कुछ
ना कहते
हुऐ भी
बहुत कुछ
ना कहते
हुऐ भी
बहुत कुछ
बोलती
आँखोंं से
आँखोंं से
कभी
आँखे
अचानक
आँखे
अचानक
ना चाहते सोचते
मिल जाती हैं
और
एक सूनापन
बहुत
गहराई से
निकलता हुआ
आँखों से आँखो
तक
होता हुआ
होता हुआ
दिल में
समा जाता है
समा जाता है
एक नहीं
कई बार होता है
एक नहीं
कई लोग होते हैं
ना
दोस्त होते हैं
ना
दुश्मन होते हैं
दुश्मन होते हैं
पता नहीं
फिर भी
ना जाने क्यों
महसूस होता है
अपनी
खुद की
खुद से
नजदीकियों
नजदीकियों
से भी
बहुत
बहुत
नजदीक होते हैं
बहुत कुछ
लिखा होता है
दिखता है
बहुत कुछ
साफ
साफ
आँखों में ही
लिखा होता है
महसूस होता है
पानी में
लिखना भी
लिखना भी
किसी को आता है
ऐसा
कुछ लिखा
जैसा
पहले कहीं भी
किसी
किताब में
किताब में
लिखा हुआ
नजर
नहीं आता है
इतना सब
जहाँ
किसी को
किसी को
एक मुहूरत में ही
पढ़ने को मिल जाता है
कितना कुछ
कहाँ कहाँ
सिमटा हुआ है
इस जहाँ में
कौन
जान पाता है
ना लिख
सकता है कोई कहीं
ना ही कहीं
वैसा
लिखा सा
नजर आता है
बाहर से
ढोना जिंदगी
तो
तो
हर किसी को आना
जीने के लिये
फिर भी
जरूरी हो जाता है
अंदर से
इतना भी
ढो सकता है कोई
ना
सोचा जाता है
ना ही
कोई इतना
सोचना
ही
चाहता है
ही
चाहता है
पढ़ ही लेना
शायद
बहुत हो जाता है
लिखना
चाह कर भी
वैसा
कौन कहाँ
कभी
कौन कहाँ
कभी
लिख ही पाता है ।