उलूक टाइम्स: रवीश कुमार
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शुक्रवार, 2 अगस्त 2019

बधाई प्रिय रवीश कुमार एक अच्छा दिन आया है आज कई सालों के बाद



एक 

लम्बे 
अन्तराल
के
पश्चात 

जैसे 
कुछ सुबह 
सी हुई

एक 
काली 
घुप्प अंधेरी 
रात के बाद 

रोशनी 
की
एक 
किरण आई 

सालों
से 
अन्धे पड़े हुऐ 

उनींदे 
खयालातों
को 
कुछ कुछ याद 

अप्रत्याशित 

सुना 
समाचार 

रवीश 
को मिला है 

नोबेल 
एशिया का 

सोच से 
बाहर
की 
हुई
वैसे भी 

इस 
समय
के 
हिसाब से 
ये
बात 

उर्जा 
संचरित
हुई 

मिला 
आत्मबल
को 

जैसे 
खुद का
ही 

लौट कर 

चुका 

थोड़ा
कुछ 
बढ़ा 
घटा घटाया 
आत्मविश्वास 

मेहनत 
बरबाद
नहीं होती 

ईमानदारी 
से
लगे रहना 

प्रश्न 
पूछना
सत्ता से 
निर्भय होकर 

सबके
बस की 
नहीं होती 
इस
तरह की बात 

समझ 
अपनी अपनी 
मतलब से 
अपनी बनाये 
लोगों को 

लग
रहा होगा 
लगना
ही चाहिये 

झटका 
और 
निश्वास 

दिख 
रहा है 

दीवालियापन 
सोच का 
सिकुड़
चुके 
दिमागों का 

बधाई 
की
जगह 
कर रहे हैं 

जो
जुगाली 
गालियों की 

बाँधे 
हाथ में हाथ 

गर्व 
देश के 
लिये है 

देशवासियों 
के लिये है 

सम्मानित 
हुआ है 

एक 
देशवासी ही 

खुश है 
‘उलूक’ भी 
हाथ में लिये 
आईना 

शक्ल 
अपनी 
सोचता हुआ 

आँख 
बन्द करके 

दिमाग से 
देखने के 
करतबों की 

किताबों 
के नाम 

करता 
हुआ याद । 

चित्र साभार: https://www.business-standard.com

रविवार, 30 अगस्त 2015

कुछ समझ आता है ? : रवीश कुमार सही में दलाल है - रवीश कुमार खुद ही बताने आता है

अक्ल
ठिकाने
लग जाती है

जब
कभी बात
ऐसी ही कुछ
अजीब सी

सामने से
आ जाती है

अच्छा खासा
तमीजदार
ईमानदार
इज्जतदार

नजर
आने वाले
एक आदमी की
जबान कहने
लग जाती है

खुद
उसी के लिये
कि वो एक दलाल है

ना उसके पास
माल नजर आता है

ना ही किसी
बड़ी किताब में
उसे कहीं मालामाल
कहा जाता है

अब
कैसे बताये
कौन समझाये

बिना
दलाली
की डिग्री
पास किये

कोई कैसे
ऐसे वैसे

दलाल भी
हो जाता है

कहने से
क्या होता है
सबूत नहींं
हो भी अगर

फर्जी एक
कहीं से

जुगाड़ कर के

लाना भी
बहुत जरूरी
हो जाता है

दलालों की
जमात को
दलाल कह देने से
यही सब हो जाता है

इसीलिये
इस जमाने में

शब्दकोश को
खाली खोल के
शब्दों को नहीं
चुना जाता है

बाहर
निकाल कर
शब्द

अल्पसंख्यक है
या
बहुसंख्यक है
देखने के लिये
तोला भी जाता है

ज्यादा
चोरों के बीच
जैसे अब एक
ईमानदार होने
का मतलब ही
चोर हो जाता है

नहीं भी
होता है तो
किसी तरह घेर कर
बना दिया जाता है

सोचता
क्यों नहीं
कहने से पहले

दलाल होना
बिना दलाली किये
और
कह देना
दलाल खुद को ही

बहुत बड़ा
एक जुर्म
माना जाता है

बिना माल के
मालामाल हुऐ बिना
मान लेने वाले को

आज दलाल कतई
नहीं माना जाता है

बहुत अच्छा
करता है
‘उलूक’

दलाली
किये बिना
दलाल होने की
सोचता ही नहीं है

होने होने
होते होते
से पहले ही
शरमा जाता है ।

चित्र साभार:
http://www.shabdankan.com/2015/08/ravish-kumar-sahi-me-dalal-hai.html