कई सालों से
जिसे एक चिराग मान कर
जिसे एक चिराग मान कर
उसके कुछ फैलाने को रोशनी समझ रहा था
पता नहीं क्या क्या था और क्या क्या नहीं था
किस को क्या और किस को क्या
कोई क्यों समझ रहा था
कोई क्यों समझ रहा था
चिराग है वो एक उसने ही कहा था
सभी से और मुझ से भी
एक बड़े झूठ को उसके कहने पर
जैसे सच मुच का सच मैं समझ रहा था
रुई की लम्बी बाती बस एक ही नहीं थी
और बहुत सारी अगल और बगल में भी रख रहा था
सिरा उसके पास ही था सभी का
और पूँछ से जिनकी कई और चिरागों से
और पूँछ से जिनकी कई और चिरागों से
कुछ ना कुछ चख रहा था
अपने तेल के स्तर को बराबर
उसी स्तर पर बनाये भी रख रहा था
भूखे चिरागों के लड़ने की ताकत को
उनके तेल के स्तर के घटने से परख रहा था
उनके तेल के स्तर के घटने से परख रहा था
रोशनी की बातों को
रोशनी में
बहुत जोर दे दे कर सामने से
बहुत जोर दे दे कर सामने से
जनता के रख रहा था
एक खोखला चिराग रोशन चिराग का पता
अपनी छाती पर चिपकाये
पता नहीं कब से कितनों को ठग रहा था
अंधा ‘उलूक’
अंधेरे में बैठा दोनों आँख मूँदे
ना जाने कब से रोशनी ही रोशनी
बस बक रहा था ।
चित्र साभर: http://www.shutterstock.com/