जिसके
पास
जो
होता है
उसे
वैसा ही
कुछ
लिखना होता है
ऐसा
किस ने
कह दिया होता है
पास
जो
होता है
उसे
वैसा ही
कुछ
लिखना होता है
ऐसा
किस ने
कह दिया होता है
लिखना
भी
एक तरह से
दिखने
की
तरह का
जैसा होता है
ये ना पूछ बैठना
हकीम लुकमान
को
कौन जानता है
जिसने
लिखने
और
दिखने को
बराबर है
कह
दिया होता है
ये
उसी तरह
का
एक फलसफा
होता है
जो
होता भी है
और
नहीं भी होता है
कब
कहाँ
होना होता है
कब
कहाँ
नहीं होना होता है
उसके लिये
किसी ना किसी को
आदेश कहें निर्देश कहें
कुछ
ऐवें ही तरह का
दिया गया होता है
किस को
क्या
दिया गया होता है
उसी को
क्यों
दिया गया होता है
ऐसा
बताने वाला भी
कोई हो
बहुत जरूरी
नहीं होता है
अब
नोबेल पुरुस्कार
का
जवाहर लाल
का
नाम लगे
स्कूल से
क्या रिश्ता होता है
गालियों के झंडे
उछालने वाले
अनपढ़ लोगों
के
बीच से निकला
आदमी
अपने
घर के
खेत में
गेहूँ
क्यों नहीं बोता है
गरीबी
यहाँ होती है
चुनाव
यहाँ होते है
सारा
सब कुछ
छोड़ छाड़ कर
भाग लेने वाला
अचानक
अवतरित
हो लेता है
ईनाम देने का
फैसला
संविधान
के अनुसार
इधर ही
क्यों नहीं होता है
नगाढ़ा
कोई
पीट लेता है
तस्वीर
किसी और
की होती है
हल्ला
किसी
और
का
हो लेता है
कोई नहीं
‘उलूक’
को
जब भी कभी
बहुत
जोर की
खुजली होनी
शुरु होती है
तब वो
और
उसका
लिखना
भी
चकर घिन्नी
हो लेता है
दीवाली के दिन
होती है
घोषणा भी
उसके घूमने
की
लेकिन
केवल
दिन के अंधे
के लिये
ऐसी
रोशनी का
कोई
मतलब
नहीं होता है।
चित्र साभार: