उलूक टाइम्स: दाल
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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

बहुत बार मन गधा गधा हो जाता है गधा ही बस अपना सा लगता है और बहुत याद आता है

कई बार
लिखते समय
कई संदर्भ में

याद
आये हो
गधे भाई

बहुत दिन
हो गये

मुलाकात
किये हुऐ

याद किये हुऐ
बात किये हुऐ

कोई खबर
ना कोई समाचार

आज
तुम्हारी याद
फिर से है आई

जब से सुनी है

जानवर के
चक्कर में

आदमी की
आदमी से हुई है
खूनी रक्तरंजित हाथापाई

आये भी
कोई खबर कैसे तुम्हारी

ना किसी
खबरची ने
ना ही किसी
अखबार ने

तुममें
कोई दिलचस्पी

आज तक
महसूस ही
नहीं हुआ
कि हो कभी दिखाई

मुलाकात
होती तो
होती भी कैसे

ना
अरहर की दाल से ही
तुम्हें कुछ लेना देना

ना
मुर्गे से ही
होता है तुम्हारा कभी
कुछ सुनना कहना

गाय
और भैंस में से

एक भी
नहीं कही
जा सकती तुम्हारी

नजदीक की
या बहुत दूर की बहना

बस
तालमेल दिखता है
तुम्हारा अगर कहीं तो

सिर्फ
और सिर्फ
अपने धोबी से

कुछ गंदे
कुछ मैले कुचैले
कुछ साफ सुथरे धुले हुऐ

कपड़ों के थैले से

अब
ऐसा भी होना
क्या होना

देश के
किसी भी
काम के नहीं

शरम
तुम्हें पता नहीं
कभी आई की नहीं आई

घास खाना
हिनहिनाना
और बस
खड़े खड़े ही सोना

ना खाने के काम के
ना दिखाने के काम के

चुनाव चिन्ह
ही बन जायें
ऐसा जैसा भी
तुमसे नहीं है
कभी भी होना

कितना
अच्छा है
ना भाई गधे

ना तुम्हें
किसी ने पूछना

ना तुम्हें
छेड़ने के कारण

किसी पर
किसी को
काली स्याही भी
कभी फेंकने के लिये

किसी को
ढकोसला
कर कर के रोना

आ भी जाया करो
दिखो ना भी कहीं
याद में ही सही

गर्दभ मयी
हो गया हो
जहाँ सब कुछ

बचा हुआ ही

ना लगे
कि है कहीं कुछ

तुमसे
गले मिल कर
ढाड़े मार मार कर

आज तो
‘उलूक’
को भी है

देश के नाम पर

देशभक्ति दिखाने

और
ओढ़ने
के लिये रोना ।

चित्र साभार: www.cliparthut.com

शनिवार, 7 सितंबर 2013

पहचान नहीं बना पायेगा सलीका अपना अगर दिखायेगा


जिंदगी

कोई चावल

और दाल के
बडे़ दाने
की तरह
नहीं है

कि
बिना

चश्मा लगाये
साफ कर
ले जायेगा

जीवन
को
सीधा सीधा
चलाने की
कोशिश
करने वाले

तेरी
समझ में

कभी ये भी
आ जायेगा

जब
तरतीब

और सलीके
से साफ
किये जा चुके

जिंदगी
के
रामदाने
का डिब्बा

तेरे
हाथ से

फिसल जायेगा

डब्बे
का
ढक्कन
खुला नहीं

कि
दाना दाना
मिट्टी में
बिखर कर
फैल जायेगा

समय रहते
अपने
आस पास
के
माहौल
से
अगर

तू अभी भी

कुछ नहीं
सीख पायेगा

खुद भी
परेशान
रहेगा


लोगों की

परेशानियों
को भी
बढ़ायेगा

तरतीब
से लगी

जिंदगी
की किताबें


किसी
काम की

नहीं होती है 

सलीकेदार
आदमी की

पहचान होना

एक
सबसे
बुरी
बात होती 
है

आज
सबसे सफल

वो ही
कहलाता है


जिसका
हर काम

फैला हुआ
हर जगह
पर
नजर आता है


एक काम को

एक समय में
ध्यान लगा कर
करने वाला


सबसे बड़ा
एक
बेवकूफ
कहलाता है


बहुत सारे
आधे अधूरे

कामों को
एक साथ

अपने पास
रखना


और
अधूरा
रहने
देना ही

आज के
समय में
दक्षता की

परिभाषा
बनाता है


इनमें
सबसे महत्वपूर्ण

जो होता है

वो
हिसाब
किताब
करना कहलाता है


जिंदगी की
किताब का

हिसाब हो

या उसके

हिसाब की
किताब हो


इसमें
अगर कोई

माहिर
हो जाता है


ऊपर
वाला भी ऎसी

विभूतियों को

ऊपर

जल्दी बुलाने से
बहुत कतराता है

इन सबको
साफ
सुथरा
रखने वाला


कभी
एक गलती
भी
अगर
कर जाता है


बेचारा
पकड़ में

जरूर
आ जाता है


अपनी
जिंदगी
भर की

कमाई गई

एकमात्र

इज्जत को
गंवाता है


सियार
की तरह

होशियार
रहने वाला


कभी किसी
चीज को

तरतीब से
इसी लिये

नहीं लगाता है

घर में हो
या
शहर में हो


एक
उबड़खाबड़
अंदाज
से
हमेशा
पेश आता है


हजार
कमियाँ
होती हैं

किताब में
या हिसाब में


फिर भी
किसी से
कहीं
नहीं
पकड़ा जाता है


अपनी
एक अलग
ही
छवि बनाता है


समझने
लायक

कुछ होता
नहीं है

किसी में

ऎसे
अनबूझ
को
समझने के लिये


कोई
दिमाग भी

अपना नहीं
लगाता है


ऎसे समय
में ही
तो
महसूस होता है


तरतीब
से करना

और
सलीके
से रहना


कितना
बड़ा बबाल

जिंदगी का
हो जाता है


एक छोटे
दिमाग वाला
भी
समझने के लिये

चला आता है

बचना
इन सब से


अगर
आज भी

तू चाहता है

सब कुछ
अपना भी


मिट्टी में
फैले हुवे

रामदाने के
दानों की
तरह

क्यों नहीं
बना
ले जाता है ।

सोमवार, 20 अगस्त 2012

पूरी बात

शर्ट की
कम्पनी
सामने
से ही
पता चल
जाती है
पर
अंडरशर्ट
कौन सी
पहन कर
आता है
कहाँ 
पता 
चल पाता है

अंदर
होती है
एक
पूरी बात
किसी के
पर वो
उसमें से
बहुत
थोडी़ सी
ही क्यों
बताता है

सोचो तो
अगर
इस को
गहराई से
बहुत से
समाधान
छोटा सा
दिमाग
ले कर
सामने
चला
आता है

जैसे
थोड़ी 
थोड़ी
पीने से
होता है
थोड़ा सा
नशा
पूरी
बोतल
पीने से
आदमी
लुढ़क
जाता है

शायद
इसीलिये
पूरी बात
किसी को
कोई नहीं
बताता है

थोड़ा थोड़ा
लिखता है
अंदर की
बात को
सफेद
कागज
पर अगर
कुछ
आड़ी तिरछी
लाइने ही
खींच पाता है

सामने वाला
बिना
चश्मा लगाये
अलग अलग
सबको
पहचान ले
जाता है

पूरी बात
लिखने की
कोशिश
करने से
सफेद
कागज
पूरा ही
काला हो
जाता है

फिर कोई
कुछ भी
नहीं पढ़
पाता है

इसलिये
थोड़ी
सी ही
बात कोई
बताता है

एक
समझदार
कभी भी
पूरी रामायण 
सामने नहीं
लाता है

सामने वाले
को बस
उतना ही
दिखाता है
जितने में
उसे बिना
चश्में के
राम सीता
के साथ
हनुमान भी
नजर आ
जाता है

सामने
वाला जब
इतने से
ही भक्त
बना लिया
जाता है

तो

कोई
बेवकूफी
करके
पूरी
खिचड़ी
सामने
क्यों कर
ले आता है
दाल और
चावल के
कुछ दानों
से जब
किसी का
पेट भर
जाता है ।

शुक्रवार, 1 जून 2012

मुर्गी की दाल

समझदार मुर्गी
अपनी सूरत
और सेहत को
कभी नहीं
बढा़ती है
दुश्मनी होती है
जिस मुर्गी से
उसे खूब
खिलाती और
पिलाती है
वैसे तो हर बाडे़
में मुर्गियाँ ही
मुर्गियाँ हर तरफ
फड़फडा़ती हैं
लेकिन हर मुर्गी
की तरफ हर
किसी की नजर
कहाँ जाती है
ये वाकई
समझदारी
की बात सभी
के द्वारा
बताई जाती है
एक कानी मुर्गी
ही मुर्गियों के
द्वारा रानी
चुनवायी जाती है
बाड़े की सेहतमंद
खूबसूरत मुर्गी
सबकी नजर में
लाई जाती है
चाहने वालों
के हाथों कहीं
ना कहीं कटवा
दी जाती है
मर खप
जब जाती है
फिर पकवाई
भी जाती है
खाने वालों के
नखरे सहती है
और दाल
बताई जाती है
कानी मुर्गी
इसी बीच कहीं
जंगल में जाकर
नाच आती है
जंगल में मोर
नाचा की
एक खबर
अखबार
में आती है
कितने आसान
तरीके से
घर की मुर्गी
दाल बराबर
सबको समझा
जाती है।