उलूक टाइम्स

बुधवार, 3 मई 2017

समय गवाह है पर

समय गवाह है
पर गवाही
उसकी किसी
काम की
नहीं होती है

समय साक्ष्य
नहीं हो पाता है
बिना बैटरी की
रुकी हुयी
पुरानी पड़
चुकी घड़ियों
की सूईयों का

अब इसे
शरम कहो
या बेशर्मी

कबूलने में
समय के साथ
सीखे हुऐ झूठ
को सच्चाई
के साथ

क्या किया जाये
सर फोड़ा जाये
या फूटे हुऐ
समय के टुकड़े
एकत्रित कर
दिखाने की
कोशिश
की जाये

समझाने को
खुद को
गलती उसकी
जिसने
सिखाया गलत

समय के
हिसाब से
वो सारा
गलत

हस्ताँतरित
भी हुआ
अगली पीढ़ी
के लिये

पीढ़ियाँ आगे
बढ़ती ही हैं
जंजीरे समय
बाँधता है

ज्यादातर
खोल लेते हैं
दिखाई देती है
उनकी
उँचाइयाँ

जहाँ गाँधी
नहीं होता है

गाँधी होना
गाली होता है
बहुत छोटी सी

कोई किसी को
छोटी गालियाँ
नहीं देता है

ऊपर पहुँचने
के लिये बहुत
जरूरी होता है

समय के
साथ चलना
समय के साथ
समय को सीखना
समय के साथ
समय को
पढ़ लेना
और समझ कर
समय को
पढ़ा ले जाना

गुरु मत बनो
‘उलूक’
समय का

अपनी
घड़ी सुधारो
आगे बड़ो
या पीछे लौट लो

किसी को
कोई फर्क
नहीं पड़ता है

समय समय
की कद्र
करने वालों
का साथ देता है

जमीन पर
चलने की
आदत ठीक है

सोच
ठीक नहीं है

जमाना सलाम
उसे ही ठोकता है

जिसकी ना
जमीन होती है

और जिसे
जमीन से
कोई मतलब
भी नहीं होता है ।

चित्र साभार: Can Stock Photo

रविवार, 30 अप्रैल 2017

समझदारी है लपकने में झपटने की कोशिश है बेकार की “मजबूर दिवस की शुभकामनाएं”

 

पकड़े गये बेचारे शिक्षा अधिकारी लेते हुऐ रिश्वत
मात्र पन्द्रह हजार की
खबर छपी है एक जैसी है फोटो के साथ है मुख्य पृष्ठ पर है
इनके भी है और उनके भी है अखबार की

चर्चा चल रही है जारी रहेगी बैठक
समापन की तारीख रखी गयी है अगले किसी रविवार की
खलबली मची है गिरोहों गिरोहों
बात कहीं भी नहीं हो रही है किसी के भी सरदार की 

सुनने में आ रहा है
आयी है कमी शेयर के दामों में रिश्वत के बाजार की
यही हश्र होता है बिना पीएच डी किये हुओं का
उसूलों को अन्देखा करते हैं
फिक्र भी नहीं होती है जरा सा भी
इतने फैले हुऐ कारोबार की

अक्ल के साथ करते हैं व्यापार समझदार उठाईगीर
उठाते हैं बहुत थोड़ा सा रोज अँगुलियों के बीच
मुट्ठी नहीं बंधती है सुराही के अन्दर कभी
किसी भी सदस्य की चोरों के मजबूत परिवार की

सालों से कर रहे हैं कई हैं हजारों पन्द्रह भर रहे हैं
गागर भरने की खबर पहुँचती नहीं
फुसफुसाती हुई डर कर मर जाती है पीछे के दरवाजे में
कहीं आफिस में किसी समाचार की

उबाऊ ‘उलूक’
फिर ले कर बैठा है एक पकाऊ खबर
मजबूर दिवस की पूर्व संध्या पर सोचता हुआ
मजबूरों के आने वाले निर्दलीय एक त्यौहार की ।

चित्र साभार: Shutterstock

बुधवार, 26 अप्रैल 2017

लाश कीड़े और चूहों की दौड़

एक
सड़ रही
लाश को
ठिकाने लगा
रहे कीड़ों में

कुछ कीड़े
ऐसे भी
होते हैं
जो लाश के
बारे में
सोचना
शुरु कर
देते हैं
लाश को
दर्द नहीं
होता है
साले
कामचोर
होते हैं

आदत होती है
ऐसे कीड़ों की
ठेके लेना
अच्छाई के
संदेशों के बैनर
बनाने की

कीड़े
चूहा दौड़
में माहिर
होते हैं

जानते हैं
चूहों की
दौड़ को
दूर से
देखकर
उसपर
टिप्पणी
करने वाले
चूहे को कोई
भाव नहीं देता है

दौड़ में
शामिल होना
जरूरी होता है
चूहा होने
के लिये

अपने
आसपास की
हलचलों को
समझना बूझना
और फिर उसपर
कुछ कहने वाले
कुछ बेवकूफ चूहों
का काम होता है

चूहा दौड़
इसलिये
नहीं होती है
कि किसी को
कुछ जीतना
होता है

चूहा अपने
अगल बगल
आगे पीछे
दौड़ते हुऐ
चूहों को
देख कर
खुश होता है

और फिर
और जोर से
ताकत लगा कर
खुद भी दौड़ता है

रोज निकलते हैं
परीक्षाफल
चूहा दौड़ के

जीतने वाले
चूहे ही होते हैं

चूहे खुश होते हैं
फिर शुरु कर
देते हैं दौड़

क्योंकि चूहे
जीते होते हैं

लाश को नोचते
कीड़े अपना काम
कर रहे होते हैं

कीड़ों के भी
गिरोह होते हैं

‘उलूक’ समझ ले
दूर से बैठकर
तमाशा देखने
वाले कीड़े
कामचोर
कीड़े होते हैं

लाश के बारे में
सोचते हैं
और मातम
करते हैं
बेवकूफ होते  हैं
और रोते हैं । 


चित्र साभार: Kill Clip Art Illustrations.

शनिवार, 22 अप्रैल 2017

चिकने घड़े चिकने घड़े की करतूत के ऊपर बैठ कर छिपाते हैं

अचानक
हवा चलनी
बन्द हो
जाती है

साँय साँय
की आवाज
सारे जंगल
से गायब
हो जाती है

कितनी भी
सूईंयाँ गिरा
ले जाये कोई
रास्ते रास्ते

आवाज
जरूर होती
होगी इतनी
खामोशी में

पर
कान तक
पहुँचने
पहुँचने तक
पता नहीं
चलता है

कैसे किस
सोख्ते में
सोख ली
जाती है

ढोलचियों
के खुद के
रोजाना
खुद के लिये
अपने हाथों
से ही पीटे
जाने वाले
ढोल सारे
लटके हुऐ
कहीं नजर
आते हैं

मातम मना
रहे हों जैसे
सारे मिल
जुल कर
कुछ इसी
तरह का
अहसास
कराते हैं

शेरों के
मुखौटे भी
नजर आते
हैं गर्दनों से
पीछे की
ओर लटके हुऐ

सारे गधे
गधों के
कान के
पीछे कुछ
फुसफुसाते
हुऐ पाये
जाते हैं

ये बात
कोई नयी
नहीं होती है

ऐसी बात
भी नहीं है
कि हमेशा
ही होती है

बस कभी
हजार दो
हजार
बार की
हरकतों
के बीच
कहीं

कोई एक
दो गिरोह
के साथी
अपने ही
घर की
थालियों
की रोटियाँ
छिपाते
हुऐ पकड़े
जाते हैं

कोई सजा
किसी को
नहीं होती है

अपनी
सरकार
होती है
इन्ही में से
किसी को
पुरुस्कार
बाँटे जाते हैं

खामोशी भी
कुछ दिनों
की होती है

चिकने घड़े
भी कहाँ
किसी के
हाथ में
आते हैं

शोर नहीं
होता है
कुछ देर में
फुसफुसाने
वाले भी
अपने अपने
घरों को
चले जाते हैं

हवा की
मजाल है
की रुक सके
ज्यादा देर तक

पेड़ जल्दी ही
साँय साँय
करना शुरु
हो जाते हैं

‘उलूक’
रोक लेता है
थूक अपना
अपने गले के
बीच में ही कहीं

सारे मुखौटे
पीठ के पीछे
से निकल कर

गधों के चेहरों
पर वापस
फिर से चिपके
हुऐ नजर आते हैं

उत्सव फिर
शुरु होते हैं
जश्न मनाते हुऐ
बेशरम ठहाके
भी साथ
में लगाते हैं।

चित्र साभार: fallout.wikia.com

बुधवार, 19 अप्रैल 2017

विश्वविद्यालय बोले तो ? तेरे को क्या पड़ी है रे ‘उलूक’


जे एन यू बनाने की बात करते करते स्टेशन आ गया
वो उतरा और सवार हो गया उल्टी दिशा में जाती हुई ट्रेन में
शायद वो दिशा आक्स्फोर्ड की होती होगी
क्योंकि
अखबार वाला बता रहा था कुछ ऐसा ही बनने वाला है

और उसे बताया गया है 
जे एन यू बनाने की बात कहना बहुत बड़ी भूल थी उनकी 
ये अहसास चुनाव के पारिणामों के आते ही हो गया है

तीन साल के बाद अखबार के पन्ने पर
एक नयी तस्वीर होती है एक नये आदमी की
और एक नये सपने की बात
जिसमें ताजमहल जैसा कुछ होता है 

पिछले तीन साल पहले अखबार ने बताया था
बहुत उँचाइयों पर ले जाने वाला कोई आया है

वही उँचाइयाँ अब कैम्ब्रिज बन गई हैं
किसी और जगह के किसी गली के एक बने बनाये
मकान की

लेकिन आदमी 
आक्स्फोर्ड को आधा बना कर
कैम्ब्रिज पूरा करने पर जुट गया है

सरकारें बदलती हैं
झंडा बदल कर कुछ भी बदल सकता है कोई भी

‘उलूक’
कभी तो थोड़ा सा कुछ ऐसी बात किया कर
जो किसी के समझ में आये

सब कुछ होता है पाँच साल में वहाँ
और तीन साल में यहाँ

तुझे आदत है काँव काँव करने की करता चल
अभी एक नया आया है तीन साल के लिये
उसे भी कुछ बनाना है वो भी तो कुछ बनायेगा

या
कौवे की आवाज वाले किसी उल्लू की तरफ
देखता चला जायेगा?


चित्र साभार: Southern Running Guide