उलूक टाइम्स: कटोरा
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बुधवार, 15 मई 2024

सब जानते है सीवर खुला है और आ रही है बदबू सड़न की खुशबू गाने में किसी का क्या चला जाता है

 

उसने ऐसा क्या कर दिया
किसी को कुछ कहीं नजर नहीं आता है
चश्मा पहनाया है या उतार दिया है
ये समझ से बाहर हो जाता है

जो देख रहे हैं महसूस कर रहे हैं
वो वो नहीं है जो वो बताता है
वो वो है वो नहीं है वो तो मासूम है
वो तो बस एक झंडा फहराता है

पढ़े लिखे नाच रहे हैं
लिखे में दिख रहा है उनके
राम भी समझ में आता है
राम नाम सत्य है बस
एक और केवल एक ही दिन
एक भीड़ से बांच दिया जाता है

आदमी लिख रहा है बन कर चम्मच
कटोरा पकडे हुए एक इंसान की कहानी
उसे कहाँ कोई समझाता है
कटोरे से कुर्सी और कुर्सी से देश खाने में
कहां समय लगता है
दीमक होशियारी अपनी कहाँ छुपाता है

 शर्म आती है ‘उलूक’ को
पढकर किसी का पन्ना
ब्लोगिंग में ब्लोगर बहुत बढ़ा
ऐसा कौन हो पाता है
सब को पता है सब जानते है
सीवर खुला है और आ रही है बदबू
सड़न की खुशबू गाने में
किसी का क्या चला जाता है |

चित्र साभार: https://www.dreamstime.com/

सोमवार, 27 जुलाई 2020

खराब समय और फूटे कटोरे समय के थमाये सब को सब की सोच के हिसाब से रोना नहीं है कोई रो नहीं सकता है



समय खराब है बहुत खराब है 

इतना खराब है 
इससे खराब होगा 
कहे बिन कोई रह नहीं सकता है

 खासियत है 
इस खराब समय की
जैसा है ऐसा
कई दशकों तक फिर कभी होगा
पक्का
कोई कह नहीं सकता है

 कुछ हो ना हो
हर किसी के पास इस समय
समय का दिया
किसी ना किसी तरह का
एक फूटा कटोरा है
जो कभी
चोरी हो नहीं सकता है

 किसी कटोरे में भूख है
किसी कटोरे में प्यास है
किसी कटोरे में आस है
किसी कटोरे में विश्वास है

पर है
सबके पास है
एक कटोरा 
है 
जिसे कोई
किसी हाल में भी
खो नहीं सकता है

किसी छोटे का छोटा 
है तो
किसी बड़े का इतना बड़ा 
है कि
सारे कटोरे उस में समा जायें

कटोरों का
ऐसा दुर्लभ महासम्मेलन
फिर कब हो

ऐसा मौका कटोरे वाला खो नहीं सकता है

ज्ञानी समझा रहे हैं
ज्ञानियों की मजबूरी भी है
ज्ञान बाँटना

ना बाँटें
तो खुद उनका ज्ञान
छलकना शुरु हो जाये

सम्भालना ही
 मुश्किल हो जाये
उनको ही गजबजाये

यहाँ वहाँ
खेत खलिहान सड़क मैदान
ज्ञान से लबालब हो जायें

ज्ञान की बाढ़ में
ज्ञानी डूब कर मर खप जायें

मुश्किल ये है
कि
छलछलाता छलबलाता ज्ञान
किसी तरह
थोड़ा सा हर कटोरे में चला जाये

हर किसी के पास
कुछ हो जाये

और आते आते रह गया
अच्छा समय
हौले से धीरे से पास आकर

कटोरे लिये हुओं को खटखटाये

तैयार रहें फिर से आ रहा हूँ
 कटोरा ले कर
इस बार भी दें एक मौका और

याद करते हुऐ
कटोरे में कटोरा
बेटा बाप से भी गोरा

‘उलूक’
ठंड रख मान भी जा
तेरा कुछ नहीं हो सकता है

अपना कटोरा
सम्भाल के किसलिये रखता है
फूटा कटोरा है
चोरी हो नहीं सकता है ।

चित्र साभार: https://blair.holliefindlaymusic.com/

बुधवार, 23 अगस्त 2017

पढ़ने वाला हर कोई लिखे पर ही टिप्पणी करे जरूरी नहीं होता है



जो लिखता है उसे पता होता है 
वो क्या लिखता है किस लिये लिखता है 
किस पर लिखता है क्यों लिखता है

जो पढ़ता है उसे पता होता है 
वो क्या पढ़ता है किसका पढ़ता है क्यों पढ़ता है 

लिखे को पढ़ कर उस पर कुछ कहने वाले को पता होता है 
उसे क्या कहना होता है 

दुनियाँ में बहुत कुछ होता है 
जिसका सबको सब पता नहीं होता है 

चमचा होना बुरा नहीं होता है 
कटोरा अपना अपना अलग अलग होता है 

पूजा करना बहुत अच्छा होता है 
मन्दिर दूसरे का भी कहीं होता है 

भगवान तैंतीस करोड़ बताये गये हैं 
कोई हनुमान होता है कोई राम होता है 
बन्दर होना भी बुरा नहीं होता है 

सामने से आकर धो देना 
होली का एक मौका होता है 

पीठ पीछे बहुत करते हैं तलवार बाजी 

‘उलूक’ कहीं भी नजर नहीं आने वाले 
रायशुमारी करने वालों का 
सारे देश में एक जैसा एक ही ठेका होता है । 

चित्र साभार: Cupped hands clip art

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

जय जय जय हनुमान मतलब एक स्पेशियल मेहमान

एक होता है बन्ना
एक होती है बन्नी
बन्ने की शादी
बन्ने से होनी है होती

कुछ को देने
होते ही हैं निमंत्रण
चाहिये ही होते हैं
थोड़े बहुत गवाह

अब्दुल्ला भी होता है
दीवाना भी होता है
शादी का माहौल
कुछ अलग सा
बनाना ही होता है

कुछ खुश होते हैं
कुछ दुखी होते हैं
कुछ की निकल
रही होती है आह

सबसे गजब
का होता है
एक खास मेहमान
बन्ने और बन्नी से
भी कहीं ऊपर जैसे
बहुत ऊपर
का भगवान

भगवानों में भी
कई प्रकार होते हैं
कुछ बिना कार होते हैं
कुछ अपने होते हैं
कुछ पराये होते हैं
कुछ बेकार होते हैं

एक सबसे
अलग होता है
जैसे ही जलसे
में पहुँचता है

एक जलजला होता है
बन्ने और बन्नी को
लोग भूल जाते हैं
मेहमान के चारों
ओर घेरा बनाते हैं

मेहमान जवान हो
जरूरी नहीं होता है
जब तक जलसे
में मौजूद होता है
बस और बस वही
एक बन्ना होता है

घेरने वालों के चेहरे
में रौनक होती है
भवसागर में तैराने
की जैसे उसके हाथ में
एक ऐनक होती है

शादी कुछ देर
रुक जैसा जाती है
बन्ना बन्नी को
जनता भूल जाती है

जो होता है बस वो
मेहमान होता है
निमंत्रण में आये हुऐ
लोगों के लिये
भगवान होता है

‘उलूक’
हमेशा की तरह
आकाश में कहीं
देख रहा होता है
चम्मच बिन जैसे
एक कटोरा होता है ।

चित्र साभार: www.clipartpanda.com

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

अस्थायी व्यवस्था

हर तीसरे साल
के बाद बदल दिया
जाता रहा है
मेरी सस्ते गल्ले की
दुकान का मालिक
बात है ना मजेदार

उसके बाद चाहे तो भी
रुक नहीं पाता है
कोई भी हो ठेकेदार

बहुत समय से जबकी
लग जाते हैं इस काम में
लोग सपरिवार

दुकान का ठेका
उठाना चाह कर भी
नहीं हो पाते हैं
सफल हर बार

कोशिश करते ही
रह जाते हैं बेचारे
छोटे किटकिनदार

सरकार के काम
करने के सरकारी
तरीके को खुद कहाँ
जानती है सरकार

कुछ ऎसा ही एक
नजारा देखने में
आया है इस बार

एक बादल बेकार
नाराज हो कर
फट गया जा कर
एक कोने में
कहीं सपरिवार

ठेका देने वाले को
खुद उठाना पड़ा
एक कटोरा और
जाना पड़ गया
दिल्ली दरबार

प्रश्न गंभीर हो गया
अचानक
कौन चलायेगा
इस दुकान
को इस बार
आपदा की
इस घड़ी में
कौन ढूँढने जाता
एक सस्ते गल्ले की
दुकान के लिये
एक अदद ठेकेदार

मजबूरी में तंत्र
हुआ बेचारा लाचार
पकड़ लाया एक
पकौड़ी वाला जो
बेच रहा था
आजकल
कहीं पर
अपने ही अचार

कहा है उससे
जब तक हम
देते नहीं
दुकान को
एक अपना
ठेकेदार

तुझे ही
उठाना है
गिराना है
शटर इसका
पर पकाना
नहीं पकौड़े यहाँ

नहीं आना
चाहिये ऎसा
कोई अखबार
में समाचार ।

मंगलवार, 13 मार्च 2012

मिल गया मिल गया .. लीडर

बिल्लियों
की
लड़ाई में
बंदर रोटी
खा गया

बिल्लियों
के
रिश्तेदारों
को
बहुत रोना
आ गया

यहाँ का
बंदर
मलाई खुद
जब
खाता नहीं

बिल्लियों
को बंदर
इसी लिये
भाता नहीं

साँस्कृतिक
जंगल में
उदासी सी
छा गयी

बहुत से
जानवरों
को
मूर्छा जैसी
आ गयी

आगे
बंदर अब
बिल्लियों
को नचायेगा
या
बिल्लियों द्वारा
बंदर
फंसाया जायेगा

यह तो
आने वाला
समय ही
बता पायेगा

लेकिन
अफसोस

बहुत सी
स्थानीय
बिल्लियों
का कटोरा
वापिस
पांच साल
के लिये
फिर से
उल्टा
हो जायेगा

मुझे
वाकई में
बहुत ही
रोना आयेगा ।

सोमवार, 28 नवंबर 2011

ब्लाग का भिखारी

किस्म किस्म
के पकवान
लेकर रोज
पहुंचे
पहलवान

सुबह के
नाश्ते से
लेकर
शाम का
भोजन
तैयार है

किसी में
नमक
ज्यादा
तो कोई
पकने से
ही कर
चुका
इन्कार है

फिर भी
हर कोई
खिलाना
चाहता है
ना खाओ
तो भी
चिपकाना
चाहता है

कोई
पेट खराब
के बहाने
से खुद
को बचा 

ही ले
जाता है

किसी को
व्रत त्योहार
का बहाना
बनाना
बहुत अच्छी
तरह से
आता है

कुछ
मजबूरी
में
पसंद पे
चटका
लगा कर
हाथ
झाड़ लिया
करते हैं

बहुत से
कुछ नहीं
पकाते हैं

इधर
का खाना
उधर से
उधार लिया
करते हैं

बाजार में
हलचल है
लोग तेजी
से इधर
उधर जा
रहे हैं

पूछने पर
पता चला
वो भी
शाम को
अब यहीं
कहीं आ
जा रहे हैं

लोग मेरे
शहर के
बहुत खुश हैं

वो अब
चाटने के                
लिये नहीं
आता है
सन्नाटा
हो गया
हो कहीं पर
धमाका
रोज यहां
वो कर
जाता है

किसी को
कैसे चले
पता अब वो
यहां का चटोरा
बन गया है

लोग भी
कैसे मुंह
बचायें अपना
भिखारी
का एक
कटोरा
बन गया है

दे दे
अल्ला के
नाम पर
एक पसंद
का चटका
दे भी दे
तेरा क्या
जायेगा

जो दे
उसका भी
भला होगा
जो ना दे
वो भी
कभी अपने
लिये कुछ
मांंगने
के लिये
आयेगा ।