कई सालों से
जिसे एक चिराग मान कर
जिसे एक चिराग मान कर
उसके कुछ फैलाने को रोशनी समझ रहा था
पता नहीं क्या क्या था और क्या क्या नहीं था
किस को क्या और किस को क्या
कोई क्यों समझ रहा था
कोई क्यों समझ रहा था
चिराग है वो एक उसने ही कहा था
सभी से और मुझ से भी
एक बड़े झूठ को उसके कहने पर
जैसे सच मुच का सच मैं समझ रहा था
रुई की लम्बी बाती बस एक ही नहीं थी
और बहुत सारी अगल और बगल में भी रख रहा था
सिरा उसके पास ही था सभी का
और पूँछ से जिनकी कई और चिरागों से
और पूँछ से जिनकी कई और चिरागों से
कुछ ना कुछ चख रहा था
अपने तेल के स्तर को बराबर
उसी स्तर पर बनाये भी रख रहा था
भूखे चिरागों के लड़ने की ताकत को
उनके तेल के स्तर के घटने से परख रहा था
उनके तेल के स्तर के घटने से परख रहा था
रोशनी की बातों को
रोशनी में
बहुत जोर दे दे कर सामने से
बहुत जोर दे दे कर सामने से
जनता के रख रहा था
एक खोखला चिराग रोशन चिराग का पता
अपनी छाती पर चिपकाये
पता नहीं कब से कितनों को ठग रहा था
अंधा ‘उलूक’
अंधेरे में बैठा दोनों आँख मूँदे
ना जाने कब से रोशनी ही रोशनी
बस बक रहा था ।
चित्र साभर: http://www.shutterstock.com/
सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद।
आभारी हूँ विम्मी जी।
हटाएंबहुत सुन्दर नई कविता।
जवाब देंहटाएंकाश हमें भी ये कला आती!
आभारी हूँ आपके हौसला बढ़ाने का पर कविता कहाँ है शास्त्री जी ? और कला के पुजारी तो आप हैं हमारी तो बस कुछ भड़ास है ।
हटाएंआपकी लिखी रचना शनिवार 13 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
जवाब देंहटाएंhttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आभारी हूँ यशौदा जी।
हटाएंबहुत सुन्दर !आप ने सिद्ध किया कि छंद की मोहताज़ नहीं ही कविता !
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ प्रसून जी पर कविता तो कविता होती है और जो लिखा जाता है यहाँ वो कुछ भी होती हो कविता नहीं होती है ।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-09-2014) को "सपनों में जी कर क्या होगा " (चर्चा मंच 1735) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय शास्त्री जी ।
हटाएंअलादीन वाला चाहिये...सुन्दर रचना...
हटाएंपर आँखें तो उसी की हि खुली थी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
मेरे ब्लॉग तक भी पधारिये मुझे अच्छा लगेगारंगरूट
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 17 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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