उलूक टाइम्स: पुरुस्कार
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बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

नोबेल पुरुस्कार का जवाहर लाल का नाम लगे स्कूल से क्या रिश्ता होता है


जिसके
पास

जो
होता है


उसे
वैसा ही
कुछ
लिखना होता है

ऐसा
किस ने
कह दिया होता है

लिखना
भी
एक तरह से

दिखने
की
तरह का
जैसा होता है

ये ना पूछ बैठना

हकीम लुकमान
को
कौन जानता है

जिसने
लिखने
और
दिखने को

बराबर है
कह
दिया होता है

ये
उसी तरह
का
एक फलसफा
होता है

जो
होता भी है
और
नहीं भी होता है

कब
कहाँ
होना होता है

कब
कहाँ
नहीं होना होता है

उसके लिये
किसी ना किसी को
आदेश कहें निर्देश कहें

कुछ
ऐवें ही तरह का
दिया गया होता है

किस को
क्या
दिया गया होता है

उसी को
क्यों
दिया गया होता है

ऐसा
बताने वाला भी
कोई हो

बहुत जरूरी
नहीं होता है

अब
नोबेल पुरुस्कार
का
जवाहर लाल
का
नाम लगे
स्कूल से

क्या रिश्ता होता है

गालियों के झंडे
उछालने वाले
अनपढ़ लोगों
के
बीच से निकला
आदमी

अपने
घर के
खेत में
गेहूँ

क्यों नहीं बोता है

गरीबी
यहाँ होती है

चुनाव
यहाँ होते है

सारा
सब कुछ
छोड़ छाड़ कर
भाग लेने वाला

अचानक

अवतरित
हो लेता है

ईनाम देने का
फैसला

संविधान
के अनुसार

इधर ही
क्यों नहीं होता है

नगाढ़ा
कोई
पीट लेता है

तस्वीर
किसी और
की होती है

हल्ला

किसी
और
का
हो लेता है

कोई नहीं

‘उलूक’
को
जब भी कभी

बहुत
जोर की
खुजली होनी
शुरु होती है

तब वो
और
उसका
लिखना
भी

चकर घिन्नी
हो लेता है

दीवाली के दिन
होती है
घोषणा भी
उसके घूमने
की

लेकिन

केवल
दिन के अंधे
के लिये

ऐसी
रोशनी का
कोई
मत
ब 
नहीं होता है।

चित्र साभार: 

शुक्रवार, 24 जुलाई 2015

है कोई जुगाड़ कुछ कर कहीं से कुछ तो उखाड़ महामहिम सुना है राज्य पुरुस्कार देने जा रहे हैं


पहाड़ी प्रदेश के
सारे प्रभावशालियों में 
नये महामहिम
कुछ
अलग से नजर आ रहे हैं

पहले
वाले के
खोदे गये गड्ढों में
उनके घुसाये गये
सारे मेंढक
जोर जोर से टर्रा रहे हैं

होने वाली है
बरसात इनामों की
नये वाले छप्पर तनवा रहे हैं

कागज
घुमा रहा था चपरासी
लिखा हुआ था
राज्य पुरुस्कार उत्कृष्ठ को मिलेगा

महामहिम
काँट छाट कर
उत्कृष्ठ को छाटने के लिये
कागजों में भरे हुऐ आवेदन मंगा रहे हैं

राज्य
जब से काँट छाँट कर
छोटा बना है
तब से उत्कृष्ठ
अलग से
अपने आप पहचाने जा रहे हैं

ढूँढने की जरूरत नहीं
अपने समाचार
अपने अपने अखबारों में
अपने चित्रों के साथ
नियमित अंतराल पर छपवा रहे हैं

महामहिम
किसलिये कागजों को बरबाद करवा रहे हैं

समझदार हैं
समझदारी से समझ कर
छोटे से राज्य के
कुछ चिन्हिंत उत्कृष्ठ लोगों में से ही
किसी से पूछताछ कर
राज्य पुरुस्कार की घोषणा
क्यों नहीं करवा रहे हैं

‘उलूक’ को सपनों में
तमगे लटके हुऐ सूखे पेड़ों के
अपने रहने के ठिकाने
पुराने खण्डहर
आज बहुत याद आ रहे हैं।

चित्र साभार: clipartavenue.com

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

सोच कपडे़ और खुश्बू नहीं बताते



मेरा
सलीकेदार सुन्दर सा पहनावा
मेरी  गर्व भरी चाल
मेरा संतुलित व्यवहार

मेरी मीठी रसीली सी बोलचाल
मेरी कविता का सौंदर्यबोध
मेरा संतुलित सामजिक समरसता
का सुन्दर सा खोल

मुझे दिखाना 
ही दिखाना है
जब भी अपने जैसे
तमीजदारों की सभाओं में कहीं
भाषण 
फोड़ कर आना है

बस वो ही 
बताना है वो ही सुनाना है
जिससे बने कुछ छवि सुन्दर सी
किसी भी तरह कैसे भी

करना क्या है
उससे किसी को क्या मतलब वैसे भी रह जाना है

मेरे बच्चे बच्चे
दूसरों के बच्चे जन्संख्या का सिद्धांत
अपनाना है

अपने घर को जाते जाते
सड़क पर झूल रहे
बिजली और दूरभाष के उलझे तारों के
किनारे से निकल

सड़क को 
घेर रहे 
मेरे घर को जाते हुऎ पानी के पाईपों से
बस नहीं टकराना है

पालीथीन में बंधे हुऎ
मेरे घर के अजैविक और जैविक
कूडे़ की दुर्गंध पर
नाक पर बस रुमाल ही तो एक लगाना है

बहुत कुछ है बताने को इस तरह से 
सैंस नहीं बस नानसैंस जैसा ही तो होता है ये सिविक सैंस

आप अपने काम से रखते हो मतलब
मेरे काम में दखलंदाजी लगती है
आप को हमेशा ही बेमतलब

इसलिये मुझे हमेशा
कोई ना कोई पुरुस्कार जरूर कुछ पाना है

समय नहीं है ज्यादा कुछ बताने के लिये

कल की मीटिंग के लिये अभी
मुझे नाई की दुकान पर
फेशियल करवाने के लिये जाना है ।

चित्र सभार: https://greatbridalexpo.wordpress.com/2013/03/11/spa-tips-for-men/