तेरे लिखे हुए में अपना अक्स नहीं
मिलता
और अपने लिखे हुए में आईना नहीं मिलता
ख्वाहिश देखने की खुद को अपने हिसाब से अपनी
कहीं भी देखो खुद का चेहरा खुद से नहीं मिलता
क्या क्या लिखे और कितना लिखे लिखने वाला
मौजूँ के ढेर हैं और गिनतियां अंगुलियों के पोरों पर
जोड़ने घटाने में लिखे को लिखे लिखाए के पैमाने में
कलम को कागज पे चलाने का बहाना नहीं मिलता
रोज आते हैं अपने अपने रास्ते से यहां आदतन सभी
अपने रास्ते पर आने जाने का नाम और निशाना नहीं मिलता
वो खुदा में मसरूफ़ हैं इन्हें अल्लाह नहीं मिलता
ये राम को लिखते हैं खत बस एक डाकखाना नहीं मिलता
पुरानी आदत है तेरी बक बकाने की उलफ़त में ‘उलूक’
तू भी गा जन्मदिन मना केक खाएगा तेरे साथ में जमाना
नहीं लिखेगा अपने लिखे लिखाए में आबोदाना नहीं मिलता
चित्र साभार: https://www.istockphoto.com/
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