कई बार
लिखते समय
कई संदर्भ में
याद
आये हो
गधे भाई
बहुत दिन
हो गये
मुलाकात
किये हुऐ
याद किये हुऐ
बात किये हुऐ
कोई खबर
ना कोई समाचार
आज
तुम्हारी याद
फिर से है आई
जब से सुनी है
जानवर के
चक्कर में
आदमी की
आदमी से हुई है
खूनी रक्तरंजित हाथापाई
आये भी
कोई खबर कैसे तुम्हारी
ना किसी
खबरची ने
ना ही किसी
अखबार ने
तुममें
कोई दिलचस्पी
आज तक
महसूस ही
नहीं हुआ
कि हो कभी दिखाई
मुलाकात
होती तो
होती भी कैसे
ना
अरहर की दाल से ही
तुम्हें कुछ लेना देना
ना
मुर्गे से ही
होता है तुम्हारा कभी
कुछ सुनना कहना
गाय
और भैंस में से
एक भी
नहीं कही
जा सकती तुम्हारी
नजदीक की
या बहुत दूर की बहना
बस
तालमेल दिखता है
तुम्हारा अगर कहीं तो
सिर्फ
और सिर्फ
अपने धोबी से
कुछ गंदे
कुछ मैले कुचैले
कुछ साफ सुथरे धुले हुऐ
कपड़ों के थैले से
अब
ऐसा भी होना
क्या होना
देश के
किसी भी
काम के नहीं
शरम
तुम्हें पता नहीं
कभी आई की नहीं आई
घास खाना
हिनहिनाना
और बस
खड़े खड़े ही सोना
ना खाने के काम के
ना दिखाने के काम के
चुनाव चिन्ह
ही बन जायें
ऐसा जैसा भी
तुमसे नहीं है
कभी भी होना
कितना
अच्छा है
ना भाई गधे
ना तुम्हें
किसी ने पूछना
ना तुम्हें
छेड़ने के कारण
किसी पर
किसी को
काली स्याही भी
कभी फेंकने के लिये
किसी को
ढकोसला
कर कर के रोना
आ भी जाया करो
दिखो ना भी कहीं
याद में ही सही
गर्दभ मयी
हो गया हो
जहाँ सब कुछ
बचा हुआ ही
ना लगे
कि है कहीं कुछ
तुमसे
गले मिल कर
ढाड़े मार मार कर
आज तो
‘उलूक’
को भी है
देश के नाम पर
देशभक्ति दिखाने
और
ओढ़ने
के लिये रोना ।
चित्र साभार: www.cliparthut.com
लिखते समय
कई संदर्भ में
याद
आये हो
गधे भाई
बहुत दिन
हो गये
मुलाकात
किये हुऐ
याद किये हुऐ
बात किये हुऐ
कोई खबर
ना कोई समाचार
आज
तुम्हारी याद
फिर से है आई
जब से सुनी है
जानवर के
चक्कर में
आदमी की
आदमी से हुई है
खूनी रक्तरंजित हाथापाई
आये भी
कोई खबर कैसे तुम्हारी
ना किसी
खबरची ने
ना ही किसी
अखबार ने
तुममें
कोई दिलचस्पी
आज तक
महसूस ही
नहीं हुआ
कि हो कभी दिखाई
मुलाकात
होती तो
होती भी कैसे
ना
अरहर की दाल से ही
तुम्हें कुछ लेना देना
ना
मुर्गे से ही
होता है तुम्हारा कभी
कुछ सुनना कहना
गाय
और भैंस में से
एक भी
नहीं कही
जा सकती तुम्हारी
नजदीक की
या बहुत दूर की बहना
बस
तालमेल दिखता है
तुम्हारा अगर कहीं तो
सिर्फ
और सिर्फ
अपने धोबी से
कुछ गंदे
कुछ मैले कुचैले
कुछ साफ सुथरे धुले हुऐ
कपड़ों के थैले से
अब
ऐसा भी होना
क्या होना
देश के
किसी भी
काम के नहीं
शरम
तुम्हें पता नहीं
कभी आई की नहीं आई
घास खाना
हिनहिनाना
और बस
खड़े खड़े ही सोना
ना खाने के काम के
ना दिखाने के काम के
चुनाव चिन्ह
ही बन जायें
ऐसा जैसा भी
तुमसे नहीं है
कभी भी होना
कितना
अच्छा है
ना भाई गधे
ना तुम्हें
किसी ने पूछना
ना तुम्हें
छेड़ने के कारण
किसी पर
किसी को
काली स्याही भी
कभी फेंकने के लिये
किसी को
ढकोसला
कर कर के रोना
आ भी जाया करो
दिखो ना भी कहीं
याद में ही सही
गर्दभ मयी
हो गया हो
जहाँ सब कुछ
बचा हुआ ही
ना लगे
कि है कहीं कुछ
तुमसे
गले मिल कर
ढाड़े मार मार कर
आज तो
‘उलूक’
को भी है
देश के नाम पर
देशभक्ति दिखाने
और
ओढ़ने
के लिये रोना ।
चित्र साभार: www.cliparthut.com