उलूक टाइम्स: मजदूर
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रविवार, 30 अप्रैल 2017

समझदारी है लपकने में झपटने की कोशिश है बेकार की “मजबूर दिवस की शुभकामनाएं”

 

पकड़े गये बेचारे शिक्षा अधिकारी लेते हुऐ रिश्वत
मात्र पन्द्रह हजार की
खबर छपी है एक जैसी है फोटो के साथ है मुख्य पृष्ठ पर है
इनके भी है और उनके भी है अखबार की

चर्चा चल रही है जारी रहेगी बैठक
समापन की तारीख रखी गयी है अगले किसी रविवार की
खलबली मची है गिरोहों गिरोहों
बात कहीं भी नहीं हो रही है किसी के भी सरदार की 

सुनने में आ रहा है
आयी है कमी शेयर के दामों में रिश्वत के बाजार की
यही हश्र होता है बिना पीएच डी किये हुओं का
उसूलों को अन्देखा करते हैं
फिक्र भी नहीं होती है जरा सा भी
इतने फैले हुऐ कारोबार की

अक्ल के साथ करते हैं व्यापार समझदार उठाईगीर
उठाते हैं बहुत थोड़ा सा रोज अँगुलियों के बीच
मुट्ठी नहीं बंधती है सुराही के अन्दर कभी
किसी भी सदस्य की चोरों के मजबूत परिवार की

सालों से कर रहे हैं कई हैं हजारों पन्द्रह भर रहे हैं
गागर भरने की खबर पहुँचती नहीं
फुसफुसाती हुई डर कर मर जाती है पीछे के दरवाजे में
कहीं आफिस में किसी समाचार की

उबाऊ ‘उलूक’
फिर ले कर बैठा है एक पकाऊ खबर
मजबूर दिवस की पूर्व संध्या पर सोचता हुआ
मजबूरों के आने वाले निर्दलीय एक त्यौहार की ।

चित्र साभार: Shutterstock

शुक्रवार, 1 मई 2015

मजबूत मजबूर मशहूर में से कौन सा और किस का दिवस ?

आज
पहली बार
सुना हो ऐसा
भी नहीं है

हर वर्ष
इसी दिन
सुनाई दिया है

मजबूती से
सुनाई दिया है

एक मजबूत
दिवस है आज
मजदूर दिवस है
मेहनत कशों
का दिवस है

उर्जा होती ही
है दिवस में

समझ में
मजदूर लेकिन
आज तक
नहीं आ पाया है

मजबूरियाँ
मगर
नजर आई हैं
समझ में भी आई हैं

कुछ
करने के लिये
सच में
चाहिये होता है
एक बहुत बड़ा
विशाल कलेजा

वो कभी ना
हो पाया है
ना ही लगता है
कभी हो पायेगा
जो कर पाये
अपने आसपास
के झूठों से
सच में प्रतिकार

उठा सके
ज्यादा नहीं
बस एक ही आवाज

जोर शोर
से नहीं
कुछ हल्की
सी ही सही

ना जा पाये
दूर तलक
ना लौटे
टकरा कर
कहीं दीवार से

कोई बात नहीं
सुनकर मजदूर
मजबूर जैसा
ना महसूस हो
मजदूर ही हो
सुनाई देने में भी
मजबूत हो
मशहूर ना हो पाये
जरूरी भी नहीं है ।

चित्र साभार: www.thewandererscarclub.com