गुरु
लोगों ने
कोशिश की
और
सिखाया भी
किताबों
में लिखा
हुआ काला
चौक से काले
श्यामपट पर
श्वेत चमकते
अक्षरों को
उकेरते हुऐ
धैर्य के साथ
कच्चा
दिमाग भी
उतारता चला गया
समय
के साथ
शब्द दर शब्द
चलचित्र की भांति
मन के
कोमल परदे पर
सभी कुछ
कुछ भरा
कुछ छलका
जैसे अमृत
क्षीरसागर में
लेता हुआ हिलोरें
देखता हुआ
विष्णु की
नागशैय्या पर
होले होले
डोलती काया
ये
शुरुआत थी
कालचक्र घूमा
और
सीखने वाला
खुद
गुरु हो चला
श्यामपट
बदल कर
श्वेत हो चले
अक्षर रंगीन
इंद्रधनुषी सतरंगी
हवा में तरंगों में
जैसे तैरते उतराते
तस्वीरों में बैठ
उड़ उड़ कर आते
समझाने
सिखाने का
सामान बदल गया
विष्णु
क्षीरसागर
अमृत
सब अपनी
जगह पर
सब
उसी तरह से रहा
कुछ कहीं नहीं गया
सीखने
वाला भी
पता नहीं
कितना कुछ
सीखता चला गया
उम्र गुजरी
समझ में
जो आना
शुरु हुआ
वो कहीं भी
कभी भी
किसी ने
नहीं कहा
‘उलूक’
खून चूसने
वाले कीड़े
की दोस्ती
दूध देने वाली
एक गाय के बीच
साथ रहते रहते
एक ही बर्तन में
हरी घास खाने
खिलाने का सपना
सोच में पता नहीं
कब कहाँ
और
कैसे घुस गया
लफड़ा हो गया
सुलझने के बजाय
उलझता ही रहा
प्रात: स्कूल भी
उसी प्रकार खुला
स्कूल की घंटी
सुबह बजी
और
शाम को
छुट्टी के बाद
स्कूल बंद भी
रोज की भांति
उसी तरह से ही
आज के दिन
भी होता रहा ।
चित्र साभार: www.pinterest.com
लोगों ने
कोशिश की
और
सिखाया भी
किताबों
में लिखा
हुआ काला
चौक से काले
श्यामपट पर
श्वेत चमकते
अक्षरों को
उकेरते हुऐ
धैर्य के साथ
कच्चा
दिमाग भी
उतारता चला गया
समय
के साथ
शब्द दर शब्द
चलचित्र की भांति
मन के
कोमल परदे पर
सभी कुछ
कुछ भरा
कुछ छलका
जैसे अमृत
क्षीरसागर में
लेता हुआ हिलोरें
देखता हुआ
विष्णु की
नागशैय्या पर
होले होले
डोलती काया
ये
शुरुआत थी
कालचक्र घूमा
और
सीखने वाला
खुद
गुरु हो चला
श्यामपट
बदल कर
श्वेत हो चले
अक्षर रंगीन
इंद्रधनुषी सतरंगी
हवा में तरंगों में
जैसे तैरते उतराते
तस्वीरों में बैठ
उड़ उड़ कर आते
समझाने
सिखाने का
सामान बदल गया
विष्णु
क्षीरसागर
अमृत
सब अपनी
जगह पर
सब
उसी तरह से रहा
कुछ कहीं नहीं गया
सीखने
वाला भी
पता नहीं
कितना कुछ
सीखता चला गया
उम्र गुजरी
समझ में
जो आना
शुरु हुआ
वो कहीं भी
कभी भी
किसी ने
नहीं कहा
‘उलूक’
खून चूसने
वाले कीड़े
की दोस्ती
दूध देने वाली
एक गाय के बीच
साथ रहते रहते
एक ही बर्तन में
हरी घास खाने
खिलाने का सपना
सोच में पता नहीं
कब कहाँ
और
कैसे घुस गया
लफड़ा हो गया
सुलझने के बजाय
उलझता ही रहा
प्रात: स्कूल भी
उसी प्रकार खुला
स्कूल की घंटी
सुबह बजी
और
शाम को
छुट्टी के बाद
स्कूल बंद भी
रोज की भांति
उसी तरह से ही
आज के दिन
भी होता रहा ।
चित्र साभार: www.pinterest.com