उलूक टाइम्स: गरदन
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रविवार, 9 अगस्त 2015

समझ में आता है कभी शुतुरमुर्ग क्यों रेत में गरदन घुसाता है

कुछ खूबसूरत सा
नहीं लिख पाता है
कोशिश भी करता है
नहीं लिखा जाता है
किसने कह दिया
मायूस होने के लिये
कभी निकल के देख
अपनी बदसूरत सोच
के दायरे से बाहर
बदसूरतों के बदसूरत से
रास्तों में हमेशा ही
क्यों दौड़ जाता है
बहुत सा बहुत कुछ
और भी है खूबसूरत है
खूबसूरती से उतारता है
खूबसूरत लफ्जों को
लिखा हुआ हर तरफ
सभी कुछ खूबसूरत
और बस खूबसूरत
सा नजर आता है
सब कुछ मिलता है
उस लिखे लिखाये में
चाँद होता है तारे होते हैं
आसमान होता है
हवा होती है
चिड़िया होती है
आवाजें बहुत सी होती हैं
सब कविता होती हैं
या केवल गीत होती हैं
इसीलिये हर खूबसूरत
उसी दायरे के
कहीं ना कहीं आसपास
में ही पाया जाता है
कभी किसी दिन
झूठ ही सही
अपनी उल्टी सोच के
कटोरे से बाहर निकल
कर क्यों नहीं आता है
अच्छा लगेगा तुझे भी
और उसे भी ‘उलूक’
होने दे जो हो रहा है
करने दे जो भी
जहाँ भी कर रहा है
कीचड़ में कैसे
खिलता होगा कमल
असहनीय सड़ाँध में
भी खिलखिलाता है
सोच कर देख तो सही
कोशिश करके
बदसूरती के बीच
कभी खूबसूरती से
कुछ खूबसूरत
भी लिखा जाता है ।

चित्र साभार: www.moonbattery.com

सोमवार, 19 मई 2014

सब कुछ लिख लेने का कलेजा सब के हिस्से में नहीं आ सकता है

सब कुछ
साफ साफ
लिख देने
के लिये
किसी को
मजबूर नहीं
किया जा
सकता है

सब कुछ
वैसे भी
लिखा भी
नहीं जा
सकता है

इतना तो
एक अनपढ़
की समझ में
तक आ
सकता है

सब कुछ
लिख लेने
का बस
सोचा ही
जा सकता है

कुछ
कुछ पूरा
लिखने की
कोशिश
करने वाला

पूरा लिखने
से पहले ही
इस दुनियाँ
से बहुत दूर भी
जा सकता है

सब कुछ
लिख देने
की कोशिश
करने में
आपदा भी
आ सकती है

साल
दो साल नहीं
सदियाँ भी
पन्नों में
समा सकती हैं

नदियाँ
समुद्र तक
जा कर
लौट कर
भी आ
सकती हैं

सब कुछ
सब लोग
नहीं लिख
सकते हैं

उतना ही
कुछ लिख
सकते हैं
उतना ही
कुछ बता
सकते हैं

जितने को
लिखने या
बताने में
कुछ
ना कुछ
पी खा
सकते हैं

कुछ
आने वाली
पीढ़ियों
के लिये
बचा सकते हैं

सब कुछ
लिख
देने वाला
अच्छी तरह
से जानता है

बाहर के
ही नहीं
अंदर के
कपड़े भी
फाड़े या
उतारे जा
सकते हैं

हमाम में
कोई भी
कभी भी
आ जा
सकता है

नहाना चाहे
नहा सकता है
डुबकी लगाने
की भी मनाही
नहीं होती है

डुबकी
एक नहीं
बहुत सारी भी
लगा सकता है

साथ
किसी के
मिलकर
करना हो
कुछ भी
किसी भी
सीमा तक
कर करा
सकता है

किसी
अकेले का
सब कुछ
किये हुऐ
की बात
शुरु करने
से ही
शुरु होना
शुरु होती है
परेशानियाँ

सब कुछ
लिखने
लिखाने की
हिम्मत करने
वाले का कुछ
या
बहुत कुछ
नहीं
सब कुछ भी
भाड़ में
जा सकता है

‘उलूक’
कुछ कुछ
लिखता रह
पंख नुचवाता रह

सब कुछ
लिखने का
जोखिम
तू भी नहीं
उठा सकता है

अभी
तेरी उड़ान
रोकने की
कोशिश
से ही
काम चल
जाता है
जिनका

तेरे
सब कुछ
लिख देने से
उनका हाथ
तेरी गरदन
मरोड़ने के
लिये भी
आ सकता है ।