एक
लम्बे
अन्तराल
के
पश्चात
पश्चात
जैसे
कुछ सुबह
सी हुई
एक
एक
काली
घुप्प अंधेरी
रात के बाद
रोशनी
की
एक
एक
किरण आई
सालों
से
से
अन्धे पड़े हुऐ
उनींदे
खयालातों
को
को
कुछ कुछ याद
अप्रत्याशित
सुना
समाचार
रवीश
को मिला है
नोबेल
एशिया का
सोच से
बाहर
की
की
हुई
वैसे भी
वैसे भी
इस
समय
के
के
हिसाब से
ये
बात
बात
उर्जा
संचरित
हुई
हुई
मिला
आत्मबल
को
को
जैसे
खुद का
ही
ही
लौट कर
आ
चुका
चुका
थोड़ा
कुछ
कुछ
बढ़ा
घटा घटाया
आत्मविश्वास
मेहनत
बरबाद
नहीं होती
नहीं होती
ईमानदारी
से
लगे रहना
लगे रहना
प्रश्न
पूछना
सत्ता से
सत्ता से
निर्भय होकर
सबके
बस की
नहीं होती
इस
तरह की बात
तरह की बात
समझ
अपनी अपनी
मतलब से
अपनी बनाये
लोगों को
लग
रहा होगा
लगना
ही चाहिये
ही चाहिये
झटका
और
निश्वास
दिख
रहा है
दीवालियापन
सोच का
सिकुड़
चुके
चुके
दिमागों का
बधाई
की
जगह
जगह
कर रहे हैं
जो
जुगाली
गालियों की
बाँधे
हाथ में हाथ
गर्व
देश के
लिये है
देशवासियों
के लिये है
सम्मानित
हुआ है
एक
देशवासी ही
खुश है
‘उलूक’ भी
हाथ में लिये
आईना
शक्ल
अपनी
सोचता हुआ
आँख
बन्द करके
दिमाग से
देखने के
करतबों की
किताबों
के नाम
करता
हुआ याद ।
चित्र साभार: https://www.business-standard.com