फर्जी
सकारात्मकता
ओढ़ना सीखना
जरूरी होता है
जो
नहीं सीखता है
उसके
सामने से
खड़ा
हर बेवकूफ
उसका
गुरु होता है
सड़क
खराब है
गड्ढे पड़े हैं
कहना
नहीं होता है
थोड़ी देर
के लिये
मिट्टी भर के
बस
घास से
घेर देना
होता है
काफिले
निकलने
जरूरी होते हैं
उसके बाद
तमगे
बटोरने
के लिये
किसी
नुमाईश में
सामने से
खड़ा होना
होता है
हर जगह
कुर्सी
पर बैठा
एक मकड़ा
जाले
बुन
रहा होता है
मक्खियों
के लिये काम
थोड़ा थोड़ा
उसी के
हिसाब से
बंटा हुआ
होता है
पूछने वाले
पूछ
रहे होते हैं
अन्दाज
खून चूसे गये का
किसलिये
मक्खियों को
जरा सा भी
नहीं
हो रहा
होता है
प्रश्न
खुद के
अपने
जब
झेलना
मुश्किल
हो रहा
होता है
प्रश्न दागने
की मशीन
आदमी
खुद ही
हो ले रहा
होता है
कुछ
नहीं कहना
सबसे अच्छा
और बेहतर
रास्ता होता है
बेवकूफों के
मगर
ये ही तो
बस में
नहीं होता है
हर
होशियार
निशाने पर
तीर मारने
के लिये
धनुष
खेत में
बो रहा
होता है
किसको
जरूरत
होती है
तीरों की
अर्जुन
के नाम के
जाप करने
से ही वीर
हो रहा होता है
काम
कुछ भी करो
मिल जुल कर
दल भावना
के साथ
करना होता है
नाम
के आगे
अनुलग्न
लगा कर
साफ साफ
नंगा नहीं
होना होता है
‘उलूक’
जमाना
बदलते हुऐ
देखना
भी होता है
समझना
ही होता है
पता करना
भी होता है
कहाँ
आँखें
मूँदनी
होती हैं
कहाँ
मुखौटा
ओढ़ना
होता है ।
चित्र साभार: www.exoticindiaart.com
सकारात्मकता
ओढ़ना सीखना
जरूरी होता है
जो
नहीं सीखता है
उसके
सामने से
खड़ा
हर बेवकूफ
उसका
गुरु होता है
सड़क
खराब है
गड्ढे पड़े हैं
कहना
नहीं होता है
थोड़ी देर
के लिये
मिट्टी भर के
बस
घास से
घेर देना
होता है
काफिले
निकलने
जरूरी होते हैं
उसके बाद
तमगे
बटोरने
के लिये
किसी
नुमाईश में
सामने से
खड़ा होना
होता है
हर जगह
कुर्सी
पर बैठा
एक मकड़ा
जाले
बुन
रहा होता है
मक्खियों
के लिये काम
थोड़ा थोड़ा
उसी के
हिसाब से
बंटा हुआ
होता है
पूछने वाले
पूछ
रहे होते हैं
अन्दाज
खून चूसे गये का
किसलिये
मक्खियों को
जरा सा भी
नहीं
हो रहा
होता है
प्रश्न
खुद के
अपने
जब
झेलना
मुश्किल
हो रहा
होता है
प्रश्न दागने
की मशीन
आदमी
खुद ही
हो ले रहा
होता है
कुछ
नहीं कहना
सबसे अच्छा
और बेहतर
रास्ता होता है
बेवकूफों के
मगर
ये ही तो
बस में
नहीं होता है
हर
होशियार
निशाने पर
तीर मारने
के लिये
धनुष
खेत में
बो रहा
होता है
किसको
जरूरत
होती है
तीरों की
अर्जुन
के नाम के
जाप करने
से ही वीर
हो रहा होता है
काम
कुछ भी करो
मिल जुल कर
दल भावना
के साथ
करना होता है
नाम
के आगे
अनुलग्न
लगा कर
साफ साफ
नंगा नहीं
होना होता है
‘उलूक’
जमाना
बदलते हुऐ
देखना
भी होता है
समझना
ही होता है
पता करना
भी होता है
कहाँ
आँखें
मूँदनी
होती हैं
कहाँ
मुखौटा
ओढ़ना
होता है ।
चित्र साभार: www.exoticindiaart.com