बकबकाना बंद हो गया
इधर से छोड़ उधर से आना जाना बंद हो गया
किताब अपनी खुद की दिखती नहीं हाथ में
कलम कान के पीछे लगाना बंद हो गया
बड़बड़ाना बंद हो गया
माथे में सलवटें बनती नहीं हैं
हवा में यूं ही हाथ हिलाना बंद हो गया
कहना सुनाना बंद हो गया
लिखना लिखाना बंद हो गया
जोर लगा कर हैइशा कोई फ़ायदा नहीं
कुछ भी सोच में आना बंद हो गया
हड़बड़ाना बंद हो गया सकपकाना बंद हो गया
सुकून शब्दकोष में सो गया
नीद बेहोशी सी हो गयी
सपनों का आना बंद हो गया
फड़फड़ाना बंद हो गया
हवा हवा हो गयी पानी पानी हो गया
आईने में चेहरा नजर आना बंद हो गया
महकना महकाना बंद हो गया
रेत फ़ैलाने लगा शहर दर शहर
रेगिस्तान का ठिकाना बंद हो गया
चहचहाना बंद हो गया
उल्लुओं का रेला बढ़ता चला गया
कौन किस से मिले कारवाँ कैसे बने
मिलना मिलाना बंद हो गया
दिमाग बंद कर खुद का
पकाने लगा खुद खुदा और उसकी भीड़ का सिपाही
‘उलूक’ का पकाना बंद हो गया |
चित्र साभार: https://www.shutterstock.com/
चहचहाना बंद हो गया
जवाब देंहटाएंउल्लुओं का रेला बढ़ता चला गया
कौन किस से मिले कारवाँ कैसे बने
मिलना मिलाना बंद हो गया
बेहतरीन
सादर नमन
इस रचना को देखकर विश्वास है कि ना तो कुछ बन्द हुआ है और ना कुछ बन्द हो सकता है
जवाब देंहटाएंरोचक रचना
वाह! बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसाहिब ! 🙏
जवाब देंहटाएंनमन संग आभार आपका जो आपने अपनी उपर्युक्त रचना के शीर्ष पर कहीं उल्लेख किया, कि - "Subodh Sinha जी अब आपके विच्छेदन के लिए 😂" .. आगे आपकी "स्वच्छंद" (साहिब ! आपके अनुसार, आप तो छंद लिखते नहीं है .. शायद ...) के शीर्षक और मज़ेदार "स्वच्छंद" की पंक्तियाँ .. अब अपनी पंक्तियों के साथ-साथ मेल कर के मेरी बतकही सुनने (पढ़ने) की भी कृपा करें .. ताउम्र आपका आभारी रहूँगा ..😂😂😂 ..बस यूँ ही ...
समझ में आना शुरू हो गया
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धर्मयुद्ध छिड़ी हुई, सब मुल्ला, पंडित बकबका रहे,
उधर से ही तो ड्रोन, कभी आतंकवादी, आना बन्द ना हुआ
किताब ही किताब दिखती हैं मदरसों और हनुमान मंदिरों में
कलम रहे कैसे, कान पर तो चश्मे का 'फ्रेम' है टिका हुआ
सलवटें और हाथ हिलाना दिखता तो है एक ही जगह
साहिब ! शायद आपने " 'O'वैसी " को देखा-सुना नहीं
आपके चश्मे के शीशे का 'नम्बर' शायद बदल गया 🤔
रोज तो "मुखपुस्तिका बाला" के कहने पे
सबको अपनी सोचों को थोप कर हैं आप परेशान करते
अब ये भी क्या तराने झूठे छेड़ दिए साहिब आपने
भावी नेता जी बनने वाले हैं क्या 🤔
सपनों का ना आना, आईने में चेहरे ना दिखना
ये सब संकेत हैं आँख पुनः 'चेक' कराने के
अब तो पक्का है कि आपके शीशे का 'नम्बर' बदल गया 😧
"फॉग" वाली 'डिओ' आपने लगाना शायद बंद कर दिया
या शायद पड़ोसन की गैस वाली बीमारी ठीक हो गयी।
और ये बात पुरानी हो चली, जब से भर-भर ट्रेक्टर निकल
नदियों से रेत निकल कर आपका आशियाना था बन रहा
चहकना तो जारी है पर अभी भी आपका साहिब
रुख़ किजिए मयखाने का जब कभी भी
मिलना-मिलाना बदस्तूर जारी है वहाँ
सिलेंडर भरी गैस की मुफ़्त उन्हें तो मिल रही
जहाँ नहीं पकता था, वहाँ भी खाना अब पक रहा
भला ऐसे में 'उलूकवा' का क्या पकना बंद हो गया 🤔🤔🤔
( 😅😂😁😀😃🙊🙉🙈🙏🙏🙏🤗🤗🤗)
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार २० जून २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
तुम सब 'आदिपुरुष' देखो. तुम्हारी आँखें खुल जाएंगी, तुम्हारे कान खुले के खुले रह जाएंगे और तुम्हारे मुख से - 'जय ओम राउत' और - 'जय मनोज मुन्तशिर शर्मा' का जाप होने लगेगा.
जवाब देंहटाएंहड़बड़ाना बंद हो गया सकपकाना बंद हो गया
जवाब देंहटाएंसुकून शब्दकोष में सो गया
नीद बेहोशी सी हो गयी
सपनों का आना बंद हो गया
शायद कुछ ऐसा देख सुन लिया है या जान लिया है उलूक ने कि उपरोक्त लक्षण दिखने लगे हैं, किंतु काल बहुत बलशाली है, एक दिन फिर सब कुछ शुरू हो जाएगा
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं'उलूक का पकाना बंद हो गया'
जवाब देंहटाएंअरे ऐसा गज़ब मत करो. उलूक अगर पकाएगा नहीं तो हम खाएंगे क्या?
कलम,सोच,आईना, सपने,बड़बड़ाहट,रेगिस्तान होती दुनिया से मिलाने के लिए उलूक का बोलना कभी बंद न हो।
जवाब देंहटाएंअनोखी शैली में गहन अभिव्यक्ति सर।
प्रणाम
सादर।
कहना सुनाना बंद हो गया
जवाब देंहटाएंलिखना लिखाना बंद हो गया
जोर लगा कर हैइशा कोई फ़ायदा नहीं
कुछ भी सोच में आना बंद हो गया
सोच ही संकीर्ण हो गयी तो जोर लगाने की जरूरत ही कहाँ...
बस बने बनाए को बिगाड़ने की सोच
चल रही ।
गहन अभिव्यक्ति ।
वाह
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंउम्दा। सटीक बात कही अपने
जवाब देंहटाएंसब कुछ बन्द हो पर बडबडाना नहीं ... साँसों का होना प्रमाण इसी से ही होता है ...
जवाब देंहटाएंone of the best artical i am reading your artical thanks People rojgar
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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