अक्ल
ठिकाने
लग जाती है
जब
कभी बात
ऐसी ही कुछ
अजीब सी
सामने से
आ जाती है
अच्छा खासा
तमीजदार
ईमानदार
इज्जतदार
नजर
आने वाले
एक आदमी की
जबान कहने
लग जाती है
खुद
उसी के लिये
कि वो एक दलाल है
ना उसके पास
माल नजर आता है
ना ही किसी
बड़ी किताब में
उसे कहीं मालामाल
कहा जाता है
अब
कैसे बताये
कौन समझाये
बिना
दलाली
की डिग्री
पास किये
कोई कैसे
ऐसे वैसे
दलाल भी
हो जाता है
कहने से
क्या होता है
सबूत नहींं
हो भी अगर
फर्जी एक
कहीं से
जुगाड़ कर के
लाना भी
बहुत जरूरी
हो जाता है
दलालों की
जमात को
दलाल कह देने से
यही सब हो जाता है
इसीलिये
इस जमाने में
शब्दकोश को
खाली खोल के
शब्दों को नहीं
चुना जाता है
बाहर
निकाल कर
शब्द
अल्पसंख्यक है
या
बहुसंख्यक है
देखने के लिये
तोला भी जाता है
ज्यादा
चोरों के बीच
जैसे अब एक
ईमानदार होने
का मतलब ही
चोर हो जाता है
नहीं भी
होता है तो
किसी तरह घेर कर
बना दिया जाता है
सोचता
क्यों नहीं
कहने से पहले
दलाल होना
बिना दलाली किये
और
कह देना
दलाल खुद को ही
बहुत बड़ा
एक जुर्म
माना जाता है
बिना माल के
मालामाल हुऐ बिना
मान लेने वाले को
आज दलाल कतई
नहीं माना जाता है
बहुत अच्छा
करता है
‘उलूक’
दलाली
किये बिना
दलाल होने की
सोचता ही नहीं है
होने होने
होते होते
से पहले ही
शरमा जाता है ।
चित्र साभार:
http://www.shabdankan.com/2015/08/ravish-kumar-sahi-me-dalal-hai.html
ठिकाने
लग जाती है
जब
कभी बात
ऐसी ही कुछ
अजीब सी
सामने से
आ जाती है
अच्छा खासा
तमीजदार
ईमानदार
इज्जतदार
नजर
आने वाले
एक आदमी की
जबान कहने
लग जाती है
खुद
उसी के लिये
कि वो एक दलाल है
ना उसके पास
माल नजर आता है
ना ही किसी
बड़ी किताब में
उसे कहीं मालामाल
कहा जाता है
अब
कैसे बताये
कौन समझाये
बिना
दलाली
की डिग्री
पास किये
कोई कैसे
ऐसे वैसे
दलाल भी
हो जाता है
कहने से
क्या होता है
सबूत नहींं
हो भी अगर
फर्जी एक
कहीं से
जुगाड़ कर के
लाना भी
बहुत जरूरी
हो जाता है
दलालों की
जमात को
दलाल कह देने से
यही सब हो जाता है
इसीलिये
इस जमाने में
शब्दकोश को
खाली खोल के
शब्दों को नहीं
चुना जाता है
बाहर
निकाल कर
शब्द
अल्पसंख्यक है
या
बहुसंख्यक है
देखने के लिये
तोला भी जाता है
ज्यादा
चोरों के बीच
जैसे अब एक
ईमानदार होने
का मतलब ही
चोर हो जाता है
नहीं भी
होता है तो
किसी तरह घेर कर
बना दिया जाता है
सोचता
क्यों नहीं
कहने से पहले
दलाल होना
बिना दलाली किये
और
कह देना
दलाल खुद को ही
बहुत बड़ा
एक जुर्म
माना जाता है
बिना माल के
मालामाल हुऐ बिना
मान लेने वाले को
आज दलाल कतई
नहीं माना जाता है
बहुत अच्छा
करता है
‘उलूक’
दलाली
किये बिना
दलाल होने की
सोचता ही नहीं है
होने होने
होते होते
से पहले ही
शरमा जाता है ।
चित्र साभार:
http://www.shabdankan.com/2015/08/ravish-kumar-sahi-me-dalal-hai.html