उलूक टाइम्स: समय के हिसाब से गिरगिटया सहूर हजूर के हिसाब से कुछ रंग बदलना सीख

सोमवार, 22 सितंबर 2025

समय के हिसाब से गिरगिटया सहूर हजूर के हिसाब से कुछ रंग बदलना सीख



हौले हौले से कर आंखे बंद
ध्यान में कुछ लिखना सीख उसके बाद
साध कान को बांध आवाज को
व्यवधान में कुछ लिखना सीख उसके बाद
बंद कर मुंह दिल में गुनगुना राग सुन बिना आवाज
संधान में कुछ लिखना सीख उसके बाद
साधक हो जाएगा सधेगा खुद भी
बाधाओं के बाजार लगेंगे
बस तू थोड़ा सा कुछ बिकना सीख
सधी हुई लेखनी से सधा हुआ कुछ लिखा हुआ
सामने कागज पर उतर आएगा
भीड़ होगी मधुमक्खियों की तरह
जहर के पानदानों के विज्ञापनों में निखरना सीख
सम्मान मिलेगा अनुदान मिलेगा
जुटेंगे लोग मंच में बैठे सद्गुरुओं के मध्य स्थान मिलेगा
थोड़ा सा बस झपटना सीख
लिख दिया कर ‘उलूक’ उबकाइयां सभी
रोकना क्यों हैं उलटियां होने से पहले
संवेदनाएं कुछ लपकना सीख |


चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

7 टिप्‍पणियां:

  1. आज के दौर में कंठ तक आत्ममुग्धता से भरे हैं अधिकांशतः... सिखाना भले सरल हो पर काश कि सीखना आसान होता ....।
    सादर प्रणाम सर।
    --------
    नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार २३ सितंबर २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. मन से नमन गुरु जी !🙏
    गुस्ताख़ी की माफ़ी के साथ एक विस्तार .. बस यूँ ही ...
    चड्ढियों के विज्ञापनों में आराम से भगा कर (लड़की) ले जाना सीख,
    जींस पहन ऐसा कि ज़रा सा झुकने पर चढ्ढी का पट्टा जाए दिख,
    हो सके तो आँखें फोड़ ले, कानों में गर्म लावे टपका ले, कटवा ले अपनी जीभ,
    क्योंकि अच्छे भले चंगे को तो सौगात क्या ... मिलती भी नहीं यहाँ भीख
    तुलसीदास से तो सीखे सदियों, अब कुछ कबीर से भी सीख।
    (कुछ ऊटपटांग 😃😃😃.. बस यूँ ही...)

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  3. पढ़ते-पढ़ते लगा कि तुम लिखने को योग की तरह देख रहे हो—ध्यान, मौन, साधना सब इसमें उतर आते हैं। मुझे सबसे अच्छा लगा वो हिस्सा जहाँ तुमने कहा कि सधी हुई लेखनी से सधा हुआ लिखा खुद उतर आता है। सच है, जब मन थम जाता है और शोर भीतर रुकता है, तभी शब्द असली ताकत लेकर निकलते हैं।

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  4. सुन्दर सृजन ।सादर नमस्कार सर !

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