सुन
कब तक
शरम
का लबादा
ओढे़
तू रहेगा
बाप दादा
के जमाने
की सोच
कब
जाकर के
तू कहीं छोडे़गा
हमाम
में भी कपडे़
पहन कर
चला आता है
तरस
आता है
तेरे जैसों की
अक्ल पर कभी
ऊपर
वाला भी
तेरे जैसों के लिये
कहाँ तक करेगा
और
क्या क्या
कर के छोडे़गा
भूखों
की भूख
मान
भी लेते हैं
तू रोटी दे कर
मिटा ले जायेगा
नंगों
को कपडे़
कुछ उड़ा कर
भी आ जायेगा
पर
बहुत कुछ
होते हुऎ भी
अगर
कोई भूखा
और
नंगा हो जायेगा
तो
तू क्या
कोई भी
कहीं भी
ऎसों
के लिये
कुछ भी नहीं
कर पायेगा
ऎसे में
कैसे
सोच लेता है तू
कभी
एक अच्छा
सा गीत
या गजल
लिख ले जायेगा
किसी भी
चोर से
पूछ के आजा
आज भी जाकर
हर कोई
अन्ना का
रिश्तेदार
अपने को
ही बतायेगा
तेरी तो
उससे
भी नहीं है
कोई रिश्तेदारी
अंत में
तू खुद ही
एक चोर
साबित हो जायेगा
सबको
नजर
आती रहेंगी
तितलियाँ
और
फूल भी
बस
एक तू ही
अपना जैसा
मौजू
उठा के
ले आयेगा
मान
भी लेते हैं
लिख लेगा
दो चार
बेकार की बातों
के कुछ पुलिंदे
पढ़ने
को कौन
आयेगा
क्यों आयेगा
और
आखिर
कब तक
आ पायेगा
लिखना
पढ़ना तो
बौद्धिक भूख
मिटाने के लिये
किया जाता है
ये
किसने कह दिया
दिमाग
में भरा
गोबर भी
इसी में
दिखा
दिया जाता है
कभी
किसी के
लिये लडे़गा
कभी
खुद से लडे़गा
कभी
अपनों
से लडे़गा
तू
अपनी
तलवार
हवा में ही
इस तरह
चलाता
चला जायेगा
जिसके
लिये लडे़गा
उसकी भी
गालियाँ खायेगा
मौका
मिलते ही
उसे भी
रोटी में
झपटता
हुआ पायेगा
कुछ नहीं
कह पायेगा
यूँ ही बस
झल्लायेगा
बहुत
तेजी से
बदल रही है
भाई सभ्यता
इस
बात को
पता नहीं
कब
तू समझ पायेगा
सिद्धांत
किसी के
नहीं होते हैं
आज के जमाने में
मौका
मिलते ही
हर कोई
समझौता
कर ले जायेगा
मुझे पता है
तू
कभी भी नहीं
सुधर पायेगा
इन
सब में से भी
तुझे
कूडे़दान में
कुछ कूड़ा
भरने का
मौका
मिल जायेगा
सोच
में रख लेना
फिर भी अपनी
एक गीत
और
एक गजल को
क्या पता
किसी दिन
कुछ नहीं
होगा कहीं
और
शायद
तुझसे
उस दिन कुछ नहीं कहा जायेगा ।
कब तक
शरम
का लबादा
ओढे़
तू रहेगा
बाप दादा
के जमाने
की सोच
कब
जाकर के
तू कहीं छोडे़गा
हमाम
में भी कपडे़
पहन कर
चला आता है
तरस
आता है
तेरे जैसों की
अक्ल पर कभी
ऊपर
वाला भी
तेरे जैसों के लिये
कहाँ तक करेगा
और
क्या क्या
कर के छोडे़गा
भूखों
की भूख
मान
भी लेते हैं
तू रोटी दे कर
मिटा ले जायेगा
नंगों
को कपडे़
कुछ उड़ा कर
भी आ जायेगा
पर
बहुत कुछ
होते हुऎ भी
अगर
कोई भूखा
और
नंगा हो जायेगा
तो
तू क्या
कोई भी
कहीं भी
ऎसों
के लिये
कुछ भी नहीं
कर पायेगा
ऎसे में
कैसे
सोच लेता है तू
कभी
एक अच्छा
सा गीत
या गजल
लिख ले जायेगा
किसी भी
चोर से
पूछ के आजा
आज भी जाकर
हर कोई
अन्ना का
रिश्तेदार
अपने को
ही बतायेगा
तेरी तो
उससे
भी नहीं है
कोई रिश्तेदारी
अंत में
तू खुद ही
एक चोर
साबित हो जायेगा
सबको
नजर
आती रहेंगी
तितलियाँ
और
फूल भी
बस
एक तू ही
अपना जैसा
मौजू
उठा के
ले आयेगा
मान
भी लेते हैं
लिख लेगा
दो चार
बेकार की बातों
के कुछ पुलिंदे
पढ़ने
को कौन
आयेगा
क्यों आयेगा
और
आखिर
कब तक
आ पायेगा
लिखना
पढ़ना तो
बौद्धिक भूख
मिटाने के लिये
किया जाता है
ये
किसने कह दिया
दिमाग
में भरा
गोबर भी
इसी में
दिखा
दिया जाता है
कभी
किसी के
लिये लडे़गा
कभी
खुद से लडे़गा
कभी
अपनों
से लडे़गा
तू
अपनी
तलवार
हवा में ही
इस तरह
चलाता
चला जायेगा
जिसके
लिये लडे़गा
उसकी भी
गालियाँ खायेगा
मौका
मिलते ही
उसे भी
रोटी में
झपटता
हुआ पायेगा
कुछ नहीं
कह पायेगा
यूँ ही बस
झल्लायेगा
बहुत
तेजी से
बदल रही है
भाई सभ्यता
इस
बात को
पता नहीं
कब
तू समझ पायेगा
सिद्धांत
किसी के
नहीं होते हैं
आज के जमाने में
मौका
मिलते ही
हर कोई
समझौता
कर ले जायेगा
मुझे पता है
तू
कभी भी नहीं
सुधर पायेगा
इन
सब में से भी
तुझे
कूडे़दान में
कुछ कूड़ा
भरने का
मौका
मिल जायेगा
सोच
में रख लेना
फिर भी अपनी
एक गीत
और
एक गजल को
क्या पता
किसी दिन
कुछ नहीं
होगा कहीं
और
शायद
तुझसे
उस दिन कुछ नहीं कहा जायेगा ।