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शनिवार, 7 जनवरी 2012

जुल्म

दैनिक
हिन्दुस्तान 
भी

देखिये
कैसा
जुल्म
ढा रहा है


ना
पचने वाली

एक खबर
आज

सुना रहा है

गढ़वाल में

प्रोफेसर लोगों
की नेतागिरी
पर संकट
मंडरा रहा है

हाय हाय
मेरे 
तो
सीने में

जोर का दर्द
उठा जा रहा है

कुलपति जी

वहाँ के ऎसा
कैसे कर पा
रहे होंगे

या खाली में

हमारे लिये
एक खबर
बना रहे होंगे

भगवान करे

मेरे कुलपति
के कान में
ये खबर ना
जा पाये

वर्ना

कहीं

उनको भी
वैसा 
ही
बुखार
ना 
चढ़ जाये

प्रोफेसरी
से
क्या
हो पाता है


नेतागिरी
से ही 
तो देश
पढ़ 
पाता है

स्कूल
में पढ़ायेंगे

तो खाली बच्चे
पास हो जायेंगे

नेताओं को
पढ़ा 
लिये
अगर

तो 
सात पीढि़यों
का भला
कर
ले जायेंगे

नेताओं को
वैसे 
भी
पढ़ाने की

जरूरत है

स्कूल में

पढा़ भी दिया
तो कौन सा
कद्दू में तीर
मार जायेंगे।

शनिवार, 31 दिसंबर 2011

खबर

एक

देता है

कुछ
अनुदान

दो को

दो

कार्यक्रम
बनाता है

फिर

तीन
को बताता है

तीन
बहुत दूर से

चार
को बुलाता है

अतिथि
गृह में
ठहराता है

सलाद
कटवाता है

गिलास
धुलवाता है

चार
सेवा टहल
करवाता है

टी ए डी ए
भरवाता है

खर्राटे भरकर
सो जाता है

पांच

झाडू़
लगवाता है

मंच सजाता है

देर से घर जाता है

पांच

फिर
सुबह सुबह
आ जाता है

आदत
से मजबूर
खुद पर
खिसियाता है

कोई भी
उपस्थित
नहीं हुवा
समय पर

पाता है

दो और चार
टहल के आते हैं

कौलर अपने
उठाते हैं

धूप में
बैठ जाते हैं

श्रोता
एक घंटा
देर से आते हैं

बेहयाई
से फिर
मुस्कुराते हैं

तीन
घर में
बीन बजाता है

कुछ को
मोबाईल फोन
मिलाता है

कार्यक्रम
हुवा या नहीं
पता लगाता है

अखबार
वालों को
सब कुछ
बताता है

पांच
अगले दिन
खबर में पाता है

सारी
खबर में
अखबार
तीन ही तीन
दिखाता है

तीन
घर में रखी बीन
फिर से बजाता है

पांच
अपनी बीबी से

डांठ
जोर की
खाता है।