उलूक टाइम्स: नंगों
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बुधवार, 1 जून 2016

मुश्किल है बहुत अच्छी भली आँखों के अंधों का कोई करे तो क्या करे

अच्छा है
सफेद पन्ने
पर खींचना
कुछ लकीरें

सफेद
कलम से
सफाई
के साथ

किसे
समझनी
होती हैं
लकीरें

फकीरों के
रास्ते में
हरी दूब हो
या मिट्टी

शिकायत
चाँद और
चाँदनी की
भी करे कोई
तो क्या करे

अपनी
अपनी
आँखों से
हर कोई
देखता है
नीम को

अब देख कर
भी नीम की
हरियाली से
कढ़वाहट
आ रही है
कहे कोई
तो कोई
क्या कहे
और क्या करे

व्हिस्की
दिवस है
सुना आज

पीने वाले
क्या कर
रहे होंगे

कौन
पता करे
किससे
पता करे
कितना
पता करे

घोड़े दबाने
के शौक
रखने वाले
बड़े शौक से
बनाते हैं
आदमी
को बंदूक

घर से लेकर
गली मोहल्ले
और
शहर में

घोड़े
हर जगह
चार टाँग
और
एक पूँछ
वाले मिलें

ये भी
कौन सा
जरूरी है 

मिलें भी
तो घोड़े
भी करें
तो क्या करें

सारी आग
लिखने की
सोचते सोचते
बची हुई राख
लिख लेने
के बाद

कौन ढूँढे
चिंगारी
बचे खुचे
जले बुझे में
क्यों ढूँढे
सब कुछ

पता होना
जानना देखना
वो सब जो
सब देखते हैं
देखने वाले
भी क्या करेंं

बेवकूफों
की तरह
रोज का रोज
कह देने वालों
की लाईन

अकेला
बना कर
खुद अपनी
छाती पीटने
वालों का कोई
करे तो क्या करे

कोई इलाज
नहीं है
उलूक तेरा

शरीफों के बीच
शरीफ कुछ करें
तो तेरा क्या करें

नंगों के बीच में
जा कर भी
देख कभी
कौन किस
तरीके से करे
क्या करे
और कैसे करे ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

सोमवार, 2 सितंबर 2013

कभी कुछ अच्छा सुनाई दे तो अच्छा कहा जाये

सुन 
कब तक शरम का लबादा ओढे़ तू रहेगा
बाप दादा के जमाने की सोच
कब जाकर के तू कहीं छोडे़गा

हमाम में भी कपडे़
पहन कर चला आता है
तरस आता है
तेरे जैसों की अक्ल पर कभी
ऊपर वाला भी
तेरे जैसों के लिये कहाँ तक करेगा
और क्या क्या कर के छोडे़गा

भूखों की भूख मान भी लेते हैं
तू रोटी दे कर मिटा ले जायेगा
नंगों को कपडे़ कुछ उड़ा कर भी आ जायेगा

पर बहुत कुछ होते हुऎ भी
अगर कोई भूखा और नंगा हो जायेगा
तो तू क्या कोई भी कहीं भी
ऎसों के लिये कुछ भी नहीं कर पायेगा

ऎसे में कैसे सोच लेता है तू
कभी एक अच्छा सा गीत
या गजल लिख ले जायेगा

किसी भी चोर से
पूछ के आजा आज भी जाकर
हर कोई अन्ना का रिश्तेदार
अपने को ही बतायेगा

तेरी तो उससे भी नहीं है कोई रिश्तेदारी
अंत में तू खुद ही
एक चोर साबित हो जायेगा

सबको नजर आती रहेंगी
तितलियाँ और फूल भी
बस एक तू ही 
अपना जैसा मौजू उठा के ले आयेगा

मान भी लेते हैं लिख लेगा
दो चार बेकार की बातों के कुछ पुलिंदे
पढ़ने को कौन आयेगा क्यों आयेगा
और आखिर कब तक आ पायेगा

लिखना पढ़ना तो 
बौद्धिक भूख मिटाने के लिये किया जाता है
ये किसने कह दिया
दिमाग में भरा गोबर भी
इसी में दिखा दिया जाता है

कभी किसी के लिये लडे़गा
कभी खुद से लडे़गा
कभी अपनों से लडे़गा
तू अपनी तलवार हवा में ही
इस तरह चलाता चला जायेगा

जिसके लिये लडे़गा
उसकी भी गालियाँ खायेगा
मौका मिलते ही
उसे भी रोटी में झपटता हुआ पायेगा

कुछ नहीं कह पायेगा 
यूँ ही बस झल्लायेगा

बहुत तेजी से बदल रही है भाई सभ्यता
इस बात को पता नहीं
कब तू समझ पायेगा

सिद्धांत किसी के नहीं होते हैं
आज के जमाने में
मौका मिलते ही हर कोई
समझौता कर ले जायेगा

मुझे पता है
तू कभी भी नहीं सुधर पायेगा
इन सब में से भी तुझे कूडे़दान में
कुछ कूड़ा भरने का मौका मिल जायेगा

सोच में रख लेना फिर भी अपनी
एक गीत और एक गजल को
क्या पता किसी दिन कुछ नहीं होगा कहीं
और शायद तुझसे
उस दिन कुछ नहीं कहा जायेगा ।