उलूक टाइम्स: समझौता
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शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

करे तो सही कोई समझौता वो करना सिखाना चाहता है

जानवर को पालतू
हो जाने में कोई
परेशानी नहीं होती है
काबू में आसानी
से आ जाता है
कोशिश करता है
सामंजस्य बैठाने की
हर अवस्था में
अगर बांध दिया
जाता है जंजीर से
तब भी मान लेता है
बंधन को और
खुश रहता है
ऐसा लगता है
क्योंकि खुल गया कभी
तो कहीं नहीं जाता है
वापस लौट आता है
लगता है जानवर को
आदमी बहुत अच्छी
तरह से समझ
में आता है
आदमी भी तो आदमी
से हमेशा सामंजस्य
बिठाना चाहता है
बराबरी की बने रहे रिश्तेदारी
इसलिये स्टूल में बैठ कर
सामने वाले को जमीन
में बैठाना चाहता है
स्टूल में बैठना बहुत
ही दुखदायी होता है
हर बात में इसी बात को
समझाना चाहता है
बना रहता है सामंजस्य
हमेशा तब तक जब तक
जमीन पर बैठा आदमी
अपने लिये भी एक
स्टूल नहीं बनवाना चाहता है
कोई स्टूल कोई रस्सी
कोई जंजीर कहीं भी
किसी को नजर
नहीं आती है
हर किसी के लिये
हर कोई एक
अलग ही तरीका
इस सब में
अपनाना चाहता है
दिखती रहे सबको
रेगिस्तान में हरियाली
समझदारी से
सारी बातों को
इशारों में ही समझा
ले जाना चाहता है
आदमी की तरह बना रहे
आदमी की तरह करता रहे
आदमी की तरह दिखता रहे
हर समय हर जगह
बस अपने सामने
अपने आस पास ही
एक जानवर जैसा ही
बना ले जाना चाहता है
इस तरह के समझौते
होते रहे आपस में
वो भी मिल जुल कर
एक का समझौता
दूसरे को कभी भूल कर भी
बताना नहीं चाहता है ।

सोमवार, 2 सितंबर 2013

कभी कुछ अच्छा सुनाई दे तो अच्छा कहा जाये

सुन

कब तक 


शरम
का लबादा

ओढे़
तू रहेगा

बाप दादा
के जमाने
की सोच

कब
जाकर के
तू कहीं छोडे़गा

हमाम
में भी कपडे़
पहन कर
चला आता है

तरस
आता है
तेरे जैसों की
अक्ल पर कभी

ऊपर
वाला भी
तेरे जैसों के लिये
कहाँ तक करेगा

और
क्या क्या
कर के छोडे़गा

भूखों
की भूख

मान
भी लेते हैं
तू रोटी दे कर
मिटा ले जायेगा

नंगों
को कपडे़
कुछ उड़ा कर
भी आ जायेगा

पर
बहुत कुछ
होते हुऎ भी

अगर
कोई भूखा
और
नंगा हो जायेगा

तो
तू क्या
कोई भी
कहीं भी

ऎसों
के लिये
कुछ भी नहीं
कर पायेगा

ऎसे में

कैसे
सोच लेता है तू

कभी
एक अच्छा
सा गीत
या गजल
लिख ले जायेगा

किसी भी
चोर से
पूछ के आजा
आज भी जाकर

हर कोई
अन्ना का
रिश्तेदार
अपने को
ही बतायेगा

तेरी तो
उससे
भी नहीं है
कोई रिश्तेदारी

अंत में
तू खुद ही

एक चोर
साबित हो जायेगा

सबको
नजर
आती रहेंगी
तितलियाँ
और
फूल भी

बस
एक तू ही
अपना जैसा

मौजू
उठा के
ले आयेगा

मान
भी लेते हैं
लिख लेगा
दो चार
बेकार की बातों
के कुछ पुलिंदे

पढ़ने
को कौन
आयेगा

क्यों आयेगा

और
आखिर
कब तक
आ पायेगा

लिखना
पढ़ना तो
बौद्धिक भूख
मिटाने के लिये
किया जाता है

ये
किसने कह दिया

दिमाग
में भरा
गोबर भी
इसी में
दिखा
दिया जाता है

कभी
किसी के
लिये लडे़गा

कभी
खुद से लडे़गा

कभी
अपनों
से लडे़गा

तू
अपनी
तलवार
हवा में ही
इस तरह
चलाता
चला जायेगा

जिसके
लिये लडे़गा
उसकी भी
गालियाँ खायेगा

मौका
मिलते ही

उसे भी
रोटी में
झपटता
हुआ पायेगा

कुछ नहीं
कह पायेगा

यूँ ही बस
झल्लायेगा

बहुत
तेजी से
बदल रही है
भाई सभ्यता

इस
बात को
पता नहीं

कब
तू समझ पायेगा

सिद्धांत
किसी के
नहीं होते हैं
आज के जमाने में

मौका
मिलते ही
हर कोई

समझौता
कर ले जायेगा

मुझे पता है

तू
कभी भी नहीं
सुधर पायेगा

इन
सब में से भी

तुझे
कूडे़दान में
कुछ कूड़ा
भरने का
मौका
मिल जायेगा

सोच
में रख लेना
फिर भी अपनी

एक गीत
और
एक गजल को

क्या पता
किसी दिन
कुछ नहीं
होगा कहीं

और
शायद
तुझसे
उस दिन
कुछ नहीं कहा जायेगा ।