कब बनते हैं कब उठते हैं
और कब फूट जाते हैं
और कब फूट जाते हैं
कोशिश करना भी
चाहता है कोई
छाँटना
एक बुलबुला अपने लिये
मुश्किल में जैसे फँस जाता है
जब तक
नजर में आता है एक
बहुत सारों को
अगल बगल से बन कर फूटता हुआ
देखता रह जाता है
अगल बगल से बन कर फूटता हुआ
देखता रह जाता है
कुछ ही देर में ही
बुलबुलों से ही जैसे सम्मोहित हो जाता है
कब बुलबुलों के बीच का ही
एक बुलबुला खुद हो जाता है
समझ ही नहीं पाता है
बुलबुलों को
कोमल अस्थाई और अस्तित्वहीन
समझने की कोशिश में
ये भूल जाता है
ये भूल जाता है
बुलबुला एक क्षण में ही
फूटते फूटते अपनी पहचान बना जाता है
फूटते फूटते अपनी पहचान बना जाता है
एक फूटा नहीं
जैसे हजार पैदा कर जाता है
ये और वो भी
इसी तरह रोज ही फूटते हैं
रोज भरी जाती है हवा
रोज उड़ने की कोशिश करते हैं
अपने उड़ने की छोड़
दूसरे की उड़ान से उलझ जाते हैं
इस जद्दोजहद में
कितने बुलबुले फोड़ते जाते हैं
बुलबुले पूरी जिंदगी में
लाखों बनते हैं लाखों फूटते हैं
फिर भी बुलबुले ही कहलाते हैं
ये और वो भी एक बार नहीं
कई बार फूटते हैं
या फोड़ दिये जाते हैं
या फोड़ दिये जाते हैं
इच्छा आकाँक्षाओं की हवा को
जमा भी नहीं कर पाते हैं
ना वो हो पाते हैं ना ये हो पाते हैं
हवा भी यहीं रह जाती है
बुलबुले बनते हैं
उड़ते भी हैं फिर फूट जाते हैं
उड़ते भी हैं फिर फूट जाते हैं
सब कुछ
बहुत कुछ साफ कह रहा होता है
सब
सब कुछ समझते हुऐ भी
नासमझ हो जाते हैं
सब कुछ समझते हुऐ भी
नासमझ हो जाते हैं
फूटते ही
हवा भरने भराने के
हवा भरने भराने के
जुगाड़ में
लीन और तल्लीन हो जाते हैं ।
चित्र साभार: https://pngtree.com/
लीन और तल्लीन हो जाते हैं ।
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