उलूक टाइम्स: प्रोफेसर
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शनिवार, 13 अक्टूबर 2012

मूल्याँकन का मूल्याँकन

दो सप्ताह से व्यस्त
नजर आ रहे थे
प्रोफेसर साहब
मूल्याँकन केन्द्र पर
बहुत दूर से आया हूँ
सबको बता रहे थे
कर्मचारी उनके बहुत ही
कायल होते जा रहे थे
कापियों के बंडल के बंडल
मिनटों में निपटा रहे थे
जाने के दिन जब
अपना पारिश्रमिक बिल
बनाने जा ही रहे थे
पचास हजार की
जाँच चुके हैं अब तक
सोच सोच कर खुश
हुऎ जा रहे थे
पर कुछ कुछ परेशान
सा भी नजर आ रहे थे
पूछने पर बता रहे थे
कि देख ही नहीं पा रहे थे
एक देखने वाले चश्में की
जरूरत है बता रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र के प्रभारी
अपना सिर खुजला रहे थे
प्रोफेसर साहब को अपनी राय
फालतू में दिये जा रहे थे
अपना चश्मा वो गेस्ट हाउस
जाकर क्यों नहीं ले आ रहे थे
भोली सी सूरत बना के
प्रोफेसर साहब बता रहे थे
अपना चश्मा वो तो पहले ही
अपने घर पर ही भूल कर
यहाँ पर आ रहे थे
मूल्याँकन केन्द्र प्रभारी
अपने चपरासी से
एक गिलास पानी ले आ
कह कर रोने जैसा मुँह
पता नहीं क्यों बना रहे थे !

बुधवार, 18 अप्रैल 2012

अ धन ब का वर्ग

परीक्षाऎं हो गयी हैं शुरु
मौका मिलता है
साल में एक बार
मुलाकातें होती हैं
बहुत सी बातें होती हैं
बहुत से सद्स्यों की
टीम में एक हैं
मेरे आदरणीय गुरू
उनको बहुत कुछ
वाकई में आता है
प्रोफेसर साहब से रहा
नहीं जाता है
पढाने लिखाने की
आदत पुरानी है
किसी से कहीं भी
उन के द्वारा कुछ भी
पूछ ही लिया जाता है
कल की बात आज
वो खाली समय में
बता रहे थे
क्या होता जा रहा है
आज के बच्चों को
समझा रहे थे
सर में वैसे तो उनके
बाल बहुत कम दिखाई देते हैं
पर नाई की दुकान का
वर्णन वो अपनी कथाओं
में जरुर ले ही लेते हैं
बोले कल मैं जब एक
नाई की दुकान में गया
कक्षा नौ में पढ़ने वाली
एक बच्ची ने प्रवेश किया
नाई को बौय कट बाल
काटने का आदेश दिया
बच्ची बाल कटवा रही थी
मेरे दिमाग की नसें
प्रश्नो को घुमा रही थी
आदत से मजबूर मैं
अपने को रोक नहीं पाया
बच्ची के सामने एक प्रश्न
पूछने के लिये लाया
बेटी क्या तुम अ धन ब
का वर्ग कितना होगा
मुझे बता सकती हो
बच्ची मुस्कुराई
उसने नाई की कैंची
चेहरे के ऊपर से हटवाई
बोलते हुवे चेहरा अपना घुमाई
अरे अंकल आप तो
बड़ी कक्षाओं को पढ़ाते हो
ये फालतू के प्रश्न कैसे
अब सोच पाते हो
कैल्कुलेटर का जमाना है
बटन सिर्फ एक दबाना है
किस को पड़ी है अ या ब की
हमारी पीढी़ को तो राकेट
कल परसों में हो जाना है
तो फालतू में अ धन ब
फिर उसपर उसका वर्ग
करने काहे जाना है।

शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012

झपट लपक ले पकड़

जमाना
वाकई में
बड़ी तेजी से
बदलता
जा रहा है

कौआ
कबूतर को
राजनीति
सिखा रहा है

कबूतर
अब चिट्ठियाँ
नहीं पहुंचाया
करता है

कौवा भी
कबूतर को
खाया नहीं
करता है

कौवा
उल्लुओं का
शिकार करने
की नयी
जुगत
बना रहा है

कौवा
कबूतर
भेज कर
उल्लूओं को
फंसा रहा है

ये पक्षियों
को क्या होता
जा रहा है

पारिस्थितिकी
को क्यों इस तरह
बिगाड़ा जा रहा है

"आदमी की
संगत का असर 

पक्षियों का
राजनीतिक
सफर"

मूँछ मे
ताव देता
एक प्रोफेसर
टेढ़े टेढ़े मुंह से
हंसता हुवा
यू जी सी की
संस्तुति हेतु
एक करोड़
की परियोजना
बना रहा है।

शनिवार, 7 जनवरी 2012

जुल्म

दैनिक
हिन्दुस्तान 
भी

देखिये
कैसा
जुल्म
ढा रहा है


ना
पचने वाली

एक खबर
आज

सुना रहा है

गढ़वाल में

प्रोफेसर लोगों
की नेतागिरी
पर संकट
मंडरा रहा है

हाय हाय
मेरे 
तो
सीने में

जोर का दर्द
उठा जा रहा है

कुलपति जी

वहाँ के ऎसा
कैसे कर पा
रहे होंगे

या खाली में

हमारे लिये
एक खबर
बना रहे होंगे

भगवान करे

मेरे कुलपति
के कान में
ये खबर ना
जा पाये

वर्ना

कहीं

उनको भी
वैसा 
ही
बुखार
ना 
चढ़ जाये

प्रोफेसरी
से
क्या
हो पाता है


नेतागिरी
से ही 
तो देश
पढ़ 
पाता है

स्कूल
में पढ़ायेंगे

तो खाली बच्चे
पास हो जायेंगे

नेताओं को
पढ़ा 
लिये
अगर

तो 
सात पीढि़यों
का भला
कर
ले जायेंगे

नेताओं को
वैसे 
भी
पढ़ाने की

जरूरत है

स्कूल में

पढा़ भी दिया
तो कौन सा
कद्दू में तीर
मार जायेंगे।