उलूक टाइम्स: आपदा
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रविवार, 26 अप्रैल 2015

जलजलों से पनपते कारोबार

 
मिट्टी और पत्थर के व्यापार का
फल फूल रहा है कारोबार

रोटी कपड़े और मकान की ही बात
करना बस अब हो गया है बेकार

अपनी ही कब्र खुदवा रहा है
किसी आदमी से ही आदमी

जमा कर मिट्टी और पत्थर
अपने ही आसपास
बना कर कच्ची और ऊँची एक मीनार

आदमी सच में हो गया है
बहुत ज्यादा ही होशियार

हे तिनेत्र धारी शिव
तेरे मन में क्या है तू ही जानता है
खेल का मैदान जैसा ही है तेरे लिये ये संसार

पहले केदारनाथ अब पशुपतिनाथ
तूने किया या नहीं किसे पता है
और कौन जाने कौन समझे प्रकृति की मार

मंद बुद्धि करे कोशिश समझने की कुछ

होता है अनिष्ट किस का और क्यों
कब और कहाँ किस प्रकार

दिखती है ‘उलूक’ को अपने चारों तरफ
बहुत से सफेदपोशों की
जायज दिखा कर जी ओ पढ़ा कर
की जा रही लूटमार

मरते नहीं कोई कहीं इस तरह
मर रहे हैं जलजले में तेरे इंसान
एक नहीं बहुत से ईमानदार

शुरु हो चुका है खेल आपदा प्रबंधन का
सहायता के कोष के खुल चुके हैं
जगह जगह द्वार

हे शिव हे त्रिनेत्र धारी
तू ही समझ सकता है
तेरे अपने खेलों के नियम
विकास और विनाश की परिभाषाऐं
मिट्टी और पत्थर के लुटेरों पर बरसता तेरा प्यार
उनका ऊँचाइयों को छूता कारोबार
जलजले से पनपते लोग फलते फूलते हर बार ।

चित्र साभार: www.clipartbest.co

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2013

राम तुलसी को कोस रहा होता अगर वो सब तब नहीं आज हो रहा होता



हुआ तो 
बहुत कुछ है 

एक
मोटी 
किताब में 
सब कुछ लिखा गया है

कुछ
समझ में 
आ जाता है
जो
नहीं आता है
सब समझ चुके विद्वानो से
पूछ 
लिया जाता है

मान
लिया 
जाता है
पढ़ा लिखा आदमी कभी भी
किसी को
बेवकूफ 
नहीं बनाता है

वही सब 
अगर आज हो रहा होता
तो राम 
तुलसी को बहुत कोस रहा होता

क्या कर रहा है 
पता नहीं इतने दिनो से

अभी तक 
तो
पूरी 
रामचरित मानस छपने  को दे चुका होता

प्रोजेक्ट 
इस पर भी भेजने के लिये बोला था
आवेदन तो कम से कम कर ही दिया होता

आपदा के फंड से
दीर्घकालीन अध्ययन के नाम पर
कुछ 
किसी से कहलवा कर
अब तक 
दे दिलवा भी दिया होता

हनुमान जी आये थे
खोद कर ले गये थे संजीवनी का पहाड़
केदारनाथ में जो हुआ 
उसी के कारण हुआ
इतना ही तो लिखना होता

लिख ही दिया होता
पर ये सब आज के दिन कैसे हो रहा होता

थोड़ा सा भी समझदार होता
तो तुलसीदास 
नहीं कुछ और हो रहा होता

बिना
कुछ 
लिये दिये
एक 
कालजयी ग्रन्थ
लिख लिखा कर ऐसे ही
बिना
कोई 
अ‍ॅवार्ड लिये
दुनिया से 
थोड़ा विदा हो गया होता ।

चित्र साभार: 
https://www.clipartkey.com/

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

प्रकृति विकेंद्रीकरण सीख



हे प्रकृति

छोटी धाराओं को 
तू कब तक
यूं ही 
मिलाते ही चली जायेगी

लम्बी थकाने वाली
दूरी 
चला चला कर
समुद्र में 
डाल कर के आयेगी

कुछ सबक
आदमी से भी 
कभी
सीखने के लिये 
अगर आ जायेगी

तेरी
बहुत सी परेशानियां 
चुटकी में दूर हो जायेंगी

आदमी
कभी बड़ी चीज 
को
बड़ा बनाने के लिये 
नहीं कहीं जाता
अपने लिये
खुद ही किसी 
आफत को नहीं बुलाता

तेरी जगह
अगर 
इसी काम का ठेका वो पा जाता
तो 
धाराओं को थोड़ी देर को रुकने के लिये 
बोल कर आता

इसी बीच
समुद्र को भी 
जाकर कुछ समझा आता
उसके
बड़े होते जाने के 
नुकसान
उसको 
सारे के सारे गिनाता

ये भी साथ में बताता
बड़ी चीज को संभालना 
बहुत ही मुश्किल
आगे 
जा कर कभी है हो जाता

समुद्र को
छोटे छोटे कुओं में 
इस तरह से बंटवाता

हर कुंऐ में 
एक मेंढक को
बुला कर के बैठाता

जब समुद्र 
समुद्र ही नहीं रह जाता

तब लौट कर 
धाराओं के सामने आकर
थोड़े से
आंसू कुछ बहाता

फिर किसी दिन 
साथ ले चलने का एक वादा 
बस कर के आता
टी ए डी ए का एक और मौका 
बनाता

और
आपदा आने पर भी 

तेरी तरह
आदमी की 
गाली नहीं खाता
वहां पर भी
कुछ 
पैसे बना ले जाता

हे प्रकृति

तेरी 
समझ में
ये 
क्यों नहीं आ पाता

धाराओं को मिलाने 
से
तुझे क्या 
है मिल जाता ।

चित्र साभार: www.uniworldnews.org

बुधवार, 19 जून 2013

बड़ी आपदा लम्बी कहानी होना नहीं कुछ है फिर भी सुनानी


ऊपर वाला मुझे मेरे कर्मो का
बस एक आईना दिखा रहा है

किसी को पश्चिमी विक्षोभ
किसी को मानसून का बिगड़ा रुप
इस सब टूट फूट में नजर आ रहा है

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग को मीडिया
उजड़ गया जैसा दिखा रहा है

देवभूमि का देवता अपनी करतूतों को
अब क्यों नहीं झेल पा रहा है

इतना पानी अपने जीवन में मैने नहीं देखा
सुंदर लाल बहुगुणा का एक वक्तव्य अखबार में आ रहा है

इतिहास में ऎसा नहीं हुआ हो सकता है
भूगोल किसने बिगाड़ा
इस बात पर कोई भी प्रकाश नहीं डाल पा रहा है

ये कौन देख रहा है
भक्त जाया करते थे जहाँ किसी जमाने में
पूजा के थाल लेकर

टूरिस्ट होटल बुक करा रहा है
नान वेज आसानी से मिलता है आस पास
पता है उसे
बोतल भी साथ में ले जा रहा है

शातिराना अंदाज में इधर उधर जो किया जा रहा है
उसे कोई कहाँ देख पा रहा है

नियम कागज में लिखा जा रहा है
काम घर में किया ही जा रहा है
पैसा बैंक में नहीं रखता है कोई
एक के घर के बोरे से दूसरे के घर के थैले में जा रहा है

स्कूल में बच्चा पर्यावरण पर चित्र बना रहा है

क्या क्या लिखूँ समझ में नहीं आ पा रहा है

सोलह मुट्ठी जमीन को घेरे जा रहा है
एक मुट्ठी की खरीद कागज बता रहा है

देवदार का पेड़ है
सौ साल से खड़ा बहुत ही बड़ा
कागज में नजर नहीं कहीं आ रहा है

मकान चारों तरफ उसके बना जा रहा है
ढकते ही दिखना बंद हुआ जैसे ही
उसकी जड़ में कीलें घुसा कर सुखाया जा रहा है

कुछ ही दिनों में खिड़की दरवाजों के रुप में
मकान में लगा हुआ भी नजर आ रहा है

वन विभाग का अफसर रोज
अपनी सरकारी गाड़ी लेकर उसी रास्ते से जा रहा है
काला चश्मा पहनता है कुछ भी नहीं देख पा रहा है

मकान एक करोड़ का बनाया जा रहा है
पानी प्लास्टिक के नलों से सड़कों तक पहुँचाया जा रहा है
सरकार की आँख कान में शास्त्रीय संगीत बजाया जा रहा है

मुख्यमंत्री आपदा से आहत हुआ नजर तो आ रहा है
हैलीकाप्टर से चक्कर पर चक्कर लगा रहा है
केन्द्र से मिलने वाली एक हजार करोड़ की
आपदा सहायता के हिसाब लगाने में
सब कुछ भूल सा जा रहा है ।

चित्र साभार: http://throughpicture.blogspot.com/

सोमवार, 1 अक्टूबर 2012

जानवर की खबर और आदमी की कबर




हथिनी के बच्चे का नहर में समाना
कोशिश पर कोशिश नहीं निकाल पाना
हताशा में चिंघाड़ना और चिल्लाना
हाथियों के झुंड का 
जंगल से निकल कर आ जाना
आते ही दो दलों में बट जाना
नहर में उतर कर बच्चे को धक्के लगाना
बच्चे का सकुशल बाहर आ जाना
हथिनी का बच्चे के बगल में आ जाना
हाथियों का सूंड में पानी भर कर लाना
बच्चे को नहलाकर वापस निकल जाना
पूरी कहानी का फिल्मी हो जाना
जंगली जीवन की सरलता के
जीवंत उदाहरण का सामने आ जाना
आपदा प्रबंधन का नायाब तरीका दिखा जाना
नजर हट कर 
अखबार के दूसरे कोने में जाना
आदमी की चीख किसी का भी ना सुन पाना
बच्चे के उसके मौत को गले लगाना
आपदा प्रबंधन का पावर पोइंट प्रेजेन्टेशन याद आ जाना
सरकार का 
लाश की कीमत कुछ हजार बताना
सांत्वना की चिट्ठी सार्वजनिक करवाना
मौत की जाँच पर कमेटी बिठाना
तरक्की पसंद आदमी की सोच का
जानवर हो जाना ।

चित्र साभार: https://www.upi.com/

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

अस्थायी व्यवस्था

हर तीसरे साल
के बाद बदल दिया
जाता रहा है
मेरी सस्ते गल्ले की
दुकान का मालिक
बात है ना मजेदार

उसके बाद चाहे तो भी
रुक नहीं पाता है
कोई भी हो ठेकेदार

बहुत समय से जबकी
लग जाते हैं इस काम में
लोग सपरिवार

दुकान का ठेका
उठाना चाह कर भी
नहीं हो पाते हैं
सफल हर बार

कोशिश करते ही
रह जाते हैं बेचारे
छोटे किटकिनदार

सरकार के काम
करने के सरकारी
तरीके को खुद कहाँ
जानती है सरकार

कुछ ऎसा ही एक
नजारा देखने में
आया है इस बार

एक बादल बेकार
नाराज हो कर
फट गया जा कर
एक कोने में
कहीं सपरिवार

ठेका देने वाले को
खुद उठाना पड़ा
एक कटोरा और
जाना पड़ गया
दिल्ली दरबार

प्रश्न गंभीर हो गया
अचानक
कौन चलायेगा
इस दुकान
को इस बार
आपदा की
इस घड़ी में
कौन ढूँढने जाता
एक सस्ते गल्ले की
दुकान के लिये
एक अदद ठेकेदार

मजबूरी में तंत्र
हुआ बेचारा लाचार
पकड़ लाया एक
पकौड़ी वाला जो
बेच रहा था
आजकल
कहीं पर
अपने ही अचार

कहा है उससे
जब तक हम
देते नहीं
दुकान को
एक अपना
ठेकेदार

तुझे ही
उठाना है
गिराना है
शटर इसका
पर पकाना
नहीं पकौड़े यहाँ

नहीं आना
चाहिये ऎसा
कोई अखबार
में समाचार ।

गुरुवार, 7 जून 2012

आपदा फिर से आना

भीषण हुवी थी
उस बार बरसात
आपदा थी
दूर कहीं एक गाँव था
एक स्कूल था
दर्जन भर बच्चे थे
मौत थी वीरानी थी
कुल जमा दो
साल पहले की
ये बात थी
सभी को हैरानी थी
निकल गयी उसके
बाद कई बरसात
मंत्री जी से ठेकेदार
पैसे की थी इफरात
स्कूल फिर से गया
उसी जगह पर बनाया
मंत्री जी
हो गये भूतपूर्व
सरकार को
इस बीच गंवाया
अखबार हो गये
सब जब दूर
खबर बनाने को
स्कूल के
उदघाटन का
मन बनाया
कार्यक्रम होने
ही वाला था
पूर्व संध्या को
स्कूल भरभराया
सीमेंट रेता
मिट्टी हो कर
जमीन में सोने
चला आया
हाय रे हाय
वर्तमान सरकार
ठीकरा तेरे सर
फूटने को आया
मंत्री जी ने अपनी
झेंप को मिटाया
सी बी आई से
होगी इन्क्वारी
का भरोसा गांव
वालों को दिलवाया
लाव लश्कर के साथ
अपना काफिला
वापस लौटाया
ऎसा वाकया
पहली बार
देखने में
है आया।

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

आपदा

बहते
पानी का 
यूं ठहर जाना

ठंडी
बयार की 
रफ्तार
कम हो जाना

नीले
आसमान का 
भूरा हो जाना

चाँद
का निकलना

लेकिन
उस 
तरह से नहीं

सूरज
की गर्मी में 
पौंधों
का
मुरझाना

ग्लेशियर
का 
शरमा के 
पीछे हट जाना

रिम झिम
बारिश 
का
रूठ जाना

बादल
का फटना

एक गाँव
का 
बह जाना

आपदा
के नाम 
पर
पैसा आना

अखबार
के लिये 
एक
खबर बन जाना

हमारा तुम्हारा 
गोष्ठी
सम्मेलन 
करवाना

नेता जी
का 
कुर्सी मेंं आकर के 
बैठ जाना

हताहतों
के लिये 
मुआवजे
की 
घोषणांं कर जाना

पूरे गांव
मे 
कोइ नहीं बचा 

ये
भूल जाना

आपदा प्रबंधन 
पर गुर्राना

ग्लोबल वार्मिंग
पर 
भाषण दे जाना

हेलीकोप्टर 
से आना
हेलीकोप्टर 
से जाना

राजधानी
वापस 
चले जाना

आँख मूंद कर 
सो जाना

अगले साल 
फिर आना ।