उलूक टाइम्स: सितंबर 2025

सोमवार, 22 सितंबर 2025

समय के हिसाब से गिरगिटिया सहूर हजूर के हिसाब से कुछ रंग बदलना सीख



हौले हौले से कर आंखे बंद
ध्यान में कुछ लिखना सीख उसके बाद
साध कान को बांध आवाज को
व्यवधान में कुछ लिखना सीख उसके बाद
बंद कर मुंह दिल में गुनगुना राग सुन बिना आवाज
संधान में कुछ लिखना सीख उसके बाद
साधक हो जाएगा सधेगा खुद भी
बाधाओं के बाजार लगेंगे
बस तू थोड़ा सा कुछ बिकना सीख
सधी हुई लेखनी से सधा हुआ कुछ लिखा हुआ
सामने कागज पर उतर आएगा
भीड़ होगी मधुमक्खियों की तरह
जहर के पानदानों के विज्ञापनों में निखरना सीख
सम्मान मिलेगा अनुदान मिलेगा
जुटेंगे लोग मंच में बैठे सद्गुरुओं के मध्य स्थान मिलेगा
थोड़ा सा बस झपटना सीख
लिख दिया कर ‘उलूक’ उबकाइयां सभी
रोकना क्यों हैं उलटियां होने से पहले
संवेदनाएं कुछ लपकना सीख |


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बुधवार, 17 सितंबर 2025

राम को लिखते हैं खत बस एक डाकखाना नहीं मिलता

 


तेरे लिखे हुए में अपना अक्स नहीं मिलता  
और अपने लिखे हुए में आईना नहीं मिलता  
ख्वाहिश देखने की खुद को अपने हिसाब से अपनी
कहीं भी देखो खुद का चेहरा खुद से नहीं मिलता  

क्या क्या लिखे और कितना लिखे लिखने वाला  
मौजूँ के ढेर हैं और गिनतियां अंगुलियों के पोरों पर
जोड़ने घटाने में लिखे को लिखे लिखाए के पैमाने में
कलम को कागज पे चलाने का बहाना नहीं मिलता

रोज आते हैं अपने अपने रास्ते से यहां आदतन सभी
अपने रास्ते पर आने जाने का नाम और निशाना नहीं मिलता
वो खुदा में मसरूफ़ हैं इन्हें अल्लाह नहीं मिलता
ये राम को लिखते हैं खत बस एक डाकखाना नहीं मिलता

पुरानी आदत है तेरी बक बकाने की उलफ़त में ‘उलूक’
तू भी गा जन्मदिन मना केक खाएगा तेरे साथ में जमाना
नहीं लिखेगा अपने लिखे लिखाए में आबोदाना नहीं मिलता

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