कुछ
ना कहते
हुऐ भी
बहुत कुछ
ना कहते
हुऐ भी
बहुत कुछ
बोलती
आँखोंं से
आँखोंं से
कभी
आँखे
अचानक
आँखे
अचानक
ना चाहते सोचते
मिल जाती हैं
और
एक सूनापन
बहुत
गहराई से
निकलता हुआ
आँखों से आँखो
तक
होता हुआ
होता हुआ
दिल में
समा जाता है
समा जाता है
एक नहीं
कई बार होता है
एक नहीं
कई लोग होते हैं
ना
दोस्त होते हैं
ना
दुश्मन होते हैं
दुश्मन होते हैं
पता नहीं
फिर भी
ना जाने क्यों
महसूस होता है
अपनी
खुद की
खुद से
नजदीकियों
नजदीकियों
से भी
बहुत
बहुत
नजदीक होते हैं
बहुत कुछ
लिखा होता है
दिखता है
बहुत कुछ
साफ
साफ
आँखों में ही
लिखा होता है
महसूस होता है
पानी में
लिखना भी
लिखना भी
किसी को आता है
ऐसा
कुछ लिखा
जैसा
पहले कहीं भी
किसी
किताब में
किताब में
लिखा हुआ
नजर
नहीं आता है
इतना सब
जहाँ
किसी को
किसी को
एक मुहूरत में ही
पढ़ने को मिल जाता है
कितना कुछ
कहाँ कहाँ
सिमटा हुआ है
इस जहाँ में
कौन
जान पाता है
ना लिख
सकता है कोई कहीं
ना ही कहीं
वैसा
लिखा सा
नजर आता है
बाहर से
ढोना जिंदगी
तो
तो
हर किसी को आना
जीने के लिये
फिर भी
जरूरी हो जाता है
अंदर से
इतना भी
ढो सकता है कोई
ना
सोचा जाता है
ना ही
कोई इतना
सोचना
ही
चाहता है
ही
चाहता है
पढ़ ही लेना
शायद
बहुत हो जाता है
लिखना
चाह कर भी
वैसा
कौन कहाँ
कभी
कौन कहाँ
कभी
लिख ही पाता है ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (17-11-2013) को "लख बधाईयाँ" (चर्चा मंचःअंक-1432) पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
गुरू नानक जयन्ती, कार्तिक पूर्णिमा (गंगास्नान) की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सच कहा आपने...पढ़ा जाना और पढ़ पाना बेहद ज़रूरी होता है पर हर किसी से हर कहीं पर यह कहाँ संभव हो पाता है...रचना के लिए साधुवाद...शायद आज पहली बार ही आपके ब्लॉग पर आना हो पाया; तुरंत अनुसरण कर रहे हैं...आपको पढ़े जाना ज़रूरी है..हमारी ओर से आपको मंगल कामनाएं;-))
जवाब देंहटाएंसादर/सप्रेम
डॉ. सारिका मुकेश
Dr. Sarika Mukesh
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http://hindihaiku.blogspot.in
कितना कुछ
जवाब देंहटाएंकहाँ कहाँ
सिमटा हुआ है
इस जहाँ में
कौन जान पाता है
ना लिख
सकता है कोई कहीं
ना ही कहीं वैसा
लिखा सा
नजर आता है ..... बहोत खूब