बस एक आईना दिखा रहा है
किसी को पश्चिमी विक्षोभ
किसी को मानसून का बिगड़ा रुप
इस सब टूट फूट में नजर आ रहा है
केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को मीडिया
उजड़ गया जैसा दिखा रहा है
देवभूमि का देवता अपनी करतूतों को
अब क्यों नहीं झेल पा रहा है
इतना पानी अपने जीवन में मैने नहीं देखा
सुंदर लाल बहुगुणा का एक वक्तव्य अखबार में आ रहा है
इतिहास में ऎसा नहीं हुआ हो सकता है
भूगोल किसने बिगाड़ा
इस बात पर कोई भी प्रकाश नहीं डाल पा रहा है
ये कौन देख रहा है
भक्त जाया करते थे जहाँ किसी जमाने में
पूजा के थाल लेकर
टूरिस्ट होटल बुक करा रहा है
नान वेज आसानी से मिलता है आस पास
पता है उसे
बोतल भी साथ में ले जा रहा है
शातिराना अंदाज में इधर उधर जो किया जा रहा है
उसे कोई कहाँ देख पा रहा है
नियम कागज में लिखा जा रहा है
काम घर में किया ही जा रहा है
पैसा बैंक में नहीं रखता है कोई
एक के घर के बोरे से दूसरे के घर के थैले में जा रहा है
स्कूल में बच्चा पर्यावरण पर चित्र बना रहा है
क्या क्या लिखूँ समझ में नहीं आ पा रहा है
सोलह मुट्ठी जमीन को घेरे जा रहा है
एक मुट्ठी की खरीद कागज बता रहा है
देवदार का पेड़ है
सौ साल से खड़ा बहुत ही बड़ा
सौ साल से खड़ा बहुत ही बड़ा
कागज में नजर नहीं कहीं आ रहा है
मकान चारों तरफ उसके बना जा रहा है
ढकते ही दिखना बंद हुआ जैसे ही
उसकी जड़ में कीलें घुसा कर सुखाया जा रहा है
कुछ ही दिनों में खिड़की दरवाजों के रुप में
मकान में लगा हुआ भी नजर आ रहा है
वन विभाग का अफसर रोज
अपनी सरकारी गाड़ी लेकर उसी रास्ते से जा रहा है
काला चश्मा पहनता है कुछ भी नहीं देख पा रहा है
मकान एक करोड़ का बनाया जा रहा है
पानी प्लास्टिक के नलों से सड़कों तक पहुँचाया जा रहा है
सरकार की आँख कान में शास्त्रीय संगीत बजाया जा रहा है
मुख्यमंत्री आपदा से आहत हुआ नजर तो आ रहा है
हैलीकाप्टर से चक्कर पर चक्कर लगा रहा है
केन्द्र से मिलने वाली एक हजार करोड़ की
आपदा सहायता के हिसाब लगाने में
सब कुछ भूल सा जा रहा है ।
चित्र साभार: http://throughpicture.blogspot.com/