किस्म किस्म
के पकवान
लेकर रोज
पहुंचे
पहलवान
सुबह के
नाश्ते से
लेकर
शाम का
भोजन
तैयार है
किसी में
नमक
ज्यादा
तो कोई
पकने से
ही कर
चुका
इन्कार है
फिर भी
हर कोई
खिलाना
चाहता है
ना खाओ
तो भी
चिपकाना
चाहता है
कोई
पेट खराब
के बहाने
से खुद
को बचा
ही ले
जाता है
किसी को
व्रत त्योहार
का बहाना
बनाना
बहुत अच्छी
तरह से
आता है
कुछ
मजबूरी
में
पसंद पे
चटका
लगा कर
हाथ
झाड़ लिया
करते हैं
बहुत से
कुछ नहीं
पकाते हैं
इधर
का खाना
उधर से
उधार लिया
करते हैं
बाजार में
हलचल है
लोग तेजी
से इधर
उधर जा
रहे हैं
पूछने पर
पता चला
वो भी
शाम को
अब यहीं
कहीं आ
जा रहे हैं
लोग मेरे
शहर के
बहुत खुश हैं
वो अब
चाटने के
लिये नहीं
आता है
सन्नाटा
हो गया
हो कहीं पर
धमाका
रोज यहां
वो कर
जाता है
किसी को
कैसे चले
पता अब वो
यहां का चटोरा
बन गया है
लोग भी
कैसे मुंह
बचायें अपना
भिखारी
का एक
कटोरा
बन गया है
दे दे
अल्ला के
नाम पर
एक पसंद
का चटका
दे भी दे
तेरा क्या
जायेगा
जो दे
उसका भी
भला होगा
जो ना दे
वो भी
कभी अपने
लिये कुछ
मांंगने
के लिये
आयेगा ।
के पकवान
लेकर रोज
पहुंचे
पहलवान
सुबह के
नाश्ते से
लेकर
शाम का
भोजन
तैयार है
किसी में
नमक
ज्यादा
तो कोई
पकने से
ही कर
चुका
इन्कार है
फिर भी
हर कोई
खिलाना
चाहता है
ना खाओ
तो भी
चिपकाना
चाहता है
कोई
पेट खराब
के बहाने
से खुद
को बचा
ही ले
जाता है
किसी को
व्रत त्योहार
का बहाना
बनाना
बहुत अच्छी
तरह से
आता है
कुछ
मजबूरी
में
पसंद पे
चटका
लगा कर
हाथ
झाड़ लिया
करते हैं
बहुत से
कुछ नहीं
पकाते हैं
इधर
का खाना
उधर से
उधार लिया
करते हैं
बाजार में
हलचल है
लोग तेजी
से इधर
उधर जा
रहे हैं
पूछने पर
पता चला
वो भी
शाम को
अब यहीं
कहीं आ
जा रहे हैं
लोग मेरे
शहर के
बहुत खुश हैं
वो अब
चाटने के
लिये नहीं
आता है
सन्नाटा
हो गया
हो कहीं पर
धमाका
रोज यहां
वो कर
जाता है
किसी को
कैसे चले
पता अब वो
यहां का चटोरा
बन गया है
लोग भी
कैसे मुंह
बचायें अपना
भिखारी
का एक
कटोरा
बन गया है
दे दे
अल्ला के
नाम पर
एक पसंद
का चटका
दे भी दे
तेरा क्या
जायेगा
जो दे
उसका भी
भला होगा
जो ना दे
वो भी
कभी अपने
लिये कुछ
मांंगने
के लिये
आयेगा ।