उलूक टाइम्स: महान
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शनिवार, 24 सितंबर 2016

तू भी कुछ फोड़ना सीख ‘उलूक’ धमाके करने लगा है कुछ भी फोड़ कर हर मुँगेरीलाल महान देश का

कुछ फोड़
कुछ मतलब
कुछ भी
फोड़ने में
कुछ लगता
भी नहीं है
नफे नुकसान
का कुछ
फोड़ लेने
के बाद
किसी ने
कुछ सोचना
भी नहीं है
फोड़ना कहीं
जोड़ा और
घटाया हुआ
दिखता भी
नहीं है
बेहिसाब
फूट रहा
हो जहाँ
कुछ भी
कहीं भी
कैसे भी
और
फोड़ रहा
हो हर कोई
अपनी औकात
के आभास से
धमाका बनाया
जा रहा हो
खरीदने बेचने
के हिसाब से
आज जब
इतना
आजाद है
आजादी
और
कुछ ना कुछ
फोड़ने की
हर किसी
में है बहुत
ज्यादा बेताबी
तू भी नाप
तू भी तौल
अपनी औकात
और
निकल बाहर
परवरिश
में खुद के
अन्दर पनपे
फालतू मूल्यों
के बन्धन
सारे खोल
और
फिर फोड़
कुछ तो फोड़
फोड़ेगा नहीं
तो धमाका
कैसे उगायेगा
धमाका नहीं
अगर होगा
बाजार में
क्या बेचने
को जायेगा
फोड़
कुछ भी
फोड़
किसी ने
नहीं देखनी
है आग
किसी ने
नहीं देखना
है धुआँ
बाकी करता
रह सारे
काम अपने
अपनी दिनचर्या
चाहे नोंच माँस
चाहे नोंच हड्डियाँ
चाहे जमा कर
चाहे सुखा
बूँद बूँद
इन्सानी खून
पर फोड़
कुछ फोड़
नहीं फोड़ेगा
अपने संस्कारी
उसूलों में
दब दबा
जायेगा
सौ पचास
साल बाद
देश द्रोही
या
गाँधी
की पात में
खड़ा कर
तुझे एक
अपराधी
घोषित कर
दिया जायेगा
इसलिये
बहुत जरूरी है
कुछ फोड़।

चित्र साभार: www.shutterstock.com

रविवार, 14 जून 2015

कोशिश कर घर में पहचान महानों में महान



एक खेत 
सौ दो सौ किसान 
किसी का हल किसी का बैल 
बबूल के बीज आम की दुकान 

जवानों में
बस 
वही जवान 
जिसके पास एक से निशान 

बंदूकें जंग 
खाई हुई 
उधार की गोलियाँ 
घोड़े दबाने के लिये अपने छोड़ 
सामने वाले कंधे को पहचान 

मुँह में
रामायण 
गीता बाईबिल और कुरान 
हाथ में गिलास बोतल में सामान 

अपने मुद्दे मुद्दे 
दूसरे के मुद्दे बे‌ईमान 
घर में लगे तो लगे आग पानी ले चल रेगिस्तान 

‘उलूक’
बंद रख 
नाक मुँह और कान 
अपनी अपनी ढपली अपने अपने गान 
जय जवान जय किसान ।

चित्र साभार: cybernag.in

शनिवार, 13 सितंबर 2014

मित्र “अविनाश विद्रोही” आपके आदेश पर इतना ही कुछ मुझ से आज कहा जायेगा

मित्र आपने
आदेश दिया है

उस पर
और उसके
चित्र के पाँव
सड़क पर
दिखा दिखा कर
धो कर पीने
वालों पर
कुछ लिखने
को कहा है

आपके
आदेश का
पालन करने
जा रहा हूँ

मैं आपके
उस सबसे
बड़े महान
के ऊपर
आज कुछ
लिखने ही
जा रहा हूँ

नाम
इसलिये नहीं
ले पा रहा हूँ

कहीं
इस बदनामी
का फायदा भी वो
उठा ले जायेगा

बहुत दिन
पोस्टरों में
रहा है गली गली
इस देश की

आने वाले
समय के
मंदिरों की
मूर्ति हो जायेगा

आज
साईं बाबा
को बाहर
फेंका जा रहा है

कल
हर उस
खाली जगह
पर वो
खुद ही जाकर
अपना बैठ जायेगा

उसके
चमचों की
बात कर के क्यों
अपना दिमाग
खराब करते हो

अभी
बहुत सालों तक
हर गली हर पेड़ पर
वो ही लटका हुआ
नजर आयेगा

इस देश
की किस्मत
अच्छी कही जाये
या बुरी

तेरी मेरी
किस्मत में
फुल स्टोप
उसके चमचे
का कोई चमचा
ही लगायेगा

सोच कर
आया था
‘उलूक’

पाँच साल
पूरे हो चुके
ब्लाग पर

अब शायद
गली की
बातों को छोड़
घर की रोशनी पर
कुछ लिखा जायेगा

किसे
मालूम था
फेस बुक के
संदेश बक्से में

तेरा संदेश
उस पर
और
उसके चमचों पर
कुछ ना कुछ
लिख ले जाने
को उकसायेगा

उसके
पाँच सालों पर है
तेरी काली नजर

पर
अगले पाँच साल भी
उसका कोई ना कोई

चमचा
तुझे जरूर
कहीं ना कहीं रुलायेगा

क्या पता

उसकी
हजार फीट
की प्रतिमा
बनाने के
नाम पर
कुछ लोहा
माँगने ही
तेरे घर ही
आ जायेगा ।

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

रविवार, 18 मई 2014

लिख लिया कर लिखने के दिन जब आने जा रहे होते हैं

घर पर गिरने
गिरने को हो
रहे सूखे पेड़ों
को कटवा लेने
की अनुमति
लेने की अर्जी
पिछले दो साल से
सरकार के पास
जब कहीं सो
रही होती है
पता चलता है
सरकार उलझी होती है
कहीं जिंदा पेड़ों के
धंधेबाजों के साथ
इसी लिये मरे हुऐ
पेड़ों के लिये
बात करने में
देरी हो रही होती है
देवदार के जवान पेड़
खुले आम पर्दा
महीन कपड़े
का लगाकर
शहीद किये
जा रहे होते हैं
जरूरत ही नहीं
पड़ती है धूल की
आँखों में झोंकने
की किसी के
कटते पेड़ों के
बगल से
गुजरते गुजरते
आँखें जब कहीं
ऊपर आसमान
की ओर हो
रही होती हैं
बहुत लम्बे समय
से चल रहा होता
है कारोबार
पेड़ों की जगह
उगाये जा रहे होते हैं
कंक्रीट के खम्बे
एक की जगह चार चार
शहर के लोग ‘महान’ में
कट रहे जंगलों की
चिंता में डूबते
जा रहे होते हैं
अपने घर में हो रहे
नुकसान की बात कर
अपनी छोटी सोच का
परिचय शायद नहीं
देना चाह रहे होते हैं
उसी के किसी आदमी
के आदमी के आदमी
ही होते हैं जिसके लिये
लोग आँख बंद कर
ताली बजा रहे होते हैं
ऐसे ही समय में
‘उलूक’ कुछ
तेरे भी जैसे होते हैं
जो कहीं दूर किसी
दीवार पर कबूतर
बना रहे होते हैं ।