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मंगलवार, 8 मई 2012

अज्ञानता और परमानंद

"ये विद्वांसा न कवय:"
का अर्थ
जब गूगल
में नहीं
ढूंढ पाया

कहने वाले
विद्वान का
द्वार तब
जा कर
खटखटाया

विद्वान
और कवि
दोनो का
भिन्न भिन्न
प्रतिभायें
होना पाया

कुछ
कसमसाया
दूर दूर तक
एक को भी
अभी तक
नहीं कहीं
छू पाया

कल रात
का सपना
सोच
घर पर
छोड़ आया

आज 
एक गुरु
ने जब
इन्कम
टैक्स का
हिसाब
कुछ लगाया

अचानक
सामने बैठी
महिला से
उसके वेतन
में लगने
वाला
डी ऎ
कितना है
पुछवाया

महिला ने
नहीं मालूम है
करके अपना
सिर जब
जोर से
हिलाया

गुरू जी ने
थोड़ा सा
मुस्कुराया

'इग्नोरेंस इज ब्लिस'
कह कर
फिर ठहाका
लगाया

गूगल
का पन्ना
फिर से
जब एक
बार और
खुलवाया

अज्ञानता
परमानंद है
का अनुवाद
वहाँ पर 
लिखा पाया

कल का
सपना
फिर से याद
जरा जरा
साआया

परमानंद
अभी बचा है
मेरे पास
सोच कर
'उलूक' ने
अपनी पीठ
को फिर से
खुद ही
थपथपाया।

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रविकर फैजाबादी
की टिप्पणी
भी देखिये

विज्ञानी सबसे दुखी, कुढ़ता सारी रात ।
हजम नहीं कर पा रहा, वह उल्लू की बात ।
वह उल्लू की बात, असलियत सब बेपर्दा ।
है उल्लू अलमस्त, दिमागी झाडे गर्दा ।
आनंदित अज्ञान, बहे ज्यों निर्मल पानी ।
बुद्धिमान इंसान, ख़ुशी ढूंढे विज्ञानी ।।

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