उलूक टाइम्स: पानी
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गुरुवार, 21 जून 2018

कतारें खूबसूरत सारी की सारी बहुत सारी बस आज ऐसे ही बनानी हैं

तपती रेत है
बहुत तेज धूप है
हैरान नहीं होना है
रोज की परेशानी है

यहाँ की रेत की
बात यहीं तक रखनी है
किसी को नहीं बतानी है

बस हरी दूब लानी है

बहुत जगह उगी है
बहुत सारी उगी है
हरी हरी दूब है
पानी नहीं होने की
बात ही बेमानी है

बहुत तेज जोरों से
प्यास ही तो लगी है

धैर्य रख
ज्ञानी हैं विज्ञानी हैं
बस यहीं कहीं हैं
सच बात है
नहीं कोई कहानी है

करना कुछ नहीं है
सपने उगाने तो हैं
पर बोना कुछ नहीं हैं
बीज ही नहीं हैं

देखनी रेत है
दूब बस सोचनी है
कौन सा उगानी है

पानी नहीं है
पीना कुछ नहीं है

प्यास
बस एक सोच है
बातें की बहती हुई
नदी एक दिखानी है

एक साफ
चादर ही तो लानी है
गरम रेत
के ऊपर से बिछानी है

दूब हरी हरी
दूर से कहीं से भी
लाकर फैलानी है
बोनी नहीं है
उगानी नहीं है
बस एक दिन
की बात ही है
कुछ नहीं होना है
सूखनी है सुखानी है

गाय भैंस बकरी हैं
कम ज्यादा
कुछ भी मिले
बिकनी बिकानी है

कुछ खड़े होना है
कुछ देर सोना है
इसको उसको सबको
एक साथ एक बार
एक ही बात बतानी है

चोंच नीचे लानी है
पूँछ ऊपर उठानी है
‘उलूक’
कुछ भी कह देने की
तेरी आदत पुरानी है

भीड़ नहीं कहते हैं
बहुत सारे लोगों को

दूर तलक दूर दूर
कतारें खूबसूरत
सारी की सारी
बहुत सारी
बस आज
और आज
ऐसे ही
बनानी हैं।

चित्र साभार: www.123rf.com

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

क्या धोया ना कपड़ा रहा ना साबुन रहा सब कुछ पानी पानी हो गया

अब क्या कहूँ
कहने के लिये
कुछ भी नहीं
कहीं रह गया
कुछ मैला तो
नहीं हो गया
सोचने सोचने
तक बिना साबुन
बिना पानी के
हवा हवा में
ही धो दिया
धोना बुरी
बात नहीं पर
इतना भी
क्या धोना
पता चला
कपड़ा ही
धोते धोते
कहीं खो गया
साबुन गल
गया पूरा
बुलबुलों भरा
झाग ही झाग
बस दोनों ही
हाथों में रह गया
हे राम
तू निकला
गाँधी के मुँह से
उनकी अंतिम
यात्रा के पहले
उसके बाद
आज निकल
रहा है एक नहीं
कई कई मुँहों से
एक साथ
हे राम
ये क्या हो गया
भक्तों की पूजा
अर्चना करना
क्या सब
मिट्टी मिट्टी
हो गया
आदमी मेरे
गाँव का लगा
आज तेरे से
ज्यादा ही
पावरफुल
हो गया
अब क्या कहूँ
किससे कहूँ
रोना आ रहा है
धोने के लिये
बाकी कहीं भी
कुछ नहीं रह गया ।

चित्र साभार: www.4to40.com

बुधवार, 24 दिसंबर 2014

पानी रे पानी लिख तो सही तू भी कभी तो कुछ पानी


बहते पानी की एक लहर लिख
और छोड़ दे
पानी में पानी

गंदा है या साफ है
कोई फर्क नहीं पड़ता है
बस पानी होना चाहिये

और उस पानी को
बहने की तमीज होनी चाहिये

मतलब
एक परिभाषा अनुरूप ही होना चाहिये
पानी

जैसे
पानी में रसायन रासायनिक पानी
पानी का मंत्री मंत्री पानी 
पानी का प्रधानमंत्री प्रधानमंत्री पानी
गंगा का पानी बिना कपड़े का नंगा पानी

पानी
टाई पहने हुऐ एक शरीफ पानी
शोध परियोजना का सबसे महंगा पानी

कुछ भी कह दो कुछ भी लिख दो
किसे पता चलना है कुछ
जब बह गया हो
पानी में पानी

बहुत आसान है
बहुत बेकार का है हर जगह दिखता है
हर जगह मिलता है वही
जो है पानी

लूटता भी नहीं है जिसको हर लुटेरा
सोचता भी कहाँ है
पानी

बहुत अच्छा है
लिख लेना कभी थोड़ा सा
कुछ पानी

किस को पड़ी है
पानी की
कहीं बहता रहे लिखा लिखाया
उसमें कहीं तेरा भी कुछ कहीं
पानी

कितना अच्छा है सोचने में 
कि
तू भी पानी और मैं भी पानी

कहाँ होता है अलग
पानी से कभी कहीं का भी
पानी

लूट खसोट चूस और मुस्कुरा
और फिर कह दे सामने वाले से
कि मैं हूँ
पानी

‘उलूक’
तेरे पानी पानी हो जाने से भी
कुछ नहीं होना है
पानी को रहना है हमेशा ही
पानी ।

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

बहुत कुछ हो रहा होता है पर क्या ? यही बस पता नहीं चल रहा होता है

बहते हुऐ पानी
को देखती हुई
दो आँखें इधर से
गिन रही होती हैं
पानी के अंदर
तैरती मछलियाँ
और उधर से
दो और आँखें
बहते हुऐ पानी
को गिन रही होती हैं
मछलियाँ
गिनना कहना
तो समझ में
आ रहा होता है
उसे भी जो पानी में
देख रहा होता है
और उसे भी जो
गिनती नहीं
जानता है पर
मछलियाँ
मछलियाँ होती हैं
अच्छी तरह
पहचानता है
पानी को गिनने
की बात करना
पानी को कोई
गिन रहा है जैसा
किसी को कहते
हुऐ सुनना और
पानी गिनने की
बात पर कुछ सोचना
किसी को भी
अजीब लग सकता है
लेकिन ऐसी ही
अजीब सी बातें
एक नहीं कई कई
रोज की जिंदगी
में आने लगी हैं
सामने से
इस तरह की बातों को
कोई किस से कहे
कौन सिद्ध करे
अपने दिमाग का
दिवालियापन
बहुत से लोग अब
यही सब करते हैं
समझते हैं और
बहुत आसान होता है
ऐसा महसूस होता है
क्योंकि ऐसा एक नहीं
कर रहा होता है
बल्कि एक दो को
छोड़ कर हर कोई
इसी चीज को लेकर
एक दूसरे को समझ
और समझा रहा होता है
‘उलूक’ परेशान होकर
पानी के सामने
अपने कैल्कुलेटर की
पुरानी बैटरी को
नई बैटरी से
बदल रहा होता है
सारा का सारा पानी
बह कर उसके ही
सामने से निकल
रहा होता है
क्या किया
जा सकता है
कुछ लोगों की
फितरत ऐसी
ही होती है
वो कुछ नहीं
कर सकते हैं
और उनसे
कभी भी
कुछ भी
नहीं होता है ।

चित्र साभार: cwanews.com

बुधवार, 6 अगस्त 2014

बारिशों का पानी भी कोई पानी है नालियों में बह कर खो जाता है

खुली खिड़कियों
को बरसात
के मौसम में
यूँ ही खुला
छोड़ कर
चले जाने
के बाद
जब कोई
लौट कर
वापस
आता है
कई दिनों
के बाद
गली में
पाँवों के
निशान तक
बरसते पानी
के साथ
बह चुके
होते हैं
पता भी
नहीं चलता है
किसी के आने
और
झाँकने का भी
दरवाजे भी
कुछ कुछ
अकड़ चुके
होते है
बहुत सारे
लोग
बहुत सारे
लोगों के
साथ साथ
आगे पीछे
होते होते
कहीं से
कहीं की
ओर निकल
चुके होते हैं
वहम होने
या
ना होने का
हमेशा वहम
ही रह
जाता है
जब कोई
गया हुआ
वापस लौट
कर आता है
जहाँ से
गया था
वहाँ पहुँच
कर बस
इतना ही
पता चल
पाता है
पता नहीं
किसी ने
पता लिख
दिया था
उस का
उस जगह का
जहाँ उसे
लगता था
वो है
उस जगह पर
लौट कर
खुद अपने
को ही बस
नहीं ढूँढ
पाता है
हर कोई
अपने अपने
पते को
लेकर
अपनी अपनी
चिट्ठी

खुद के
लिये ही

लिखता हुआ
नजर आता है
ना पोस्ट आफिस
होता है जहाँ
ना ही कोई
डाकिया
कहीं दूर
दूर तक
नजर आता है
‘उलूक’
बहुत ही
जालिम है ये
सफेद पन्ना
काला नहीं
हो पाता है
अगर कभी
तो कोई
भी झाँकने
तक नहीं
आता है
काँटा
चुभा रहना
जरूरी है
पाँव के
नीचे से
खून दिखना
भी जरूरी
हो जाता है
तेरा पता तुझे
पता होता है
खुद ही खोना
खुद ही ढूँढना
खुद को यहाँ
हर किसी को
इतना मगर
जरूर
आता है ।

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

सभी के होते हैं रिश्ते सभी बनाना चाहते हैं


कंकड़
पत्थर
की ढेरी के
एक कंकड़
जैसे हो जाते हैं

रिश्ते
साथ रहते हुऐ भी
अलग हो जाते हैं

जब
इच्छा होती है
इस ढेरी से
उस ढेरी में
डाल दिये जाते हैं

पता
चल जाता है
आकार प्रकार
और रंग से

अभी
तक कहीं
और थे
अभी
अभी कहीं
और
पाये जाते हैं

रस्सी
नहीं होते हैं
गांठो में नहीं
बांधे जाते है

खोलने
बांधने के
मौके जबकि
बहुत बार
सामने से आते हैं

मिलने जुलने
से लेकर
बिछोह
होने तक
रिश्ते गरम
से होते हुऐ
कब ठंडे
हो जाते हैं

रिश्ते
आसमान से
गिरते जल की
ऐसी बूँदे भी
हो सकते हैं

गिरते गिरते ही
एक दूसरे में
जो आत्मसात
हो जाते हैं

पानी में से
पानी को
अलग कर पाना
अभी तक यहाँ
कहीं भी नहीं
सिखाते हैं

अपनी अपनी
की धुन में
नाचती अपनी
जिंदगी में

कब
बूँद बन कर
आसमान
से नीचे की ओर
गिरते हुऐ आते हैं

किसी
दूसरी बूंद में
मिलने से पहले ही
कब पत्थर हो जाते हैं

जानते हैं
समझते हैं
पर समझना ही
कहाँ चाहते हैं

एक ढेरी के
कंकड़ो
में गिरकर
इधर से उधर
लुढ़कते लुढ़कते
किसी दूसरी ढेरी
में पहुँच जाते है

रिश्ते
पानी की बूँदें
नहीं हो पाते हैं ।

बुधवार, 21 मई 2014

मुट्ठी बंद दिखने का वहम हो सकता है पर खुलने का समय सच में आता है



अंगुलियों
को 

मोड़कर 
मुट्ठी बना लेना 

कुछ भी
पकड़ 
लेने
की
शुरुआत 

पैदा होते हुऐ 
बच्चे
के साथ 

आगे भी
चलती 
चली जाती है 

पकड़
शुरु में 
कोमल होती है 

होते होते
बहुत
कठोर
हो जाती है 

किसी भी
चीज को 
पकड़ लेने की सोच 

चाँद
भी पकड़ने
के 
लिये
लपक जाती है 

पकड़ने की
यही 
कोशिश
कुछ 
ना कुछ
रंग 
जरूर दिखाती है 

आ ही
जाता है 
कुछ ना कुछ 
छोटी सी मुट्ठी में 

मुट्ठी
बड़ी और बड़ी 
होना
शुरु हो जाती है 

सब कुछ हो 
रहा होता है 

बस
आँख बंद 
हो जाती है 

फिर
आँख और 
मुट्ठी 
खुलना शुरु 
होती है

जब 
लगने लगता है 
बहुत कुछ

जैसे
हवा पानी 
पहाड़ अपेक्षाऐं 
मुट्ठी में आ चुकी हैं 

और
पकड़ 
उसके बाद 
यहीं से

ढीली 
पड़ना शुरु 
हो जाती है 

‘उलूक’
वक्र का 
ढलना
यहीं से 
सीखा जाता है 

वक्र का
शिखर 
मुट्ठी से बाहर 
आ ही जाता है 

उस समय
जब 
सभी कुछ
मुट्ठी 
में
समाया हुआ 

मुट्ठी में
नहीं 
मिल पाता है 

अपनी अपनी
जगह 
जहाँ था

वहीं
जैसे 
वापस
चला जाता है 

अँगुलियाँ
सीधी 
हो
चुकी होती हैं 

जहाज
के
उड़ने का 
समय
हो जाता है ।


चित्र साभार:
 http://www.multiversitycomics.com/

बुधवार, 19 मार्च 2014

लहर दर लहर बहा सके बहा ले अपना घर

ना पानी की
है लहर
ना हवा की
है लहर
बस लहर है
कहीं किसी
चीज की है
कहीं से कहीं
के लिये चल
रही है लहर
चलना शुरु
होती है लहरें
इस तरह की
हमेशा ही नहीं
बस कभी कभी
लहर बनती
नहीं है कहीं
लहर बनाई
जाती है
थोड़ा सा
जोर लगा कर
कहीं से कहीं को
चलाई जाती है
हाँकना शुरु
करती है लहर
पत्ते पेड़ पौंधों
को छोड़ कर
ज्यादातर भेड़
बकरी गधे
कुत्तों पर
आजमाई जाती
है लहर
बहना शुरु
होता है
कुछ कुछ
शुरु में
लहर के
बिना भी
कहीं को
कुछ इधर
कुछ उधर
बाद में कुछ
ले दे कर
लहराई जाती
है लहर
आदत हो चुकी
हो लहर की
हर किस को
जिस जमीन पर
वहाँ बिना लहर
दिन दोपहर
नींद में ले
जाती है लहर
कैसे जगेगा
कब उठेगा
उलूक नींद से
जगाना मुश्किल
ही नहीं
नामुमकिन है तुझे
लहर ना तो
दिखती है कहीं
ना किसी को
कहीं दिखाई
जाती है लहर
सोच बंद रख
कर चल उसी
रास्ते पर तू भी
हमेशा की तरह
आपदा आती
नहीं है कहीं
भी कहीं से
लहर से लहर
मिला कर ही
हमेशा से लहर
में लाई जाती
है लहर
लहर को सोच
लहर को बना
लहर को फैला
डूब सकता है
डूब ही जा
डूबने की इच्छा
हो भी कभी भी
किसी को इस
तरह बताई नहीं
जाती है लहर
हमेशा नहीं चलती
बस जरूरत भर
के लिये ही
चलाई जाती
है लहर ।

सोमवार, 17 फ़रवरी 2014

पानी नहीं है से क्या है अपनी नाव को तो अब चलने की आदत हो गई है

कोई नई बात नहीं कही गई है 
कोई गीत गजल कविता भी नहीं बनी है 

बहुत जगह एक ही चीज बने 
वो भी ठीक जैसा तो नहीं है 

इसलिये हमेशा कोशिश की गई है 
सारी अच्छी और सुन्दर बातें 
खुश्बू वाले फूलों के लिये 
कहने सुनने के लिये रख दी गई हैं 

अपने बातों के कट्टे में
सीमेंट रेते रोढ़ी की 
जैसी कहानियाँ
कुछ सँभाल कर रख दी गई हैं 

बहुत सारी
इतनी सारी जैसे आसमान के तारों की 
एक आकाशगंगा ही हो गई है 

खत्म नहीं होने वाली हैं 
एक के निकलते पता चल जाता है 
कहीं ना कहीं तीन चार और 
तैयार होने के लिये चली गई हैं 

रोज रोज दिखती है एक सी शक्लें अपने आस पास 
वाकई में बहुत बोरियत सी अब हो गई है 

बहुत खूबसूरत है ये आभासी दुनियाँ 
इससे तो अब मोहब्बत सी कुछ हो गई है 

बहुत से आदमियों के जमघट के बीच में 
अपनी ही पहचान जैसे कुछ कहीं खो गई है 

हर कोई बेचना चाहता है कुछ नया 
अपने कबाड़ की भी कहीं तो अब खपत 
लगता है हो ही गई है ।

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

पता होता है फूटता है फिर भी जानबूझ कर हवा भरता है


पानी में
बनते 
रहते हैं बुलबुले
कब बनते हैं कब उठते हैं 
और कब फूट जाते हैं

कोशिश करना 
भी
चाहता है 
कोई
छाँटना 
एक बुलबुला अपने लिये
मुश्किल में जैसे फँस जाता है

जब तक
नजर 
में आता है एक
बहुत सारों को 
अगल बगल से बन कर फूटता हुआ
देखता 
रह जाता है

कुछ ही देर में 
ही
बुलबुलों से 
ही जैसे सम्मोहित हो जाता है

कब बुलबुलों के 
बीच का ही
एक 
बुलबुला खुद हो जाता है
समझ ही नहीं पाता है

बुलबुलों को 
कोमल अस्थाई और अस्तित्वहीन
समझने की कोशिश में
ये 
भूल जाता है
बुलबुला एक क्षण में ही 
फूटते फूटते अपनी पहचान बना जाता है

एक फूटा नहीं 
जैसे हजार पैदा कर जाता है

ये और वो भी 
इसी तरह रोज ही फूटते हैं

रोज भरी 
जाती है हवा
रोज उड़ने की कोशिश करते हैं

अपने उड़ने की छोड़ 
दूसरे की उड़ान से उलझ जाते हैं
इस जद्दोजहद में 
कितने बुलबुले फोड़ते जाते हैं

बुलबुले पूरी जिंदगी 
में
लाखों बनते हैं 
लाखों फूटते हैं
फिर भी बुलबुले ही कहलाते हैं

ये और वो भी 
एक बार नहीं
कई बार फूटते हैं 
या फोड़ दिये जाते हैं

इच्छा आकाँक्षाओं की 
हवा को
जमा भी 
नहीं कर पाते हैं
ना वो हो पाते हैं ना ये हो पाते हैं

हवा भी यहीं 
रह जाती है
बुलबुले बनते हैं 
उड़ते भी हैं फिर फूट जाते हैं

सब कुछ
बहुत कुछ 
साफ कह रहा होता है
सब
सब कुछ 
समझते हुऐ भी 
नासमझ हो जाते हैं
फूटते ही
हवा 
भरने भराने के
जुगाड़ में
लीन और 
तल्लीन हो जाते हैं ।

चित्र साभार: https://pngtree.com/

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

पानी से अच्छा होता अगर दारू पर कुछ लिखवाता


हर कोई तो पानी 
पर लिख रहा है

अभी अभी का 
लिखा हुआ पानी पर
अभी का अभी
उसी 
समय जब मिट रहा है

तुझे ही पड़ी है 
ना जाने क्यों
कहता जा रहा है पानी सिमट रहा है

जमीन के नीचे 
बहुत नीचे को चला जा रहा है

पानी की बूंदे 
तक शरमा रही हैं
अभी दिख रही हैं अभी विलुप्त हो जा रही हैं
उनको पता है 
किसी को ना मतलब है ना ही शरम आनी है

सुबह सुबह की 
ओस की फोटो
तू भी कहीं लगा होगा खींचने में
मुझे नहीं लगता है 
किसी और को पानी की कहीं भी याद कोई आनी है

इधर आदमी लगा है 
ईजाद करने में
कुछ ऐसी पाईप लाइने
जो घर घर में जा कर
पैसा ही पैसा बहाने को बस रह जानी हैं

तू भी देख ना कहीं 
पैसे की ही धार को
हर जगह आजकल 
वही बात काम में बस किसी के आनी है

पानी को भी कहाँ 
पड़ी है
पानी की 
अब कोई जरूरत
आँखे भी आँखो में पानी लाने से
आँखो को ही परहेज करने को
जब कहके 
यहाँ अब जानी हैं

नल में आता तो है 
कभी कभी पानी
घर पर नहीं आता है तो कौन सा गजब ही हो जाना है
बस लाईनमैन की जेब को गरम ही तो करवाना है
तुरंत पानी ने दौड़ कर आ जाना है

मत लिया कर इतनी 
गम्भीरता से किसी भी चीज को
आज की दुनियाँ में 
हर बात नई सी जब हो जा रही है

हवा पानी आग 
जमीन पेड़ पौंधे
जैसी बातें सोचने वाले लोगों के कारण ही
आज की पीढ़ी
अपनी अलग पहचान नहीं बना पा रही है

पानी मिल रहा है पी 
कुछ मिलाना है मिला
खुश रह
बेकार की बातें मत सोच कुछ कमा धमा

होगा कभी 
युद्ध भी अगर
पानी को 
लेकर कहीं
वही मरेगा सबसे पहले
जो पैसे का नल नहीं लगा पायेगा
पैसा होगा तो वैसे भी प्यास नहीं लगेगी

पानी नहीं भी 
होगा कहीं तब भी
कुछ अजब 
गजब नहीं हो जायेगा
ज्यादा से ज्यादा 
शरम से जमीन के थोड़ा और नीचे की ओर चला जायेगा

और फिर
एक बेशरम 
चीर हरण करेगा
किसी को भी कुछ नहीं होगा
बस
पानी ही खुद में पानी पानी हो जायेगा ।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

मंगलवार, 26 नवंबर 2013

कर कुछ भी कर बात कुछ और ही कर


कुछ इधर 
की
बात कर 

कुछ उधर 
की
बात कर 

करना बहुत 
जरूरी है 

बेमतलब 
की
बात कर 

समझ में 
कुछ आये 
कहा कुछ 
और
ही जाये

बातों की 
हो बस बात 
कुछ ऐसी
ही
बात कर 

इससे करे 
तो
उसकी 
बात कर 

उससे करे 
तो
इसकी 
बात कर 

जब हों 
आमने 
सामने 
ये वो 

तो
मौसम 
की
बात कर 

कुछ भी 
करना 
हो
कर 

जैसे भी 
करना 
हो
कर 

बात करनी 
ही
पड़े

तो
कुछ नियम 
की
बात कर 

थोड़ी चोरी 
भी
कर 

कुछ 
बे‌ईमानी 
भी
कर 

बात पूरी 
की
पूरी 

ईमानदारी 
की
कर 

इसके पीने 
की
कर 

उसके पीने 
की
कर 

खुद
की 
बोतल में 

गंगाजल 
होने
की 
बात कर 

कहीं भी 
आग लगा 

जो
मन में 
आये जला 

आसमान 
से

बरसते 
हुऐ पानी 
की
बात कर 

अपनी भूख 
को बढ़ा 

जितना
खा 
सकता है
खा 

बात भूखे 
की
कर 

बात गरीबों 
की
कर 

 बात 
करनी है 
जितनी
भी 
चाहे तू
कर 

बात करने 
पर ही 
नहीं लगता 
है कर 

यहां कोई 
बात कर 

वहां कोई 
बात कर 

बाकी पूछे 
कोई कभी

कहना
ऊपर 
वाले से
डर ।

शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है

ना कहीं खेत होता है 
ना ही कहीं रेत होती है 

ना किसी तरह की खाद की 
ना ही पानी की कभी कहीं जरूरत होती है 

फिर भी कुछ ना कुछ 
उगता रहता है 

हर किसी के पास 
हर क्षण हर पल 
अलग अलग तरह से कहीं सब्जी तो कहीं फल 

किसी को काटनी 
आती है फसल 
किसी को आती है पसंद बस घास उगानी 
काम फसल भी आती है और उतना ही घास भी 

शब्दों को बोना हर किसी के 
बस का नहीं होता है 
 बावजूद इसके कुछ ना कुछ उगता चला जाता है 
काटना आता है जिसे काट ले जाता है 
नहीं काट पाये कोई तब भी कुछ नहीं होता है 
अब कैसे कहा जाये 
हर तरह का पागलपन हर किसे के बस का नहीं होता है

कुकुरमुत्ते भी तो 
उगाये नहीं जाते हैं 
अपने आप ही उग आते हैं  
कब कहाँ उग जायें किसी को भी पता नहीं होता है 

कुछ कुकुरमुत्ते 
मशरूम हो जाते हैं 
सोच समझ कर अगर कहीं कोई बो लेता है 

रेगिस्तान हो सकता है 
कैक्टस दिख सकता है 

कोई लम्हा कहा जा सके 
कहीं एक बंजर होता है 
बस शायद ऐसा ही कहीं नहीं होता है ।

बुधवार, 14 मार्च 2012

लगा दी लंगड़ी



आओ आओ
कोई आओ

सिसूँण
काट कर
जल्दी लाओ

चौराहे पर
खड़े करो सब

पैंट खोल कर
फिर झपकाओ

बेशर्मी की
हद होती है
जनता जिनको
सपने देती है

हरकत उनकी
देखते जाओ

करोड़पति हैं
पढ़े लिखे हैं
अखबारों में
मत छपवाओ

चुल्लू भर
पानी दे आओ

सफेद
कपड़ोंं पर
मत जाओ
दल से इनके
मत भरमाओ

भाईचारा
समझ भी जाओ

किस
सीमा तक
जा सकते हैं
जमीर बेच कर
खा सकते हैं

चरित्र
देश का
मत गिरवाओ

समय अभी भी
बचा हुवा है
लुटने से
अब भी
बच जाओ

आओ आओ 
कोई आओ
जल्दी जाओ
सिसूँण लाओ
मिलकर जाओ
और झपकाओ।

़़़़़़़
सिसूँण = बिच्छू घास चित्र साभार:   https://weedid.missouri.edu
़़़़़़

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

आपदा

बहते
पानी का 
यूं ठहर जाना

ठंडी
बयार की 
रफ्तार
कम हो जाना

नीले
आसमान का 
भूरा हो जाना

चाँद
का निकलना

लेकिन
उस 
तरह से नहीं

सूरज
की गर्मी में 
पौंधों
का
मुरझाना

ग्लेशियर
का 
शरमा के 
पीछे हट जाना

रिम झिम
बारिश 
का
रूठ जाना

बादल
का फटना

एक गाँव
का 
बह जाना

आपदा
के नाम 
पर
पैसा आना

अखबार
के लिये 
एक
खबर बन जाना

हमारा तुम्हारा 
गोष्ठी
सम्मेलन 
करवाना

नेता जी
का 
कुर्सी मेंं आकर के 
बैठ जाना

हताहतों
के लिये 
मुआवजे
की 
घोषणांं कर जाना

पूरे गांव
मे 
कोइ नहीं बचा 

ये
भूल जाना

आपदा प्रबंधन 
पर गुर्राना

ग्लोबल वार्मिंग
पर 
भाषण दे जाना

हेलीकोप्टर 
से आना
हेलीकोप्टर 
से जाना

राजधानी
वापस 
चले जाना

आँख मूंद कर 
सो जाना

अगले साल 
फिर आना ।