बहुत सारी तालियाँ
बजती हैं हमेशा ही
अच्छे पर अच्छा
बोलने के लिये
इधर भी और
उधर भी
नीचे नजर
आ जाती हैं
दिखती हैं
दूरदर्शन में
सुनाई देती हैं
रेडियो में
छपती हैं
अखबार में
या जीवित
प्रसारण में भी
सामने से खुद
के अपने ही
शायद बजती
भी हों क्या पता
उसी समय
कहीं ऊपर भी
अच्छा बोलने
के लिये अच्छा
होना नहीं होता
बहुत ही जरूरी भी
बुरे को अच्छा
बोलने पर नहीं
कहीं कोई पाबंदी भी
अच्छे होते हैं
अच्छा ही देखते हैं
अच्छा ही बोलते हैं
ज्यादातर होते ही हैं
खुद अपने आप में
लोग अच्छे भी
बुरी कुछ बातें
देखने की उस पर
फिर कुछ कह देने की
उसी पर कुछ कुछ
लिख देने की
होती है कुछ बुरे
लोगों की आदत भी
अच्छा अच्छा होता है
अच्छे के लिये
कह लेना भी
और जरूरी भी है
बुरे को देखते
बुरा कुछ कहते
रहना भी
करते हुऐ याद
दोहा कबीर का
बुरा जो देखन मैं चला
हर सुबह उठने
के बाद और
रात में सोने से
पहले भी ।
चित्र साभार:
funny-pictures.picphotos.net
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के - चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंbahut sundar
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