खाली सफेद पन्ने का
सामने से भौंकना मुँह पर
मुहावरा नहीं है सच है जनाब
समझ में नहीं आया ना
आयेगा
अगर एक साफ सफेद पन्ने से
कभी रूबरू होंगे आप
कुछ शब्द कुछ यादें शब्दों की
बचपन से आज तक की
एक मास्टर और उसकी सौंटी से
बजते हाथ के साथ कान लाजवाब
कपड़े हमेशा आये समझ में
ढकने वाली एक ढाल झूठ को
सच समझ में आया हमेशा
कपड़े उतारी हुई
सारी शख्सियत साफ साफ
मुस्कुराइयेगा नहीं दर्खास्त है
दबा लीजियेगा हंसी भी
अगर कोशिश करे निकलने की
किसी कोने से होंठो के
दर्द कटे का
व्यंग यूँ ही नहीं बनता है
सब जानते हैं सबको पता है
बैखौफ रहना खता है
खुश रहिये बेहिसाब
कुछ प्लास्टिक जलने की
गंध सी है माहौल में
गंध सी है माहौल में
कौन जानता है
जल रहा है
बहुत कुछ अंदर से कहीं
बहुत कुछ अंदर से कहीं
और जल रहा है बेहिसाब
किसे पड़ी है किसे सोचना है
बर्बाद कर दूँगा सब कुछ
की घोषणा कर देने वाले के
खौफ के साये में में जब हैं
गद्दी नशीन साहिबे जनाब
‘उलूक’
एक चेहरा
एक शख्सियत
जरूरी है सामने रखना
जरूरी है सामने रखना
बेचने के लिये
अंदर बाहर का सारा सब कुछ
लगाये बिना
कोई भी नकाब ।
कोई भी नकाब ।
चित्र साभार: https://m.facebook.com/