन
सारे खोल
और
फिर फोड़
कुछ तो फोड़
फोड़ेगा नहीं
तो धमाका
कैसे उगायेगा
धमाका नहीं
अगर होगा
बाजार में
क्या बेचने
को जायेगा
फोड़
कुछ भी
फोड़
किसी ने
नहीं देखनी
है आग
किसी ने
नहीं देखना
है धुआँ
बाकी करता
रह सारे
काम अपने
अपनी दिनचर्या
चाहे नोंच माँस
चाहे नोंच हड्डियाँ
चाहे जमा कर
चाहे सुखा
बूँद बूँद
इन्सानी खून
पर फोड़
कुछ फोड़
नहीं फोड़ेगा
अपने संस्कारी
उसूलों में
दब दबा
जायेगा
सौ पचास
साल बाद
देश द्रोही
या
गाँधी
की पात में
खड़ा कर
तुझे एक
अपराधी
घोषित कर
दिया जायेगा
इसलिये
बहुत जरूरी है
कुछ फोड़।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

बुधवार, 21 सितंबर 2016

‘उलूक’ वन्दे माता नमो जय ऊँ काफी है इससे ज्यादा कहाँ से चढ़ कर कूदना चाहता है

कहाँ कहाँ
और
कितना कितना
रफू करे
कोई बेशरम
और
करे भी
किसलिये
जब फैशन
गलती से
उधड़ गये को
छुपाने का नहीं
खुद बा खुद
जितना हो सके
उधाड़ कर
ज्यादा से ज्यादा
हो सके तो
सब कुछ
बेधड़क
दिखा ले
जाने का है

इसी बात पर
अर्ज किया है

कुछ ऐसा है कि
पुराने किसी दिन
लिखे कुछ को
आज दिखाने
का सही मौका है
उस समय मौका
अपने ही
मन्दिर का था
समय की
बलिहारी
होती है
जब वैसा ही
देश में
हो जाता है

दीमकें छोटी
दिखती हैं
पर फैलने में
वक्त नहीं लेती हैं

तो कद्रदानो सुनो

जिस दिन
एक बेशरम को
शरम के ऊपर
गद्दी डाल कर
बैठा ही
दिया जाता है
हर बेशरम को
उसकी आँखों से
उसका मसीहा
बहुत पास
नजर आता है
शरम के पेड़
होते हैं
या
नहीं होते हैं
किसे जानना
होता है
किसे चढ़ना
होता है
जर्रे जर्रे पर
उगे ठूँठों
पर ही जब
बैठा हुआ
एक बेशरम
नजर आता है

अब हिन्दू
 की बात हो
मुसलमान
की बात हो
कब्र की
बात हो
या
शमशान
की बात हो

अबे जमूरे
ये हिन्दू
मुसलमान
तक तो
सब ठीक था
ये कब्र और
शमशान
कहाँ से
आ गये
फकीरों की
बातों में


समझा करो
खिसक गया
हो कोई तो
फकीर याद
आना शुरु
हो जाता है

अब खालिस
मजाक हो
तो भी
ये सब हो
ही जाता है

अब क्या
कहे कोई
कैसे कहे
समझ
अपनी अपनी
सबकी
अपनी अपनी
औकात की

दीमक के
खोदे हुऐ के
ऊपर कूदे
पिस्सुओं से
अगर एक
बड़ा मकान
ढह जाता है

क्या सीन
होता है

सारा देश
जुमले फोड़ना
शुरु हो जाता है

‘उलूक’
तू खुजलाता रह
अपनी पूँछ

तुझे पता है
तेरी खुद की
औकात क्या है

ये क्या कम है
आता है
यहाँ की
दीवार पर
अपने भ्रम
जिसे सच
कहता है
चैप जाता है

छापता रह खबरें

कौन “होशियार”
 बेवकूफों के
अखबार में
छपी खबरों से
हिलाया जाता है ।

चित्र साभार: http://www.shutterstock.com/